नेपाल, भारत आर मिथिला
सर्वविदित अछि जे विश्व केर एकमात्र ‘हिन्दू राष्ट्र’ जे कहियो पराधीन नहि भेल ओ ‘नेपाल’ थीक। नेपाल नाम कहिया सँ भेल इहो बड रुचिगर जानकारी होयत, मुदा इतिहास एहि राष्ट्र केँ ‘हिमालयन राज्य’ केर रूप मे जनैत अछि आ बहुत बादो धरि, कहि सकैत छी जे हालो धरि विश्व परिवेश मे जाबत ‘द हिमालयन किंगडम अफ नेपाल’ नहि कहबैक, तऽ बहुत लोक अन्जान रहि सकैत छथि। एकटा बात आर कहब से इच्छा जागल अछि, राजनीतिक रूप सँ नेपाल केर परिभाषा जे किछु हो, लोकाचार मे एहि राष्ट्रक पहिचान बहुत विलक्षण आ पूर्वकालिक अछि। एहि सन्दर्भ अपन १९९७ केर चीन यात्रा सँ जुडल एक संस्मरण राखय लेल चाहब, नानजिंग विश्वविद्यालय केर किछु विद्यार्थी सब संग संध्याकाल गुआंगझाउ (कैन्टन) ब्यापारिक मेला उपरान्त आपसी मनोरंजनक माहौल मे बात चलि रहल छल। चूँकि हमहुँ एक नेपाल ब्यापारिक प्रतिनिधि रूप मे उपरोक्त मेला मे सहभागी भेल रही, तैँ अपन परिचय देबाक क्रम मे नेपाल कहिते ओ सब ‘इन्दू-इन्दू’ करय लागल। गला मे रुद्राक्षक माला आ टीका-चानन आदि देखि शायद हिन्दू कहि रहल छल कि… फेर ओ सब राजकपुर द्वारा गायल गीत आ किछु हिन्दी फिल्म केर चर्चा करय लागल… नेपाल कतय अछि से पूछय लागल… विस्मित भेलहुँ एहि लेल जे नेपाल मे राजनीतिक रूप सँ दुइ देशक बड पैघ महत्त्व छैक, एक भारत तथा दोसर चीन। नेपाल एहि दू देशक बीच अट्टालिकारूपी विशाल पर्वत ‘हिमालय’ केर कोरा मे अवस्थित एक राष्ट्र थीक आ चीन केर पडोसी थीक यैह बात ओहि स्नातक पास विद्यार्थी सबकेँ नहि पता छलैक। हम मोरंग मे रहि रहल छी। मोरंग हमरा लोकनिक बाबा आदम सँ कर्मथली रहल अछि। आब तेसर पीढी निकैल रहल अछि। हरिहर काका जेना कथा सब सुनबैत छलाह ताहि अनुसारे विराटनगर पहिने पूर्ण जंगल छल आ एतय खतरनाक मच्छड वास करैत छल। एतुका सब सँ खतरनाक संक्रामक रोग मलेरिया छलैक। लोक जखन एहि जंगल मे प्रवेश करैत छल तऽ अपन अंगा (वस्त्र) निशानीक तौर पर बाहरे कतहु टाँगि दैत छलैक – ई सोचि जे जौँ कहीं बीमारी सँ मृत्यु भऽ जायत तऽ लोक ई बुझि सकत जे मोरंग गेलैक तऽ ओकरो बीमारी भेला सँ मृत्यु भऽ गेलैक… आदि। यैह कारण छैक जे मिथिलावासी बीच एकटा कहावत अत्यन्त प्रचलित भेलैक – जाइत छह मोरंग तऽ कपार जेतह संगे… जे कहावत नेपाल बनि गेला उपरान्त कहेलैक ‘जाइत छह नेपाल तऽ कपार जेतह संगे’। १९८५ ई. आसपास विराटनगर औद्योगिक नगरी आ नेपालक दोसर महानगर केर रूप मे पहिचान स्थापित कय चुकल छल। १९९० मे जखन बहुदलीय प्रजातंत्र केर नव संविधान नेपाल मे लागू भेलैक तहिया सँ विराटनगर मे औद्योगिक आवोहवा काफी बढि गेलैक। हिसाब सँ देखल जाय तऽ नेपाल लेल औद्योगिक क्रान्ति शुरु होयबाक वर्ष १९९० केँ मानल जा सकैत अछि। १९९५ ई. सँ माओवादी विद्रोह केर शुरुआत होइतो औद्योगिक विकास केर क्रम ततेक बाधित नहि भेलैक। लगभग २००० ई. धरि एहि सब मे उत्तरोत्तर प्रगति होइते रहलैक। कारण जे सर्वोपरि हमरा बुझायल ओ यैह जे ‘१९९१ ई. मे नेपाल आ भारत बीच ब्यापारिक समझौता – नेपाली वस्तु केर भारत मे खुल्ला बाजार उपलब्ध करेबाक सुविधा यानि प्रिफरेन्सियल एन्ट्री’। एतय चाउर, आँटा, मैदा, तेल, दाइल, बिस्कुट, साबुन मिल सँ ऊपर पैघ-पैघ वनस्पति घी, टेक्सटाइल, यार्न, प्लास्टीक प्रोडक्ट्स, रबड प्रोडक्ट्स, वायर आ इलेक्ट्रीक गुड्स, नुडल्स, स्नैक्स सहित विभिन्न अन्य खाद्य प्रशोधन उद्योग केर एतय विकास भेल। विराटनगर सहित नेपाल केर विभिन्न भाग मे औद्योगिक विकासक खुशनुमा माहौल बनि गेल। हलाँकि नेपालक राजनीतिक अपरिपक्वता आ भारत प्रति आशंका-शंका केर दृष्टिकोण सँ बहुत योजना अधर मे लटैक गेल, राजनैतिक अवस्था एतबे कमजोर जे हाल धरि कोनो एक नेतृत्वक सरकार २ वर्ष सँ फाजिल एतय शासन नहि चला सकल अछि आ एखन धरि कतेको प्रकारक संविधान एहि छोट राष्ट्र मे प्रवेश पाबि सफलता लेल तरसैत रहल अछि। लोक मे जाहि तरहक आत्म-प्रसन्नता पसरबाक चाही ताहि लेल एखन धरि लोक लालायिते अछि। भारत द्वारा एहि ठामक अर्थतन्त्र केँ पूर्ण सहयोगात्मक रुखि अपनेलाक बावजूद हमरा बुझने राजनैतिक अपरिपक्वता आ बिन बातक-बात मे भारत प्रति आशंकित रहि कोनो दीर्घकालीन जनहितकारी परियोजना पर कार्य शुरु नहि कैल जेबाक कारणे अवस्था दिन-ब-दिन बिगडैते रहि गेल अछि। एतय भारतीय कूटनीतिक हस्तक्षेप पर कतेको तरहक बात आम जनमानस मे नित्य बहस केर विषय बनैत अछि। हमर औकात रहय नहि रहय लेकिन जखन राजनैतिक बहस मे सहभागी बनब तऽ भारतक ‘रा’ सँ लैत भारतीय राजनयिक केर डिक्टेटरशीप सँ नेपाली राजनेता केर प्रभावित होयबाक कथा-गाथा खूब बाजब-सुनब! जखन कि नेपाल मे अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय युरोपियन राष्ट्र, अमेरिका, अन्य एशियन मुल्क सहित राष्ट्रसंघ केर सेहो नीक पहुँच अछि; एहि भूमिक उपयोग दुइ राष्ट्र भारत तथा चीन केर बीच नेपाल केँ दहोंदिशिया भूमिका प्रदान कय कतेको प्रकारक ‘बुढियाक फूइस’ व्युहरचना सब सेहो रचल जाइत सुनैत रहल छी…. लेकिन यथार्थ विकास आ प्रभाव मात्र भारतक दृष्टिगोचर होइत अछि। भारत द्वारा हजारों करोड केर अनुदान सँ सडक, बिजली, स्वास्थ्य, संचार, परिवहन, लोकस्वास्थ्य, शिक्षा सहित जनहित केर विभिन्न क्रियाकलाप कैल जाइत अछि। भारत एकमात्र प्राकृतिक मित्र राष्ट्र आ पडोसी केर भूमिका मे देखाइत अछि जाहि सँ लोकचर्या प्रत्यक्षत: प्रभावित बुझाइत अछि। लेकिन राजनैतिक मानसिकता बिना बातक बात आर मुद्दा आदि सँ एहि दुइ देशक सुमधुर सम्बन्ध पर अराजक टिप्पणी करैत आम जनहित केर बहुत कार्य केँ अपने सँ अपने बाधित करैत देखाइत छथि। नेपाल मे पर्यटन हो, उद्योग हो, व्यवसाय हो, भौतिक पूर्वाधार (सडक, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, आद सम्बन्धी) विकास हो… सब मे भारत सर्वोपरि सहयोगीक भूमिका मे रहैत अछि। नेपालक सर्वाधिक प्रचुरता जल-संसाधन, प्राकृतिक वन, जडी-बुटी, खदान, आदि केर दोहन मे विशाल संभावना रहैत केवल शंका-उपशंका केर चलतबे समुचित दोहन आइ धरि संभव नहि भऽ सकल अछि। भुटान केर उदाहरण सोझाँ देखितो नेपालक राजनैतिक मानसिकता ओतेक सुदृढ नहि जे भारत संग विश्व बैंक व अन्य लगानीकर्ता देश सहित एक त्रिपक्षीय समझौता करितो कोनो प्रकारक दीर्घकालीन परियोजना सँ एहि ठाम समृद्धिरूपिणी लक्ष्मी केर आवाहन कैल जा सकय! मात्र छूछ राजनीति सँ ‘ढेर जोगी, मठ उजाड’ केर कथनी केँ चरितार्थ कैल जा रहल अछि आइ धरि। नेपाल आर भारत बीच सुमधुर सम्बन्ध केँ बहुते रास समीक्षक अपना तरहें समीक्षा करैत आबि रहल छथि। बेसी लोक ऊपरे सँ शुरु करैत छथि, जैड पकडि प्राकृतिक न्यायपूर्ण आलेख देखबा लेल आँखि तरसैते रहल अछि। भारत आर नेपाल, एहि दुओ देशक अवस्थिति मात्र किछु सौ वर्षक इतिहास देखला सँ नहि वरन् एकर जैड मे सनातनकालीन इतिहास देखैत समीक्षा करब जरुरी अछि। लिखित इतिहास केर कमाप्ति एहि मे भले बाधक हो, मुदा समग्र इतिहास केँ एकत्रित भाव सँ निरीक्षण एकटा ठोस आधार प्रदान कय सकैत अछि जे आखिर कोन आधार पर नेपाल देश केर संरचना विकास सँ लैत संवैधानिक अवस्था केँ मजबूती प्रदान कैल सकैत अछि। एहि मे वर्तमान भारत सरकार आर नेपाल सरकार केँ कोन तरहें आपसी जुडाव बनेबाक चाही आर कोना दुनु राष्ट्रक सीमा, साधन, संस्कार, सभ्यता तथा संस्कृतिकेँ अक्षुण्ण राखल जा सकैत अछि। एहि मादे हम चाहब जे संपूर्ण भारतवर्ष केर ओहि काल सँ देखल जाय जतय सँ विदेशी आक्रमणकारी एतुका अस्मिता केँ नोंच-पटक शुरु कयलक। एगो कहबी आधुनिक मिथिला मे बड प्रसिद्धि पेलक – न्याय लेल गोरखा जाउ, शिक्षा लेल काशी जाउ। गोरखा राजा यानि गुरु गोरखनाथ केर शिष्यक राज्य मे न्याय-व्यवस्था मजबूत सैन्य व्यवस्थाक कारणे गंगा उत्तर पूरा प्रसिद्धि पेलक। गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह द्वारा नेपाल केर एकीकरण पूर्व एतय बाइस राज्य, चौबीस राज्य केर चर्चा अबैत अछि। गोरखा सेना आ तिरहुतिया सेना केर चर्चा सेहो अबैत अछि। विद्यापति सेहो बनैली आ सिम्रौनगढ राज्य मे गुप्तवास केलैन जे वर्तमान नेपाल मे पडैत अछि। ऐतिहासिक परापूर्वकाल सँ हिमालय राज न्याय लेल प्रसिद्ध रहबाक बात प्रमाणित अछि। महाभारतकाल मे पाण्डव सेहो राजा विराट केर प्रदेश मे शरण लेबाक गाथा प्रचलित अछि। वैदिक प्रमाण सँ सेहो वराह अवतार एहि पर्वत प्रदेश मे होइत गर्त मे गेल धराधाम केँ विष्णु वराहरूप धरि पुन: प्रकट करबाक न्याय एतहि चरितार्थ भेल अछि। आइयो वराहक्षेत्र हिन्दू धर्मावलम्बी लेल ओतबे प्रासंगिक आ दर्शनीय अछि। गोरखा राजा केर प्रसिद्ध न्याय आर सुसंगठित सैन्यबल केर बदौलत समस्त २२ वा २४ अलग-अलग राज्य (जे आजुक नेपाल तथा भारतक गंगा उत्तर रहबाक प्रमाण उपलब्ध अछि) केर राजा केँ आपसी समझौता मे विकट परिस्थिति मे एक केलक, जकरा ‘वृहत्तर नेपाल’ केर संज्ञा सेहो देल जाइत अछि आर एहि आधार पर नेपालक किछु राजनीतिक विचारधारा अंग्रेज संग भेल समझौता यानि सुगौली संधि केँ खारिज करैत पूर्वकालिक वृहत्तर नेपाल तर्ज पर सीमाकरण सेहो चाहैत छथि, हलाँकि १९५० केर शान्ति तथा मैत्री समझौता द्वारा पूर्व केर समझौता केँ यथास्थिति मे मानि जेबाक ऐतिहासिक संधि नेपाल-भारत बीच मेरुदण्ड केर रूप मे काज करैत अछि आर विश्व परिवेश द्वारा – राष्ट्रसंघ द्वारा पर्यन्त एहि केँ मान्यता भेटल अछि, सुगौली संधि तक पुनरावृत्ति केर प्रासंगिकता पर प्रश्न एहि कारण सँ लगैत अछि जे जँ वृहत्तर नेपाल केर पुनरावृत्ति होयत तऽ ओहु सँ पूर्व जाइत समस्त छोट-छोट राज्य जेकर एकीकरण मित्रतापूर्वक वा सैन्यबल केर प्रयोग सँ भेल तेकरो किऐक नहि पुनरावृत्ति कैल जाय, आखिर स्वतंत्रता तऽ सबकेँ पसिन पडैत छैक आर नेपाल मे सेहो विगत २५० वर्षक राजतंत्र गोरखा मूलक नेपाली-खसभाषी छोडि अन्य भाषाभाषी, संस्कृति, सामाजिकता, भूगोल केँ दोसर दर्जाक नागरिक समान उत्पीडण आ दमनपूर्ण शासनक विशाल कलंकित इतिहास सेहो ठाड्ह कय लेने छैक। आइ वर्तमान मे जाहि तरहक मुक्ति आन्दोलन सब नेपाल मे एकटा निश्चित ‘संविधान’ तक निर्माण करय देबा मे बाधक बनल छैक तेकरो समाधान तऽ चाहबे करी? आ कि मात्र विभिन्न बहन्ना, विदेशी हस्तक्षेप, अनर्गल मध्यस्थता आदि केर निहु मे नेपालक अन्य भाषा-भाषी, संस्कृति, इतिहास, पहिचान केँ जबरदस्ती ‘नेपालीकरण’ करैत सम्मान पेबाक कोनो जादुइ निराकरण भेटबाक संभावना छैक? १९४७ ई. मे भारत ब्रिटिश शासन सँ स्वतंत्रता पबैत जाहि तरहें भुटान, सिक्किम, नेपाल, पाकिस्तान आदि मित्रराष्ट्र केँ मान्यता देलकैक आर बाद मे नेपाली राजा त्रिभुवन सेहो काश्मीरी राजा समान अपन देश केँ भारत मे विलय करबाक प्रस्तावक संग दिल्ली पहुँचलो उपरान्त ‘नेपाली राष्ट्रपिता’केर पदवी सहित नेपालक स्वतंत्र अस्मिता संरक्षित रखबाक तात्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु केर देल मान संग नेपाल लौटला, संग मे सुप्रसिद्ध प्रजातंत्रवादी विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला समान स्वच्छ राजनीतिकर्मी द्वारा नेपाल केर प्रजातांत्रिक सरकार बनल ताहि संस्कृति केँ आइयो आरो बेहतर सम्बन्ध संग निर्वहन करबाक आवश्यकता स्पष्ट छैक। हलाँकि सत्ताक केन्द्र राजपरिवार आर राजनैतिक शक्ति बीच जेना समुद्रमंथनक अमृत लेल देवता-दानवक मल्लयुद्ध बनि आम नेपाली जनमानसकेँ मात्र पीसि रहल हौउक, वर्तमान अवस्था मे राजपरिवार एकटा सबल पक्ष रहितो उपेक्षित रूप सँ किनारा लगायल जेबाक उद्धरण सोझाँ मे देखाइत छैक। जरुरत छैक जे सब पक्ष केँ सम्मानजनक अवस्था मे आनल जाय, सबकेँ समुचित न्याय दैत हिमालय राजाक एहि राज्य केँ पूर्ण स्वायत्त राष्ट्र बनायल जाय। भारत मे नव-निर्वाचित सरकार आर प्रखर हिन्दूवादी नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केर निर्वाचन सँ एक बेर फेर नेपाल ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनतैक एहि तरहक फुसफुस्सी एक-दोसरक मुह सँ सुनाइत छैक। संवैधानिक परिवर्तन लेल नेपाल मे संसद केँ मात्र अधिकार छैक, लेकिन भारत मे बनल सरकार सँ नेपाल मे परिवर्तन देखबाक एकटा अजीबोगरीब सिलसिला एतय स्वस्फूर्त चलैत रहल छैक, चलि रहल छैक। ई मात्र अफवाह थिकैक। यथार्थ परिवर्तन लेल एकटा पडोसी मित्रराष्ट्र अपन सदिच्छारूपी भावना सेहो व्यक्त करौक, मुदा परिवर्तन सदैव एहि देशक विधान निर्माता यानि संविधान सभा द्वितीय केर चुनल गेल ६०१ सभासद टा हेतैक। विडंबना तऽ नेपाल मे एहेन छैक जे हाल धरि ५७५ विधायक संविधान सभा भवन मे हाजिरी लगबैत छैक, २६ टा विधायक केर मनोनयन एखन धरि अधर मे छैक जखन कि आब लगभग ९ महीना बीतय जा रहलैक अछि। आइ सँ नेपाल केर भ्रमण पर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आबि रहल छथि। हुनका सोझाँ भारतीय राजनयिक तथा खुफियातंत्र द्वारा जाहि तरहक एजेन्डा सोझाँ राखल जायत ताहि पर नेपाली पक्ष द्वारा अग्रसारित एजेन्डा केर समीक्षा करैत एक बेर पुन: द्विपक्षीय समझौता हेबाक उम्मीद राखू, जे अगस्त केर प्रथम सप्ताह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केर यात्राक दौरान अन्तिम हस्ताक्षरित हेतैक। कहबाक प्रयोजन नहि, जे प्राकृतिक न्याय छैक ताहि अनुरूपे दुनू राष्ट्रक बीच आपसी मित्रता केँ प्रगाढ करबाक पूर्ण प्रयास कैल जेतैक। विपक्षी दल माओवादी तथा मधेशवादी सब सेहो वर्तमान यात्रा केँ सकारात्मक रूप मे लैत सुन्दर भविष्य निर्माण लेल दीर्घकालीन समझौता पर बेसी जोर देथिन ई उम्मीद टा कैल जा सकैत छैक। भारतीय प्रधानमंत्री मिथिलाक आदिकालीन राजधानी जनकपुर अयबाक बात सेहो हवा मे अछि। मोदीजी केर व्यक्तिगत रुचि, सिद्धान्त आ झुकाव सँ मिथिला राजधानीक यात्रा पूर्णरूपेण जायज छैक, नेपाल मे संघीय शासन प्रणाली मे वर्तमान जनमत मिथिला राज्यक पक्ष मे रहबाक बात सेहो हुनका ज्ञात हेतनि। संघीयता केँ स्थापित करबा मे ‘मिथिला राज्य’ केर निर्माण सँ देश मे शान्ति अयबाक बात निश्चित छैक। एहि सँ मधेश केर अन्य प्रदेशक कल्याण सहित राष्ट्र मे दीर्घकालीन शान्ति आर सद्भावना अयबाक बात निश्चित छैक। वर्तमान राजनैतिक गतिरोध ‘समग्र मधेश – एक प्रदेश’ सँ जे बनल छैक ओहो खत्म हेतैक आर नेपालक चौतरफा विकास लेल छोट-छोट राज्य-प्रशासन सँ सुशासन तथा विकासक अवधारणा पटरी पर चढतैक। ओम्हर हिमाल, पहाड आ मधेश केर भौगोलिकता मे सिद्ध ऐतिहासिकताक मिश्रण सँ सफलतम् नेपाल समृद्धिक दिशा मे गमन करतैक एकरा कियो नहि काटि सकैत अछि। समस्त पक्ष, नेपाल मे मिश्रित पहिचानक संग प्रदेशक अवधारणा संग अछि आर हरेक नेपाली केँ नेपाली होयबा पर गर्व हेतैक कारण नव संविधान मे कोनो पक्ष केँ उत्पीडित आ दमन केर भावना नहि वरन् मुक्तिक मार्ग प्रशस्त होयबाक आत्म-अनुभूति हेतैक। भारतक सहयोग सेहो नेपालक जनभावनाक संग रहय यैह आकांक्षा राखल जा सकैत अछि। अन्त मे, नेपाल आर भारत केर सनातनकालीन सुमधुर सम्बन्ध केर रक्षार्थ सब भारतीय तथा नेपाली जनभावना मे सौहार्द्रक भावना प्रशस्त हो, यैह शुभकामना दैत छी। हरि: हर:!! |