कृष्णाष्टमी विशेष
बाल्यकाल मे भगवद्भक्ति आ बाल-मनोविज्ञान
बच्चा मे भगवान् केर वास कहल जाइछ – ताहि बातक प्रत्यक्ष प्रमाण ई बच्चा प्रस्तुत कय रहल अछि। भगवान् केर नाम सँ स्वत: प्रेम आ जयकारा बच्चा सबहक प्रकृति मे रहैत छैक। जहिना बच्चा मे अपन माता-पिता आ नजदीक रहनिहार, सदिखन भेंट होनिहार लोक सब सँ स्नेह उत्पन्न होइत छैक, तहिना माय, बाप, बाबा, बाबी आदि केँ बेर-बेर भगवानक नाम सुमिरन करैत सेहो बच्चा मे स्वस्फूर्त भागवद् प्रेम झलकैत छैक। एतबा नहि, कहल जाइत छैक जे यदि अहाँ गर्भधारणक समय छठम् मास सँ बच्चा मे सद्गुण प्रवेश, भगवद्भक्ति, विद्याशक्ति, शास्त्र-पुराण आदि विभिन्न ज्ञान देबय चाहैत छी तऽ ओहि तरहक सत्संग माय केँ करय पड़त, ओहि तरहक प्रकरण सभ भरल पोथी पढय पढत आ निरंतर एकटा कल्पना करय पड़त जे हमरा सँ जे पुत्र-पुत्री (संतति) केर पदार्पण एहि धरातल पर होयत ओ हमर कल्पना अनुरूप एहेन भक्तमान्, ईमानदार, सत्यनिष्ठ, सुन्दर, सुशील आ बहादुर बनय। कृष्ण जन्माष्टमीक शुभ अवसर पर राखल गेल ई दृष्टान्त मित्र ओ भाइ जितेन्द्र ठाकुर जी केर पुत्र केर थीक। एहि बच्चा मे एकटा विलक्षण संस्कार देखल जा रहलैक अछि जे ई टेलिविजन पर जखनहि भजन-कीर्तन सुनैत अछि तऽ स्वत: अपनो गान करय लगैत अछि। निश्चित रूप सँ सुसंस्कृत-सज्जन परिवारक धियापुता मे ई सद्गुण अवस्से भेटैत अछि। बाल-मनोविज्ञान मे सेहो एहि बातक चर्चा अछि जे यदि अहाँ बच्चा सबमे नीक गुण देखय लेल चाहैत छी तऽ ओहि नीक गुण सँ भरल आचरण स्वयं मे आनू।