विशिष्ट व्यक्तित्व ‘मैथिलीपुत्र’ आर हुनक अविस्मरणीय योगदान
– उदय शंकर मिश्र, दरभंगा।
वर्तमान समय भारतक किछु नामी-गिरामी साहित्यकार लोकनि साहित्य अकादमीक सम्मान लौटेबाक प्रकरण अत्यन्त चर्चा मे देखैत हमहु सहमत छी जे हिनका लोकनि केँ अकादमीक पुरस्कार वापस नहि करबाक चाही। ई सब तथाकथित वामपंथी साहित्यकार बुद्धिजीबी लोकनि छथि। हिनके धारा केर साहित्यकार लोकनि मैथिली मे विद्यापतिक दुर्लभ पाण्डुलिपि केर चोरी पर चूप आ लालू द्वारा बीपीएससी सँ मैथिली हँटेबाक प्रकरण पर चूप आ जगन्नाथ मिश्र द्वारा मैथिली छोड़ि ऊर्दू केँ बिहारक दोसर राजभाषा बनेबा पर सेहो चूप रहबाक गाथा-व्यथा देखने छी। एहने स्थिति मे वामपंथी राजेन्द्र यादब द्वारा पाँच लाखक पुरस्कार उत्तरप्रदेश सरकार केँ वापिस कयल जेबाक बात केँ सेहो स्मृति मे आनि रहल छी। ई सब सहगल आ वाजपेयी एहन साहित्यकार केँ कहथून जे मिथिला मे त्याग नहि भोग केर शिक्षा लिअ हमरा सँ।
एकटा साहित्यकार प्रदीपजी मैथिली लेल त्याग कयलनि तैँ साहित्यकार नहि छथि प्रदीपजी? आकशवाणी मे प्रदीपजी मैथिलीक अन्याय पर दर्जनो साहित्यकार संग त्याग कएलनि आ सभ कियो छोड़ि चलि गेलाक बादो ओ असगरो मैथिली संगे ठाढ रहला।
स्वयं प्रधानाध्यापक रहल विद्यालय मे मैथिली मे प्रार्थना करबाक परंपरा आरंभ केलनि। संगहि प्राथमिक शिक्षा लेल सेहो शिक्षक सबकेँ मैथिलीभाषी छात्र होयबाक कारणे हिन्दी सँ मैथिली मे रूपान्तरित करैत सहज रूप सँ बुझेबाक प्रेरणा दैत रहला। विदित हो जे भारतक संविधान सहित विश्व भरि मे मान्यता यैह अछि जे शिक्षाक सहज प्रसार लेल मातृभाषा मे बच्चा केँ पढेबाक चाही।
एतबा नहि, प्राथमिक शिक्षा मे मैथिली माध्यम सँ सब विद्यालय मे पढाई हो ताहि लेल हुनका द्वारा एकटा संस्था सेहो खोलल गेल छल, जाहि लेल हुनका ‘कारण बताउ’ आर ‘निलंबन’ तक केर सजाय भुगतय पड़लनि। ओ अपन बालक केँ हुनक विद्यालय मे मैथिली माध्यम सँ परीक्षा दियौलनि। अपन आर आन बच्चा बीच कहियो कोनो तरहक विभेद नहि केलनि, सबहक लेल एक रंग रहब हिनकर खासियत छल। हिनक जीवन चरित्र एकटा उपदेश अछि।
“एकटा बात कहब हम सदिखन मिथिलावासी सँ
मैथिलीक अधिकार लेल लड़ू नहि डरू जहल आ फाँसी सँ”
– श्रीमैथिलीपुत्र प्रदीप
एहि पाती संगे मिथिला क्रांतिदूत संघ चलयबाक लेल दंडित भेल छलाह मैथिलीपुत्र प्रदीप। सीआयडी इन्कवायरी बिहार सरकार सेट अप कयलक। ओ हिनका विरुद्ध जाँच करैत छल। ओ डाक्टर लक्ष्मण झा केर ग्रामीन छलाह। हुनका सॅ कहलखिन जे एना ई अपन बात पर अड़ल छथि ताहि मे नौकरी जा सकैत छनि। डाक्टर साहेब प्रदीपजी केँ बजेलनि आ कहलनि जे अहाँक नौकरी करबाक अछि, हिनका सहयोग करियौन। तहन नौकरी बाँचल। संस्था ताहि उपरान्त पं. देव नारायण झाजी चलाबय लगलाह।
आकाशवाणी दरभंगा द्वारा मैथिलीक उपेक्षा पर बिन्दुवार एकटा नम्हर पत्र वरिष्ठ साहित्यकार आकाशवाणी महानिदेशक दिल्ली केँ देल गेल छल। ओतय सँ जे उत्तर आयल ताहि मे मैथिली प्रति लक्षित अपमानजनक भाषाक प्रयोग कयल गेल छल। ओकर प्रकाशन 02/06/1983 केँ स्वदेश दैनिक मैथिली जे परम आदरणीय सुरेन्द्र झा सुमन केर समपादकत्व मे दरभंगा सँ निकलैत छल, ताहि मे छपल। साहित्यकार पत्र आ 3 जून केँ महनिदेशक केर उत्तर छपल आ 4 जून एकटा आदरणीय साहित्यकार केर आह्वान जे एहि स्थिति मे जे आकाशवाणी दरभंगा मे कार्यक्रम मे जाओत ओ मैथिली विरोधी होयत।
ई देखि प्रदीपजी 5 जून केँ स्वदेश पत्र मे लिखलनि जे 6 जून केँ हमर कार्यक्रम अछि, ओकरा हम बहिष्कार करैत छी। जाबेतक मैथिलीक सम्मान नहि भेटत ताबेतक आकशवाणी दरभंगा मे नहि जायब। ई देखि 12 गोट साहित्यकारक पत्र 6 जून केँ छपल जे हमहुँ सब बहिष्कार करैत छी। एहि तरहक बहिष्कार करबाक प्रतिक्रिया देखि लोक मे उत्साह आयल जेकर बदौलत मैथिली आन्दोलन 1983 सँ चलल। परंच जून मे शुरू भेल दिसम्बर तक अबैत-अबैत बेसी साहित्यकार आकशवाणी जाय लागल छलाह। ई आन्दोलन कमजोर भेल। दूटा साहित्यकार टा बचि गेला आन्दोलन मे।
एकटा आदरणीय साहित्यकार 1993 मे प्रदीपजी केँ पत्र लिखलनि जे हम साहित्य अकादमी केर पुरष्कारक दौड़ मे छी तैँ हम भारत सरकारक एकटा संस्था सँ पुरस्कार लेब आ दोसर केर विरोध करब, से ठीक नहि होयत, तैँ हम आकाशवाणी जायब, अहूँ चलू। प्रदीपजी पत्रक माध्यम सँ उत्तर देलनि जे हमर मैथिली केँ सम्मान नहि भेटत, हम नहि जायब, अहाँ जा सकैत छी। आब असगरे रहि गेला श्रीमान्। ओहि साहित्यकार केँ आकादमीक पुरस्कार भेटि गेलनि।
2004 मे संविधानक आठम अनुसूची मे मैथिली अयलाक बाद आकाशवाणी दरभंगाक निदेशक प्रदीप जीक आवास पर आबिकय कहलनि जे अपनेक सब माँग मानैत छी। तखन प्रदीपजी फरबरी 2004 मे लगभग 21 बर्खक बाद आकाशवाणी दरभंगा मे फेर सँ गेला। लगभग 80 वर्ष केर उमेर मे प्रदीपजी साधनामय जीवन जिवि रहल छथि। किनको कोनो शिकायत नहि, आर ओ सबहक लेल मैथिलीपुत्र रूप मे प्रचलित सुपरिचित छथि।