गाय माता आ वेदान्त
– पं. भवनाथ झा
(मैथिली अनुवाद: प्रवीण नारायण चौधरी)
भारत मे प्राचीन काल सँ गाय माता मानल गेल अछि। ऋग्वेद केर प्रथम मण्डल केर 110म सूक्त मे ऋभुदेव केर बड़ाइ करैत कहल गेल अछि जे “हे ऋभुदेव! अहाँ एहेन गाय केँ हृष्टपुष्ट बना देलहुँ जेकर शरीर पर चाम टा बचि गेल छल। अहाँ एकटा बच्छा केँ अपन माय सँ संयुक्त करा देलहुँ अछि। अहाँ अपन सत्प्रयास सँ एकटा वृद्ध माता-पिता केँ सेहो युवा बना देलहुँ अछि।”
निश्चर्मण ऋभवो गामपिंशत सं वत्सेनासृजता मातरं पुनः।
सौधन्वासः स्वपस्यया नरो जिव्री युवाना पितरा कृणोतन॥
ऋग्वेद केर चारिम मण्डल केर 33म सूक्त मे फेर ऋभु सब द्वारा गाय केर सेवा करबाक कारण देवस्वरूप होयबाक जानकारी देल गेल अछि।
यत्संवत्समृभवो गामरक्षन्यत्संवत्समृभवो मा अपिंशन् ।
यत्संवत्समभरन्भासो अस्यास्ताभिः शमीभिरमृतत्वमाशुः ॥
एतय स्पष्ट रूप सँ गामरक्षत् अर्थात् गाय केर रक्षा करबाक बात कहल गेल अछि।
ऋग्वेद केर छठम् मण्डल केर 34म सूक्त मे इन्द्र सँ प्रार्थना कैल गेल अछि जे हमरा लोकनिकेँ दूध देवयवाली नीक गाय प्रदान करू।
अथर्ववेद मे सेहो राष्ट्राभिवर्द्धन मन्त्र अछि जाहि मे ब्रह्मा सँ प्रार्थना कैल गेल अछि जे हमरा लोकनिक देश मे खूब दूध देवयवाली गाय हो, भार उठाबयवला वोढा बरद हो – दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वान् इत्यादि।
जाहि वेद मे गाय प्रति एहेन श्रद्धा हो जे दुबर-पातर गाय केर सेवा करैत ओकरा फेर सँ हृष्टपुष्ट बनेनिहार केँ देवताक समान मानल जाय, एहेन ऋग्वेद मे गाय केर वध कय ओकर मांस भक्षण करबाक बात कहब नितान्त झूठ आ बकवास टा अछि।
नारद-पुराण मे कहल गेल अछि जे जँ कियो व्यक्ति गया जेबाक क्रम मे बैलगाड़ीक उपयोग करैत अछि तऽ ओकरा गोवध केर पाप लगैत छैक। एहि तरहें पुराण मे गोहत्या करब एकटा पाप मानल गेल अछि।
गोयाने गोवधः प्रोक्तो हययाने तु निष्फलम् ।
नरयाने तदर्द्धं स्यात्पद्भ्यां तच्च चतुर्गुणम् ॥ ६२.३४ ॥
एतबा टा नहि, हिन्दू धर्म मे तँ एतय धरि कहल गेल अछि जे खूँटा सँ बान्हल गाय जँ कोनो दुर्घटनावश मैर जाएत अछि तऽ पोसनिहार केँ ‘अपालन’ केर पतिया (पाप) लगैत अछि आ ओ जाबतकाल धरि एहि वास्ते प्रायश्चित नहि करैत ताबतकाल धरि ओकरा अपवित्र मानल जाएत अछि।
गाय केर अपालनक सम्बन्ध मे अनेको प्रकारक प्रायश्चित्त सबहक सेहो वर्णन कैल गेल अछि। पराशर स्मृति केर नौम अध्याय केर आरम्भहि सँ एकर विस्तार सँ वर्णन देखल जा सकैत अछि।
नारद पुराण केर पूर्वार्द्ध अध्याय 30 मे कोन प्राणीक वध कएला सँ केहेन पाप होएत अछि, तेकर विवेचना उपलब्ध अछि। एतय गोहत्या केर सम्बन्ध मे कहल गेल अछि जे जँ गाय केँ पोसबाक क्रम मे अनजाइनो मे गाय केर मृत्यु भऽ जाय तँ पराक नामक प्रायश्चित्त करबाक चाही। मुदा जानि बूझि कय जँ हत्या कैल जाय तऽ ओहि व्यक्ति केर पतिया सँ शुद्धि होयब तक सम्भव नहि अछि।
कामतो गोवधे नैव शुद्धिर्द्दष्टा मनीषिभिः ।। 30.38।
विष्णुधर्म नामक एकटा धर्मशास्त्र केर ग्रन्थ अछि, जाहि मे कोन पाप केर कारण मरलाक बाद केहेन यातना भेटैत अछि, ताहिपर विस्तार सँ चर्चा कैल गेल अछि। एतय गोवध, स्त्रीवध आर गाय केर सम्बन्ध मे झूठ बाजबाक कारण केहेन पाप लगैत अछि ताहि सम्बन्ध मे कहल गेल अछि। कहल गेल अछि जे एहेन कूकृत्य केनिहार केँ महाघोर नरक केर यातना भेटैत अछि और ओतय सड़सी सँ पापाचारी केर जीह उखाड़िकय घोर यातना देल जाएत अछि –
गोवधः स्त्रीवधः पापैः कृतं यैश्च गवानृतम्।
ते तत्रातिमहाभीमे पतन्ति नरके नराः॥अध्याय २३|१४॥
उत्पाट्यते तथा जिह्वा संदंशैर्भृशदारुणैः।
एतबे टा नहि, गोवध केर पाप केँ जे गुप्त रखबा मे सहयोग करैत अछि ओहो गोहत्या समान पाप केर भागी बनैत अछि:
प्रायश्चित्तं गोवधस्य यः करोति व्यतिक्रमम्।
अर्थलोभादथाज्ञानात् स गोहत्यां लभेद् ध्रुवम्॥
एहि तरहें जानल वा अनजानल मे गोहत्या कएनिहार, गाय केँ कोनो प्रकार सँ प्रताड़ित कएनिहार, ओकरा चोट पहुँचेनिहार केँ महापातकी मानिकय ओकरा वास्ते दण्ड केर विधान बताओल गेल अछि। एहेन स्थिति मे किछु शब्दक गलत व्याख्या करैत जे कियो लोक प्राचीन काल मे गोवध केर विधान मानैत अछि ओ बकथोथी टा करैत अछि। सच मे ओकरो जँ गोवध केर पाप करबा समान कहल जाए तऽ अतिश्योक्ति नहि होयत।
वास्तव मे गोवध शब्द केर व्याख्या गलत ढंग सँ करैत किछु लोक कुतर्क करैत रहैत अछि। वास्तविकता ई छैक जे संस्कृत मे हन् धातु केर दुइ टा अर्थ होएत छैक, गेनाय आ हत्या केनाय। जयबाक अर्थ मे जंघा शब्द मे हन् धातु केर प्रयोग छैक। अही हन् धातु केर लिङ् लकार मे अर्थ वध करब भऽ जाएत छैक। अतः गोवध शब्द केर अर्थ गोहत्या अर्थात् गाय केँ मारब यैह अर्थ निकलैत छैक। जखन कि गाय केँ लऽ जायब एहेन अर्थ हेबाक चाही। जतय-जतय वेद मे गोवध शब्द केर उल्लेख अछि, ओतत गाय केँ लऽ गेनाय अर्थ होइछ।
दोसर शब्द गोघ्न केर व्याख्या मे सेहो किछु लोक अपन कुतर्क दैत अछि जे गावः हन्यते अस्मै इति गोघ्नः अतिथिः। अर्थात् जेकरा लेल गायक हत्या कैल जाय ओकरा गोघ्न कहल जाएत अछि आर एहि सँ अतिथि केर बोध होएत अछि। एतहु हन्यते शब्द केर अर्थ अछि – लऽ गेल जाएछ। वास्तव मे वैदिक काल मे परम्परा छल जे जखन अतिथि अबैत छलाह तखन एकटा गाय और एकटा लोटा हुनका उपयोग करबाक लेल देल जाएत छल। यैह गवालम्भन कहाएत छल। यैह गवालम्भन विवाह लेल जमाय केँ एला सेहो होएत छल, जेकर उल्लेख गृह्यसूत्र मे भेल अछि। उत्तररामचरित मे गाय केर बछड़ाक मरमरेबाक आवाज केर जे वर्णन अछि ओहो अही अर्थ मे अछि जे जखन गाय और बछड़ा अपना जगह छोड़िकय दोसर अपरिचित व्यक्ति केर जिम्मा मे जायत तऽ निश्चित रूप सँ बछड़ा मरमरायत। एहि बात केँ कियो गोपालक नीक जेकाँ जनैत अछि।
अत: वेद-पुराण केर सन्दर्भ दैत प्राचीन भारत मे गोमांस खेबाक बात जे लोक करैत अछि, ओ भ्रम मे अछि और बकवास करैत अछि।