आलेख
– करुणा झा
फूल केँ फूलाय मे, सुर्योदय मे, नदि केर प्रवाह मे, बरखा केर बुन्द मे, दुभि पर मोती जकाँ ओ, चिडै चुनमुनी केर चुनमुन मे, बाल-पशु केर उछल-कूद मे, मेनाक बच्चा केर किलोल मे, सब मे जीवन अछि । सब मे प्रकृति द्धारा देल गेल वरदान अछि । सब मे भगवान् अछि, सब मे जीवन केर असल आनन्द अछि ।
भगवान् केँ कोनो एकटा फोटो, मूर्ति अथवा मन्दिर केर सीमा मे बान्हिल नहिं जा सकैत अछि । यदि कतहु भगवान् अछि तऽ प्रकृति केर हर घटना मे विद्यमान अछि । जतेक भी हिंसा आइ धरि भेल अछि ओ सब भगवान् केर नाम पर भेल अछि । मनुक्ख जे किछु करैत अछि ओकर आत्माक गहनतम मे ई बात बुझल रहैत अछि जे कि गलत अछि आ कि सही, मुदा तइयोे ओ अपना आप केँ अपन मन केँ दमित हिंसाक भावना सँ तथा अपन असंवेदनशील विचार सँ उत्पन्न जघन्य कृत्य सँ मुक्त होयबा मे असमर्थ रहैत अछि, तखन ओ अपना कृत्य केँ भगवान् केर ऊपर लादि दैत अछि, आर अपना केँ ओहि कृत्य केर उत्तरदायित्व सँ मुक्त कऽ लैत अछि ।
धर्म, आस्था, इश्वर भरित केर नाम पर सब सँ नमहर कुप्रथा अछि पशुबलि । अपना स्वार्थ सिद्धि केर कारण सँ किछु अन्धविश्वासी अथवा अन्हार आस्था मे डूबल लोक आस्था तथा पूजा केर नाम पर अबला आ निरीह पशु सब केँ बलि देल जाइत अछि जे कि सर्वथा कोनो भी धर्म केर बिपरीत अछि ।
अपना देश मे दुर्गापुजा सब सँ नमहर त्योहार केर रुप मे मनाओल जाइत अछि । दुर्गा जे स्वंय आदिशक्ति छथि । राम जखन रावण सँ युद्ध करबाक सोचलनि तऽ रावण केर शक्ति सँ राम भयभीत रहथि, तखन लंका पर चढाइ करय सँ पहिने राम जी आदि शक्ति माता दुर्गा केर आराधना कय आत्मशक्ति प्राप्त केलनि आर लंका केँ जीति रावण केँ परास्त केलनि आ अपन भार्या सीता केँ ओहि दानवक हाथ सँ मुक्त करौलनि । ओहि दिन सँ दुर्गापुजा केर शुरुवात भेल आ असत्य केर ऊपर सत्य केर, अन्याय केर ऊपर न्याय केर, पाप केर ऊपर पुण्य केर, आर हिंसा केर ऊपर अहिंसा केर विजय भेल आ ताहि सँ नाम पड़ि गेल ‘‘विजयादशमी” । तऽ जखन दुर्गा जी स्वंय शक्ति केर भंडार छथि तैयो हुनके आगु हम सब निरीह आ अबला पशु केर बलि चढा कऽ कोन शक्ति केर प्रर्दशन करैत छी ? पशु केर हत्या कऽ सोचइ छी जे भगवती प्रसन्न हेती ? एहन नइ भऽ सकैत अछि । सनातन धर्म मे कतउ भी कोनो हत्या, हिंसा केर समर्थन नहि अछि । ई प्रथा गोटेक कर्मकाण्डी केर माध्यम सँ प्रारम्भ भेल छल । जखन सब जीव मे प्रभु केर वास अछि तऽ ई कदापि नहि भऽ सकैत अछि जे कोनो जीव केर हत्या सँ भगवान् प्रसन्न हेताह ।
तहिना इस्लाम धर्म मे बकरीद मे हजारौं-लाखौं पशु केर बलि देल जाइत अछि आ बलि देबाक तरिका तऽ आरो बहुत निर्ममतापुर्वक छैक । बकरीद (बकरींईद) मे कुर्बानी सँ अल्लाह या खुदा प्रसन्न भऽ जेता, आर मुल्लो सब केँ जन्नत बखशि देता, नइ भऽ सकैत अछि से । कोनो भी धर्म या मजहब जीव हत्या केर सिफारिश नहि करैत अछि । जे देवी-देवता हत्या सँ प्रसन्न होइ छथि ओ त नहि देवी-देवता छथि नहिये खुदा । कोनो भी धर्म मे जीव-जन्तु पर दया करै लेल सिखाओल जाएत अछि, सब जीव केर प्रकृति पर समान अधिकार अछि । हमर सब के वेद शास्त्र सेहो कहैत अछि – ‘‘अहिंसा परमो धर्म:” । माँ दुर्गा आदि शक्ति सर्व शक्तिमान छथि, हुनका सामने हम कोनो भी जीव केर हत्या करब हुनका नीक नहि लागतैन । हमरा सब के देश मे वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट (wild Life protection ACT) सेहो अछि । मुदा ओ कतय काज करैत अछि, आइ धरि नहि बुझबा मे आयल । मुदा एहन पावनि नहि मानबी जहि मे अपना जीभ केर स्वादक खातिर जीव हत्या करी । पशु, पक्षी आ जानवर हमरा प्रकृति केर लेल आ हमरा पर्यावरण सन्तुलन केर लेल बहुत उपयोगी अछि । बलि देबा कऽ अछि तऽ अपन जीभ केर स्वाद केँ दी जे दोसर जीव के माँस खेबाक वास्ते आतूर अछि । एहन स्वाद केँ बलि दय बलि-प्रथा समान धार्मिक कुप्रथा केर अन्त करी ।