भगवानक भजन कियैक करू!!

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आध्यात्मिक चिन्तन
sitaram2तुलसीदासकृत रामायण मे डेग-डेग पर सुन्दर ज्ञान केर दर्शन करायल गेल अछि। गारंटी एहि बातक अछि जे साधक नित्य रामायणक किछु चौपाई, दोहा आदि पढय, मनन करय तऽ मनुष्य जीवनक समुचित लाभक दर्शन भेटबे टा करतैक। जीवलोक मे मनुष्य जीवनक महत्त्व यैह कारण विशेष छैक जे पशु सँ मानव ‘विवेक’ केर कारण भिन्न छैक। आउ, रामायणक एकटा महत्वपूर्ण दर्शन पढी-गुनी!!
सोरठा:
बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।
गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥
भावार्थ:- गुरुक बिना कतहु ज्ञान भऽ सकैत अछि? अथवा वैराग्यक बिना कतहु कि ज्ञान भेट सकैत अछि? तहिना वेद और पुराण कहैत अछि जे श्री हरि केर भक्ति बिना कि सुख भेट सकैत अछि?॥89 (क)॥
कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु।
चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ॥89 ख॥
भावार्थ:- हे तात! स्वाभाविक संतोष केर बिना कि कियो शांति पाबि सकैत अछि? (चाहे) करोड़ों उपाय कयकेँ पैच-पैच मरू, (तैयो) कि कखनहु जल केर बिना नाव चैल सकैत अछि?॥89 (ख)॥
चौपाई :
बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं॥
राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा। थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा॥1॥
भावार्थ:- संतोषक बिना कामनाक नाश नहि होइत छैक आर कामनाक रहैत सपनो मे सेहो सुख नहि भऽ सकैत छैक और श्री राम केर भजन बिना कामना कि मेटा सकैत अछि? बिना धरतीक कतहु कि गाछ उगि सकैत अछि?॥1॥
बिनु बिग्यान कि समता आवइ। कोउ अवकास कि नभ बिनु पावइ॥
श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई। बिनु महि गंध कि पावइ कोई॥2॥
भावार्थ:- विज्ञान (तत्त्वज्ञान) केर बिना कि समभाव आबि सकैत अछि? आकाश केर बिना कि कोनो अवकाश (पोल) पाबि सकैत अछि? श्रद्धाक बिना धर्म (केर आचरण) नहि होइछ। कि पृथ्वी तत्त्व केर बिना कियो गंध पाबि सकैत अछि?॥2॥
बिनु तप तेज कि कर बिस्तारा। जल बिनु रस कि होइ संसारा॥
सील कि मिल बिनु बुध सेवकाई। जिमि बिनु तेज न रूप गोसाँई॥3॥
भावार्थ:- तप केने बिना कि तेज पसैर सकैत अछि? जल-तत्त्व केर बिना संसार मे कि रस भऽ सकैत अछि? पंडितजनक सेवा बिना कि शील (सदाचार) प्राप्त भऽ सकैत अछि? हे गोसाईं! जेना बिना तेज (अग्नि-तत्त्व) केर रूप नहि भेटैत अछि॥3॥
निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा। परस कि होइ बिहीन समीरा॥
कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा॥4॥
भावार्थ:- निज-सुख (आत्मानंद) केर बिना कि मन स्थिर भऽ सकैत अछि? वायु-तत्त्व केर बिना कि स्पर्श भऽ सकैत अछि? कि विश्वास केर बिना कोनो टा सिद्धि भऽ सकैत अछि? तहिना श्री हरि केर भजन बिना जन्म-मृत्यु केर भय केर नाश नहि होइछ॥4॥
दोहा :
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥90 क॥
भावार्थ:- बिना विश्वास केर भक्ति नहि होइछ, भक्तिक बिना श्री रामजी पिघलैत (ढरैत) नहि छथि और श्री रामजी केर कृपाक बिना जीव स्वप्न मे सेहो शांति नहि पबैछ॥90 (क)॥
सोरठा :
अस बिचारि मतिधीर तजि कुतर्क संसय सकल।
भजहु राम रघुबीर करुनाकर सुंदर सुखद॥90 ख॥
भावार्थ:- हे धीरबुद्धि! एना विचारिकय संपूर्ण कुतर्क और संदेह केँ छोड़िकय करुणाक खान सुंदर और सुख देनिहार श्री रघुवीर केर भजन करू॥90 (ख)॥