आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम्।
पञ्चदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्॥मत्स्यपुराण॥
सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु – यैह पञ्चदेव कहल गेला अछि। हिनकर पूजा समस्त कार्य मे करबाक चाही।
पञ्चदेवपूजा (आगमोक्त-पद्धति):
प्रतिदिन पञ्चदेव-पूजा अवश्य करबाक चाही। यदि वेदक मन्त्र अभ्यस्त नहि छी तऽ आगमोक्त मन्त्र सँ, यदि ताहू मे अभ्यस्त नहि होइ तँ नाम-मन्त्र सँ और यदि ईहो सम्भव नहि हो तँ बिना मन्त्रक जल, चन्दन आदि चढबैत पूजा करबाक चाही।
गृह-मन्दिरमें स्थित पञ्चदेव-पूजा:
विनियोग:
भूतोत्सादन मन्त्र:
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूतले स्थिताः।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया॥
आसन पवित्र करबाक विनियोग एवं मन्त्र:
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठः ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता, आसनपवित्रकरणे विनियोगः।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पूजाक बाहरी तैयारी:
शास्त्र मे पूजा केँ हजारगुना अधिक महत्त्वपूर्ण बनेबाक लेल एकटा उपाय कहल गेल अछि। ओ उपाय थीक, मानसपूजा। जेकरा पूजा सँ पहिने करबाक लेल आ फेर बाह्य वस्तु सँ पूजा करबाक लेल कहल गेल अछि। ‘कृत्वादौ मानसीं पूजां ततः पूजां समाचरेत्। (मुद्गलपुराण)’
पहिने पुष्प-प्रकरण मे शास्त्रक एकटा वचन उद्धृत कैल गेल अछि, जाहि मे कहल गेल अछि जे मनःकल्पित यदि एकटा फूल सेहो चढा देल जाय तऽ करोड़ों बाहरी फूल चढेबाक बराबर होइत अछि। तहिना मानस चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य सँ सेहो भगवान् केर करोड़गुना अधिक संतोष दऽ सकैत छी। अतः मानसपूजा बहुत अपेक्षित अछि।
मानसपूजा:
वस्तुतः भगवान् केँ कोनो वस्तुक आवश्यकता नहि छन्हि, ओ तऽ भावकेर भूखल छथि। संसार मे एहेन दिव्य पदार्थ उपलब्धे नहि अछि, जाहि सँ परमेश्वर केर पूजा कैल जा सकैछ। ताहि लेल पुराण मे मानसपूजाक विशेष महत्त्व मानल गेल अछि। मानसपूजा मे भक्त अपन इष्टदेव केँ मुक्तामणि सँ मण्डित कय स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान करैत अछि। स्वर्गलोकक मन्दाकिनी गंगाक जल सँ अपन आराध्य केँ स्नान करबैत अछि, कामधेनु गौ केर दुग्ध सँ पञ्चामृतक निर्माण करैत अछि। वस्त्राभूषण सेहो दिव्य अलौकिक होइत अछि। पृथ्वीरूपी गन्धक अनुलेपन करैत अछि। अपन आराध्यक लेल कुबेरक पुष्पवाटिका सँ स्वर्णकमलपुष्पक चयन करैत अछि। भावना सँ वायुरूपी धूप, अग्निरूपी दीपक तथा अमृतरूपी नैवेद्य भगवान् केँ अर्पण करबाक विधि अछि। एकरा संगहि त्रिलोक केर सम्पूर्ण वस्तु आदि केर उपचार सच्चिदानन्दघन परमात्म-प्रभुकेर चरण मे भावना सँ भक्त अर्पण करैत अछि। यैह थीक मानसपूजाक स्वरूप। एकर एकटा संक्षिप्त विधि सेहो पुराण मे वर्णित अछि। जे नीचाँ लिखल जा रहल अछि –
१. ॐ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि। (प्रभो! हम पृथ्वीरूप गन्ध-चन्दन अपने केँ अर्पित करैत छी।)
२. ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि। (प्रभो! हम आकाशरूप पुष्प अपने केँ अर्पित करैत छी।)
३. ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि। (प्रभो! हम वायुदेव केर रूप मे धूप अपने केँ प्रदान करैत छी।)
४. ॐ रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि। (प्रभो! हम अग्निदेव केर रूप मे दीपक अपने केँ प्रदान करैत छी।)
५. ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि। (प्रभो! हम अमृतक समान नैवेद्य अपने केँ निवेदन करैत छी।)
६. ॐ सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि। (प्रभो! हम सर्वात्मा केर रूप मे संसारक सब उपचार केँ अपनेक चरण मे समर्पित करैत छी।)
एना भावनापूर्वक मानसपूजा कैल जा सकैत छैक!
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। उमामहेश्वराभ्यां नमः। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। शचीपुरन्दराभ्यां नमः। मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः। इष्टदेवताभ्यो नमः। कुलदेवताभ्यो नमः। ग्रामदेवताभ्यो नमः। वास्तुदेवताभ्यो नमः। स्थानदेवताभ्यो नमः। एतत्कर्मप्रधानदेवताभ्यो नमः। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
पूजन केर संकल्प:
निष्काम संकल्प: ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य …… (वत्स गोत्रः प्रवीण नारायण शर्मा) अहं श्री परमेश्वरप्रीत्यर्थं विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गार्चनं करिष्ये।
सकाम संकल्प: ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य …… सर्वाभीष्टस्वर्गापवर्गफलप्राप्तिद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गार्चनं करिष्ये।
घण्टा-पूजन: घण्टा केँ चन्दन और फूल सँ अलङ्कृत करैत निम्नलिखित मन्त्र पढिकय प्रार्थना करी –
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं च रक्षसाम्।
कुरु घण्टे वरं नादं देवतास्थानसंनिधौ॥
प्रार्थनाक बाद घण्टा केँ बजाबी और यथास्थान राखि दी।
घण्टास्थिताय गरुडाय नमः।
एहि नाममन्त्र सँ घण्टा मे स्थित गरुडदेवक सेहो पूजन करी।
शङ्खपूजन – शङ्ख मे दुइ दर्भ या दूब, तुलसी और फूल राखिकय ‘ॐ’ कहिकय ओकरा सुवासित जलसँ भैर दी। एहि जल केँ गायत्री-मन्त्र सँ अभिमन्त्रित कय दी। फेर निम्नलिखित मन्त्र पढिकय शङ्ख मे तीर्थक आवाहन करी –
पृथिव्यां यानि तीर्थानि स्थावराणि चराणि च।
तानि तीर्थानि शङ्खेऽस्मिन् विशन्तु ब्रह्मशासनात्॥
शङ्खाय नमः, पुष्पं समर्पयामि – कहिकय फूल चढाबी। तेकर बाद निम्नलिखित मन्त्र पढिकय शङ्खकेँ प्रणाम करी –
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे।
निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य! नमोस्तु ते ॥
प्रोक्षण – शङ्खमे राख गेल पवित्री सँ निम्नलिखित मन्त्र पढिकय अपना ऊपर तथा पूजाक सामग्री आदिपर छिड़की –
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः॥
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः॥
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति!
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु॥
एकरा बाद निम्नलिखित मन्त्र सँ उदकुम्भ केँ प्रार्थना करी –
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ! विधृतो विष्णुना स्वयम्॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः॥
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः।
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं कर्तुमीहे जलोद्भव।!
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा॥
आब पञ्चदेव केर पूजा करी। सब सँ पहिले ध्यान करी:
विष्णुक ध्यान
उद्यत्कोटिदिवाकराभमनिशं शङ्खं गदां पङ्कजं
चक्रं बिभ्रतमिन्दिरावसुमतीसंशोभिपार्श्वद्वयम्
कोटीराङ्गदहारकुण्डलधरं पीताम्बरं कौस्तुभै-
र्दीप्तं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छ्रीवत्सचिह्नं भजे॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ विष्णवे नमः!
उदीयमान करोड़ों सूर्यक समान प्रभातुल्य, अपन चारू हाथमे शङ्ख, गदा, पद्म तथा चक्र धारण केने एवं दुनू भाग मे भगवती लक्ष्मी और पृथ्वीदेवी सँ सुशोभित, किरीट, मुकुट, केयूर, हार और कुण्डल सँ समलङ्कृत, कौस्तुभमणि तथा पीताम्बर सँ देदीप्यमान विग्रहयुक्त एवं वक्षःस्थलपर श्रीवत्सचिह्न धारण केने भगवान् विष्णुक हम निरन्तर स्मरण-ध्यान करैत छी।
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ शिवाय नमः!!
चाँदीक पर्वत केर समान जिनक श्वेत कान्ति अछि, जे सुन्दर चन्द्रमाक आभूषण-रूप सँ धारण करैत छथि, रत्नमय अलङ्कार सँ जिनकर शरीर उज्ज्वल अछि, जिनकर हाथ मे परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा अछि, जे प्रसन्न अछि, पद्म केर आसनपर विराजमान अछि, देवतागण जिनक चारूकात ठाढ भऽ कय स्तुति करैत छथि, जे बाघक खाल पहिरैत छथि, जे विश्वक आदि जगत् केर उत्पत्तिक बीज और समस्त भय केर हरन करऽवला छथि, जिनक पाँच मुंह और तीन नेत्र अछि, ओहि महेश्वर केर प्रतिदिन ध्यान करैत छी।
गणेशक ध्यान
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थ
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्री गणेशाय नमः।
जे छोट आ मोट शरीरवला छथि, जिनक गजराज केर समान मुख और लम्बा उदर अछि, जे सुन्दर छथि तथा बहैत मदकेर सुगन्धक लोभी भौंराक चाटला सँ जिनकर गण्डस्थल चपल भऽ रहल अछि, दाँतक चोट सँ विदीर्ण भेल शत्रु केर खून सँ जे सिन्दूरक-सन शोभा धारण करैत छथि, कामना आदिक दाता और सिद्धि देनिहार छथि ओहि पार्वतीक पुत्र गणेशजी केर हम वन्दना करैत छी।
रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जै-
र्माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्रीसूर्याय नमः!!
लाल कमल केर आसनपर समासीन, सम्पूर्ण गुणकेर रत्नाकर, अपन दुनू हाथ मे कमल और अभयमुद्रा धारण केने, पद्मराग तथा मुक्ताफल केर समान सुशोभित शरीरवाला, अखिल जगत् केर स्वामी, तीन नेत्रसँ युक्त भगवान् सूर्य केर हम ध्यान करैत छी।
सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शङ्खं चक्रधनुःशरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता।
आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ श्री दुर्गायै नमः!!
जे सिंहक पीठपर विराजमान छथि, जिनक मस्तकपर चन्द्रमाक मुकुट अछि, जे मरकतमणिक समान कान्तिवाली अपन चारू भुजामे शङ्ख, चक्र, धनुष और बाण धारण करैत छथि, तीन नेत्रसँ सुशोभित होइत छथि, जिनकर भिन्न-भिन्न अङ्ग बाँधल बाजूबंद, हार, कङ्कण, खनखनाइत करधनी और रुनझुन करैते नूपुर सँ विभूषित छथि तथा जिनकर कान मे रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाइत रहैत अछि, वैह भगवती दुर्गा हमर दुर्गति दूर करयवाली होइथ।
आब हाथ मे फूल लऽ कय आवाहनक लेल पुष्पाञ्जलि दी –
पुष्पाञ्जलि – ॐ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गाभ्यो नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
यदि पञ्चदेव केर मूर्ति नहि हो तऽ अक्षतपर हिनका लोकनिक आवाहन करी। मन्त्र नीचाँ देल जा रहल अछि। देवता सब केँ एहि तरहें राखी:
१. शिव (बायाँ भाग ऊपरका कोनामे)
२. देवी (बायाँ भाग निचुलका कोनामे)
३. विष्णु (केन्द्रविन्दुमे)
४. गणेश (दायाँ भाग ऊपरका कोनामे)
५. सूर्य (दायाँ भाग नीचुलका कोनामे)
आवाहन:
आगच्छन्तु सुरश्रेष्ठा भवन्त्वत्र स्थिराः समे।
यावत् पूजां करिष्यामि तावत् तिष्ठन्तु संनिधौ॥
ॐ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गाभ्यो नमः, आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि। (पुष्प समर्पण करी।)
आसन:
अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्।
कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आसनार्थे तुलसीदलं समर्पयामि। (तुलसीदल समर्पण करी।)
पाद्य:
गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम्।
पाद्यार्थं सम्प्रदास्यामि गृह्णन्तु परमेश्वराः॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि। (जल अर्पण करी।)
अर्घ्य:
गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं सम्पादितं मया।
गृह्णन्त्वर्घ्यं महादेवाः प्रसन्नाश्च भवन्तु मे॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, हस्तोरर्घ्यं समर्पयामि। (गन्ध, पुष्प, अक्षत मिलल अर्घ्य अर्पण करी।)
तोयमाचमनीयार्थं गृह्णन्तु परमेश्वराः॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि। (कर्पूरसँ सुवासित सुगन्धित शीतल जल समर्पण करी।)
स्नान:
मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागुरुवासितैः।
स्नानं कुर्वन्तु देवेशा जलैरेभिः सुगन्धिभिः॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि। (शुद्ध जलसे स्नान कराबी।)
आचमन:
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (स्नान करेलाक बाद आचमन केर वास्ते जल दी।)
पञ्चामृत-स्नान:
पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्।
पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि। (पञ्चामृत सँ स्नान कराबी।)
गन्धोदकस्नान:
मलयाचलसम्भुतचन्दनेन विमिश्रितम्।
इदं गन्धोदकं स्नानं कुङ्कुमाक्तं नु गृह्यताम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, गन्धोदकं समर्पयामि। (मलय चन्दन सँ सुवासित जल सँ स्नान कराबी।)
शुद्धोदकस्नान:
मलयाचलसम्भूतचन्दनाऽगरुमिश्रितम्।
सलिलं देवदेवेश! शुद्धस्नानाय गृह्यताम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (शुद्धोदक स्नान करेलाक बाद आचमन करबाक लेल पुनः जल चढाबी।)
आचमन:
शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र और उपवस्त्र:
शीतवातोष्णसंत्राणे लोकलज्जानिवारणे।
देहालङ्करणे वस्त्रे भवद्भ्यो वाससी शुभे॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, वस्त्रमुपवस्त्रं च समर्पयामि। (वस्त्र और उपवस्त्र चढेलाक बाद आचमनक लेल जल चढाबी।)
आचमन:
वस्त्रोपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृह्णन्तु परमेश्वराः॥
आचमन:
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं चलं समर्पयामि।
चन्दन:
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥
पुष्पमाला:
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः।
मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
तुलसीदल और मञ्जरी:
तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम्।
भवमोक्षप्रदां रम्यामर्पयामि हरिप्रियम्॥
धूप:
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥
दीप:
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृह्णन्तु देवेशास्त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥
तदनोपरान्त हाथ धो कय नैवेद्य निवेदन करी –
नैवेद्य:
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
नैवेद्यान्ते ध्यानं ध्यानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।
(नैवेद्य देलाक बाद भगवान् केर ध्यान करी – ई मानिकय जे भगवान् भोग लगा रहला अछि। ध्यानक बाद आचमन करबाक लेल जल चढाबी और मुख-प्रक्षालनक लेल तथा हस्त-प्रक्षालनक लेल जल दी।)
इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि।
(ऋतुफल अर्पण करी, तेकर बाद आचमन तथा उत्तरापोऽशनक लेल जल दी।)
ताम्बूल:
पूगीफलं महद् दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
एलालवंगसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि।
(सुपारी, इलायची, लवंगक संग पान चढाबी।)
दक्षिणा:
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥
आरती:
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदो भव॥
शङ्ख-भ्रामण:
शङ्खमध्ये स्थितं तोयं भ्रामितं केशवोपरि।
अङ्गलग्नं मनुष्याणां ब्रह्महत्यां व्यपोहति॥
जल सँ भरल शङ्ख केँ पाँच बेर भगवान् केर चारू कात घुमाकय शङ्ख केँ यथास्थान राखि दी। भगवान् केर अँगोछा सेहो घुमा दी। आब दुनू हथेली सँ आरती ली। शङ्खक जल केँ अपना ऊपर तथा उपस्थित लोक सबपर छिड़ैक दी।
निम्नलिखित मन्त्र सँ चारि बेर परिक्रमा करी (परिक्रमाक स्थान नहि होय तऽ अपन आसनहि पर चारि बेर घूमि जाय।)
प्रदक्षिणा:
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
मन्त्रपुष्पाञ्जलि:
श्रद्धया सिक्तया भक्तया हार्दप्रेम्णा समर्पितः।
मन्त्रपुष्पाञ्जलिश्चायं कृपया प्रतिगृह्यताम्॥
नमस्कार:
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः॥
प्रार्थनापूर्वक नमस्कार करी।
हरिः ॐ! हरिः हरः!!