मिथिलाक पावनि-तिहार: अनन्त चतुर्दशी
संकलन: प्रवीण नारायण चौधरी
एक बेर महाराजा युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ केलनि। ओहि समय यज्ञ मंडप केर निर्माण सुंदर तऽ छल्हे, अद्भुत सेहो छल ओ यज्ञ मंडप। एतेक मनोरम छल जे जल ओ थल केर भिन्नता प्रतीत नहि होइत छल। जल मे स्थल तथा स्थल मे जल केर भांति प्रतीत होइत छल। बहुत सावधानी केलो पर बहुते व्यक्ति ओहि अद्भुत मंडप मे धोखा खा चुकल छल।
एक बेर कतहु सँ टहलैत-टहलैत दुर्योधन सेहो ओहि यज्ञ-मंडप मे आबि गेला आर ओहि पोखरि केँ स्थल समान बुझैथ ओहिमे खैस पड़ला। द्रौपदी ई देखिकय ‘आन्हरक संतान आन्हर’ कहिकय हुनक उपहास केलनि। एहि सँ दुर्योधन काफी अपमानित होइत खौंझा सेहो गेला।
ई बात हुनक हृदय मे बाण समान लागल। हुनका मन मे द्वेष उत्पन्न भऽ गेल और ओ पांडव सबसँ बदला लेबाक ठानि लेलनि। हुनकर मस्तिष्क मे ओहि अपमान केर बदला लेबाक विचार उपजय लागल। ओ बदला लेबाक लेल पांडव केँ द्यूत-क्रीड़ा मे हारिक सामना करबैत अपमान केर बदला लेबाक सोचि लेलनि। ओ पांडव केँ जुआ मे पराजित कय देला।
पराजित भेला पर प्रतिज्ञानुसार पांडव सबकेँ बारह वर्षक वास्ते वनवास भोगय पड़ि गेल। वन मे रहैते पांडव अनेको कष्ट सहैत रहला। एक दिन भगवान् कृष्ण जखन भेटय एला तऽ युधिष्ठिर हुनका सँ अपन दु:ख केर वृत्तान्त कहि एकरा दूर करबाक उपाय पर चर्चा केलनि।
तखन श्रीकृष्ण कहलखिन जे – ‘हे युधिष्ठिर! अहाँ विधिपूर्वक अनंत भगवान् केर व्रत करू, एहि सँ अहाँ लोकनिक सब संकट दूर होयत और हेरायल राज्य फेर सँ भेटि जायत।’
एहि संदर्भ मे श्रीकृष्ण द्वारा हुनका एकटा कथा सुनायल गेल –
प्राचीन काल मे सुमंत नामक एकटा नेक तपस्वी ब्राह्मण भेलाह। हुनक पत्नीक नाम दीक्षा छलन्हि। हुनका लोकनिक एकटा परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या छलीह। जिनकर नाम सुशीला छल। सुशीला जखन पैघ भेली तऽ हुनक माता दीक्षा केर मृत्यु भऽ गेलनि। पत्नीक मृत्यु उपरान्त सुमंत कर्कशा नामक दोसर स्त्री सँ दोसर विवाह कय लेलनि। सुशीला केर विवाह ब्राह्मण सुमंत द्वारा कौंडिन्य ऋषिक संग करा देल गेलनि। विदाई मे किछु देबाक बात पर कर्कशा द्वारा बेटी-जमाय केँ गोटेक ईंटा आ पत्थर आदिक टुकड़ा बांधि कय देल गेलनि।
कौंडिन्य ऋषि दुखी होइत अपन पत्नी केँ संग लय अपना आश्रम तरफ चलि देला। मुदा रास्ता मे राति भेलाक कारण ओ एकटा नदीक किनार पर संध्या करय लगला। सुशीला देखलनि – ओत्तहि बगल मे बहुते-रास स्त्रीगण लोकनि सुंदर वस्त्र धारण कय कोनो देवताक पूजा कय रहल छलीह। सुशीलाक पूछला पर हुनका सेहो विधिपूर्वक अनंत व्रत केर महत्ता बतायल गेलनि। सुशीला सेहो ओत्तहि ओहि व्रत केर अनुष्ठान केलनि आर चौदह गांठ वला डोरा हाथ मे बान्हिकय ऋषि कौंडिन्य केर पास आबि गेली।
बाद मे कहियो ऋषि कौंडिन्यक ध्यान सुशीलाक बामा हाथक बाँहिपर डोरा बान्हल देखि संशय भेलाक कारणे ओ सुशीला सँ डोराक बारे मे पूछलनि। ताहि पर सुशीला हुनका सब बात बतौलनि। तथापि संशय हुनका भीतर सँ दूर नहि भेलनि आ ओहि डोरा केँ अपना विरुद्ध मानि ओ सुशीलाक बाँहिपर सँ उतारि – तोड़ि-तारिकय आगि मे डालि देला। एहि सँ भगवान् अनंत जी केर अपमान भेलनि। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दु:खी रहय लगला। हुनकर रहल-सहल सब सम्पत्ति नष्ट भऽ गेलनि। एहि दरिद्रता केर कारण ओ अपन पत्नी सँ पूछलनि तऽ सुशीला हुनका अनंत भगवान केर डोरा जरेबाक बात कहली।
पश्चाताप करैते ओ ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरा केर प्राप्ति लेल वन मे चलि गेला। वन मे कतेको समय धरि तपस्या केलाक बाद अन्तहु मे खाली हाथ निराशा सँ भरल हताश होइत जमीन पर गिर पड़ला। तखनहि भगवान् अनन्त प्रकट भऽ कय कहलखिन- ‘हे कौंडिन्य! तूँ हमर तिरस्कार केने छलें, ताहि सँ तोरा एतेक कष्ट भोगय पड़लहुँ। तूँ दु:खी भेलें। आब तूँ पश्चाताप केलें। हम तोरा सँ प्रसन्न छी। आब तूँ घर जाकय विधिपूर्वक अनंत व्रत करे। चौदह वर्षपर्यंत व्रत केला सँ तोहर दु:ख दूर भऽ जेतौक। तूँ धन-धान्य सँ संपन्न भऽ जेमें।’ कौंडिन्य द्वारा ओहिना कैल गेल और हुनका सब क्लेश सँ मुक्ति भेट गेलनि।
श्रीकृष्ण केर आज्ञा सँ युधिष्ठिर सेहो अनंत भगवान केर व्रत केलनि जेकर प्रभाव सँ पांडव महाभारत केर युद्ध मे विजयी भेला आर चिरकाल धरि राज्य करैत रहला।
मिथिला मे अनन्त भगवान् केर पूजा:
मिथिलाक्षेत्र पुण्य भूमि मे ओना तऽ संपूर्ण व्यवहार वेदक बताओल बाट पर होइत अछि, अनन्त भगवान् केर पूजा सेहो ताहि अनुरूपें विधिपूर्वक गाम-गाम आ टोले-टोले समूह मे मनायल जाइत अछि। एहि ठाम प्रचलित प्रथा मुताबिक कोनो एक गोट बड़-बुजुर्ग व्रतधारी बनिकय सबहक हिस्सा अनन्तक डोरा आ फल-मिष्ठान्न प्रसाद सहित विधिपूर्वक पूजा करैत छथि। सब श्रद्धालू भक्तजन सपरिवार एहि पूजा मे सहभागी होइत छथि। संपूर्ण पूजा-अनुष्ठान भेलाक बाद ‘अनन्त भगवानक कथा’ सुनैत छथि। एकटा पैघ सनक थार-आरी मे दूध सँ भरल क्षीरसागर मानैत भगवान् अनन्त केर खोजी होइत अछि। पुरोहित द्वारा साधक-व्रतधारी सँ भगवान् भेटलाह कि नहि भेटलाह एहेन प्रश्न कैल जाइत अछि, अन्त मे भगवान् भेटि जाइत छथि आ उपस्थित जनमानस मे प्रसन्नता आबि जाइत अछि। भगवान् भेटिते हुनका नमस्कार-पाती करैत सब कियो अपन-अपन जीवन केँ सुखमय बनेबाक लेल प्रार्थनापूर्वक नमस्कार अर्पण करैत अछि। तदोपरान्त सबहक भागक डोरा आ प्रसाद ग्रहण करैत अनन्तक डोरा जाहि मे १४ टा गाँठ होइत अछि से पुरुष द्वारा दायाँ बाँहि पर आ स्त्रीगण द्वारा बामा बाँहि पर धारण कैल जाइत अछि। मानल बात छैक, आस्था आ विश्वास सँ शक्ति केर आविर्भूत होइत छैक। यदि हम सब एतेक विश्वास मानैत छी जे ई डोरा रक्षा सूत्र होइत अछि, साक्षात् भगवान् केर कृपा प्राप्त होइत अछि, तऽ निश्चिते एकर फलादेश सेहो तेहने होइत अछि। प्रेम सहित जयकारा लगाउ: अनन्त भगवान् की जय!!