मैथिली कीड़ा (गीति कविता)
– प्रवीण नारायण चौधरी
काटि लेलकय – काटि लेलकय – काटि लेलकय भैया हौ
मैथिली के कीड़ा देखहक काटि लेलकय भैया हौ!!
गेल रहियै नोकरी करय – दिल्ली भदोही
भेटल नहि मैथिल कतहु – बाट न बटोही
सुनिकय विदापति उत्सव होऽऽऽ-२ गाम भेटल मिथिला हौ!!
मैथिली के कीड़ा देखहक काटि लेलकय भैया हौ!!
गामो उजैड़ गेलय – उपैट गेलय खेती
सब केओ बाहर भागय – कमाय लेल रोजी
नाच आ गाना गामक होऽऽऽऽ-२ भेटि गेलय मिथिला हौ!!
मैथिली के कीड़ा देखहक काटि लेलकय भैया हौ!!
कतहु रह हे हौ मैथिल – मिलिजुलि गाबह
मिथिला के बारहो वरण – धरती ई जोगाबह
सलहेश – दीनाभद्री – लोरिक होऽऽऽ-२ फेर एलय मिथिला हौ!!
मैथिली के कीड़ा देखहक काटि लेलकय भैया हौ!!
नेता सऽ गामो फूटल – टूटि गेल मड़ौसी
पटना के पाछाँ देखल – बीकि गेल पड़ोसी
छोड़ऽ लोभ गंगा पारक होऽऽऽऽ-२ तिरहुत बनय मिथिला हौ!!
मैथिली के कीड़ा देखहक काटि लेलकय भैया हौ!!
हरि: हर:!!