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मैथिलीक बाजार पर भोजपुरी-हिन्दीक अतिक्रमण

कोइ काहू मगन – कोइ काहू मगन!!

keshaw rock maithili cdप्रसंग: यह मैथिली नहीं, भोजपुरी है जी – एकटा मैथिली गीत सुनि रहल लोकक मुंहे सुनल बात…… नीक-नीक लोकक यैह अछि हाल। मैथिली केँ टाँग-हाथ तोड़िकय अपना केँ भोजपुरी प्रमाणित करबाक कुत्सित कार्यक वृत्तान्त कतेको भेटैत अछि। बाजार मूल्य भोजपुरीक बेसी छैक, सहारा नंगापन-फूहरता जे किछु हो। मैथिली जिन्दाबाद केर अनुभव सँ कहि सकैत छी, यदि एकटा मोडेल केर फोटो लगबैत कोनो समाचार प्रकाशित कय दैत छियैक तऽ ओकरा पढनिहार दिनहि मे हजारों भेटि जाएत अछि, जखन कि भक्ति, आध्यात्म, दर्शन, सामाजिक सरोकार व अभियान केन्द्रित महत्वपूर्ण आलेखक पाठक नगण्य अछि। माछीक संख्या बहुत बेसी देखल जाइछ, लेकिन ओ सब सदिखन विष्ठा समान गंदगी पर जाकय बैसैत अछि। ई गूढ ज्ञान आमजन मे होयब सहजहि संभव नहि।

प्रसंग पर विस्तार सँ बात सुनू!!

अमर नाथ जी आर हम साउथ एक्सटेन्सन – दिल्ली मे हुनकर अफिसे नजदीक रहल अत्यन्त मृदुल व मधुर मैथिली सीताजीक धरती सीतामढी निवासी कौशलजी केर पान दोकान पर पान खा रहल छलहुँ। एक गोट देखय-सुनय मे गौंआँ सनक लागल जे कतहु मजदूरी करैत जीविकोपार्जन करैत छल, ओकर जेबी मे सुन्दर मैथिलीक उदासी – समदाउनक तर्ज पर प्रसिद्ध लोकगीत बाजि रहल छल। एकटा मजदूरवर्गक युवा आ दिल्ली समान परदेश मे एहि रूप मे मैथिली गीत मदहोशी – दीवानगीक संग भेटत, ई हमरा सनक अभियानीक लेल परमानन्द केर विषय छल। पूछला पर ओ दुनू बात नकारि गेल, भाइ मिथिला सँ छह कि, कहलक नहीं जी, मैं तो राजस्थान का हूँ… आ मैथिली गीतक प्रेमी छह कि… कहलक नहीं जी, मैं तो भोजपुरी गीत का शौकीन हूँ। कहलियैक, रे भाई! ये तो मैथिली गीत तुम सुन रहे थे इसीलिये जिज्ञासा किये…. कहलक, मुझे नहीं पता लेकिन मैं तो भोजपुरी ही समझ रहा था।

बाजार मे जे देखाइत छैक, वैह बिकाइत छैक। भोजपुरीक लोकप्रियता भले जाहि कारण सँ भेल हो, मुदा मैथिली सँ सौ गुना बेसी छैक। मैथिली केर प्रसार क्षेत्र एक-दुइ देश नहि वरन् अनेको देश मे भेल छैक। आर तऽ आर, मात्र किछु सौ वर्षक पुरान भाषा हिन्दी आइ कतेक लोकप्रिय बनि गेलैक अछि जे अंग्रेजी, फ्रेन्च, लैटिन, जर्मन संग प्रतियोगिता करैत अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृत भाषाक दर्जा पाबि चुकल छैक। देश-विदेश सब ठाम एकर मनोरंजनात्मक सामग्री बाजार कय रहलैक अछि। मैथिलीक दिन सुदिन करबाक लेल के? न राज्य न संस्था न संगठन न समूह…. लेल्ला-बेथल्ला मैथिली मात्र रमानाथ झा समान जुझारू निर्माताक बले हाफ मर्डर बनबैत छैक, तऽ किसलय समान घूमन्ते मैथिली दिवानाक बले उद्घोषण सामर्थ्यक संग नव पीढी केँ जोड़ि रहलैक अछि, प्रवीण समान अपरिपक्व – आधा-अधूरा जानकारक बले तरह-तरह केर अभियान चला रहलैक अछि….. कहाँ कोनो ताहि तरहक सपोर्ट छैक मैथिलीक पास जेकर बदौलत ई भोजपुरी वा हिन्दी समान बाजार मे उतैर सकत? जे छैक से अपने पैर पर ठाढ संघर्ष करैत छैक, मुदा सब स्वाभिमानी छैक, ई शक्ति हिन्दी या भोजपुरी मे कदापि नहि छैक। ओकरा सबकेँ नंगापन आ फूहरताक सहारा लेबय पड़ैत छैक, मुदा मैथिली विदेहराज केर ओहेन शक्तिमान् भाषा थिकैक जाहि मे गारियो सुनब मधुर छैक, अभागल केँ के पूछैत अछि जे अपन भाषा सँ अपने छीह कटैत अछि।

रविन्द्र जैन मैथिली मे गेलनि, एहि पर शंका कियैक?

रविन्द्र जैन एकटा प्रसिद्ध व्यक्तित्व गीत-संगीतक दुनिया मे बनलाह। बालीवूड केर बादशाहत मे अपन विधाक बदौलत ओहो एकटा अलगे चीज प्रमाणित भेलाह। हुनकर भजन, भाव, अभिव्यक्ति आ समर्पण – ई केकरो प्रभावित करयवला छैक। बात छैक, किसलय कृष्ण समान समर्पित मैथिली उद्घोषक एवं मैथिली फिल्म केर जानकार एवं विश्लेषक कहलनि जे सर्वप्रथम ओ रामानन्द सागर कृत् रामायण धारावाहिक मे मैथिलीक प्रयोग केँ अपन स्वर देलनि – एहि मे अतिश्योक्तिपूर्ण शंका उठेबाक कारण कि? किसलय केर जानकारी वा ई कथन अहाँकेँ चूभि गेल – या कोनो तरहें अहाँक आन-मान-शानक खिलाफ भेल जे ‘झूट्ठा सब द्वारा कूप्रचार’ कहि ओकरा अपमानित केलहुँ? या फेर एना लागल जे अहाँक उपलब्धिक रिकार्ड कतहु भ्रमित भऽ जायत? कि कारण छैक जे एहि विन्दु पर घस्साघस्सी चैल रहल अछि? मैथिलीक ओहिना दुर्दिन चलि रहलैक अछि, ताहि मे रविन्द्र जैन केर योगदानक चर्चा सँ एकटा बाजार मूल्य बढेबाक स्तरीय दावा पर बिना पूर्ण जानकारीक प्रहार करबाक कुत्सित मानसिकता केँ हम कि मानी?

हरि: हर:!!

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