नवरात्राक शुभकामना: कलशस्थापनाक विशेष दिवस पर
कलशस्थापनाक दिन आइ समस्त मैथिल एकताक कलश केर स्थापना करैत आपसी खण्डी-बुद्धिरूपी दानवक संहार केर संकल्प लैत आगामी समय में शक्तिस्वरूपा बेटी लेल कहियो किनको सौदाबाजी केँ मंजूर नहि करबाक वचनबद्ध बनी, केओ किनको बेटी केँ अपन घर केर बधुक रूप मे गृहप्रवेश करेबाक लेल कहियो माँगिकय कोनो द्रव्य ग्रहण नहि करब – निर्लोभ भाव सँ हुनका मे मातृशक्ति केर दर्शन करब – लक्ष्मीरूपा पुतोहु केँ मान्यता प्रदान करब, युवा लोकनि अपन विवाहकाल मे साक्षात् पार्वतीरूपा पत्नीक पाणिग्रहण करबाक कल्पना करैत सदिखन ईश-शरण मे रहैत दुनू प्राणी एहि पृथ्वी पर सुन्दर मनुष्यलोक आ जीवलोक केर निरन्तरता हेतु प्रतिबद्ध बनब – यैह किछु अनिवार्य वाञ्छित धर्मक संग समस्त संकल्प केँ आदरभाव सँ अपनाबैत समस्त संसारकेर कल्याण करबाल लेल कृतसंकल्पित होयब।
आउ, आजुक भक्तिमय समय मे पहिल दिन भगवतीक प्रथम रूपपर चर्चा करी:
१. शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥
माँ दुर्गा अपन पहिल स्वरुप मे ‘शैलपुत्री’क नाम सँ जानल जाइत छथि। पर्वतराज हिमालयक घर पुत्रीक रूपमे उत्पन्न भेलाक कारण हिनकर इ नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ल छल। वृषभ-स्थिता एहि माताजी केर दाहिना हाथमे त्रिशुल और बायाँ हाथमे कमल-पुष्प सुशोभित अछि। यैह नव दुर्गामे प्रथम दुर्गा छथि।
हे माँ, कल्याणमयी बनू। जगत्जननी माँ जगदम्बाकी जय!