गणतंत्रक शोकगीत

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कविता

 

siyaram saras dhari prashna e uthaiya– सियाराम झा सरस

 

हम देखलौं रे हम देखलौं

अपन दुलारू लोकतंत्र केँ

लीढही खत्ता फेकलौं!! हम देखलौं….

 

चोरक बीच साधुकेँ ताकी

आब साधुए सँ बेसी पाकी

मसियौत-पिसियौत-ममियौती

पहिने तँ एना नै सुनलौं

ई की हम पढलौं-गुनलौं!! हम देखलौं….

 

राष्ट्रक मंदिर डाकूक मेला

तै मेला मे नोटक खेला

तै खेला मे धरम धकेला

जानि ने की जे मखलौं

होइए जे कोचिला चखलौं!! हम देखलौं…..

 

लोक तकइ दिल्ली दिस टुकटुक

दिल्ली छी भगजोगनी भुकभुक

मारू मुह बिजलीकेँ, भल कए

दीपक टेम ने लेसलौं

जाऽ बहुत जोर सँ ठेसलौं!! हम देखलौं….

 

उपरो मोने पुछितए कहियो

हमर मोल किछु बुझितय कहियो

हमरे हाथ रिमोटक बट्टम

तइयो हमही हुसलौं

ताजिनगी सिठ्ठी चुसलौं!! हम देखलौं….

 

वेद-ऋचा सन मूलमंत्र छल

जगत-प्रसिद्धे लोकतंत्र छल

अपनहिं हाथे अपन स्वप्न केर

टाटी-फड़की बुनलौं

ई कोन बाट जे चुनलौं!! हम देखलौं….

 

अस्ति-अस्ति छै हड्डी बैसल

मज्जाधरि मे वायरस पैसल

हुकहुक्की छै, छै-छै, नै छै

तत्र दीप नै जोगलौं

बस्स! जेहेन केलौं से भोगलौं!! हम देखलौं….