स्वाध्याय आलेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
भक्ति भगवान् प्रति पूर्ण समर्पणकेर नाम होइछ। एक सँ बढिकय एक दार्शनिक आ ज्ञानी द्वारा भक्ति पर अपन मत आ विचार राखैत एकरे सर्वोपरि संपत्ति मानल गेल अछि। विभिन्न शास्त्रोक्त गूढ वचन मे अभीष्ट केवल भक्ति प्राप्ति केँ कहल गेल अछि। जखन-जखन साक्षात् परमेश्वर कोनो भक्त पर कृपा करैत अपन लीलारूप सँ साक्षात् रूपक दर्शन देलनि, तऽ भक्त पहिल माँग यैह मंगलक जे सदैव अपन चरणक भक्ति देने रहू, बाकी अभीष्ट इच्छाक वरदान तऽ अहाँक भक्ति मे हमर ओहिना प्राप्त होइत रहैत अछि। आउ, भक्तिक सर्वोत्तम रूप ‘नवधा भक्ति’ एकटा सुन्दर उदाहरणक संग अध्ययन करी आजुक स्वाध्याय मे।
शबरीक ऐँठ वैर भगवान् राम बड हलैस कय खेलनि। शबरी जखन कि भिलनी जातिक अछूत मानल जाइत छलीह ओहि समयक समाज मे। शबरी एकटा निकृष्ट अछूत परिवारक रहितो मन मे बच्चहि अवस्था सँ एकटा निर्भीक निर्णय केने छलीह, जे एहेन निकृष्ट जीवन – लोक-समाज लेल अछूत बनि धरती पर पैदा लेल जीवन सँ कि लाभ, बरु भगवान् केर सुमिरन करनिहारक संग यदि जीवन बितायब तऽ जरुर हमरो कल्याण भऽ जायत। एतेक सोचि ओ अपन जीवन मे विरक्तिकेँ अंग लगबैत वन गमन केलनि आ एकटा साधूक कुटिया पर पहुँचि ओतय सेवा करबाक अवसर माँगि ओतय रहल लगलीह। हुनक सेवा आ समर्पण सँ गुरु एतेक प्रसन्न भेलाह जेकर चर्चा फेर कोनो दोसर दिनक आलेख मे करब। एतबे संछेप मे बुझल जाउ जे शबरीक भक्ति सँ गुरु एतेक प्रभावित भेलाह जे अन्ततोगत्वा ओहि साधूक आश्रम पर पूर्ण अधिकार शबरी केँ सौंपि ओ समाधिस्थ भऽ गेलाह, हलाँकि एहि बीच शबरी पर कतेक प्रकारक अत्याचार बाकीक जलनशील साधू समाज केलनि, गुरु पर्यन्त केँ आक्षेप लागल आ शबरीक अनेको प्रकारक परीक्षा भेलो पर साक्षात् परमेश्वरक कृपा सँ ओ सब दिन निश्छल-निष्कलंक आ समर्पित रहलीह। हुनका गुरु द्वारा देल एकटा अपूर्व वचन जे ‘अहाँ अपन भक्ति मे लीन रहू, ईश्वर तऽ ओानहू सदिखन अहाँक संग छथिये, मुदा ओ अहाँक एकमात्र अभीष्ट इच्छा जे एक दिन प्रभुजी सँ साक्षात्कार होयत, से जरुर पूरा होयत’ – एहि पर अडिग रहैत शबरी नित्य जंगल सँ मीठ-मीठ वैर तोड़ि राखैथ जे आइये कहीं प्रभुजी नहि आबि जाइथ… हुनका भोग लगायब तऽ एहि लेल मीठ वैर तोड़ि रखैत छी। अन्त मे एक दिन सही मे भगवान् राम आबिकय हुनका संग बैसिकय ओहि जूठ वैर केँ बड प्रेम सँ भोग लगबैत छथि।
स्वयं भगवान् राम द्वारा शबरीक भक्ति केर सराहना हमरा सभ लेल अनुकरणीय अछि। शबरी मे नवधा भक्तिक चर्च कयलन्हि अछि श्रीराम! आउ देखी विस्तार सँ:
‘प्रथम भगति संतन कर संगा’
शबरीक दोसर कोनो काज नीके नहि लगैन, सिवाये साधू-संतकेर कुटियामे सेवा प्रदान करबाक। कतबो लोक अछूत कहि हुनका भगैयो देलकैन, मुदा ओ बस टकटकी लगौने केवल सेवाभाव आ समर्पण संग आश्रम नजदीक एक कुटिया बनाय रहलीह आ गुरुप्रेममे पागल शबरी गुरुवचनकेँ सदिखन स्मृतिमे रखलीह जे अहाँ संग प्रभुजी एक दिन जरुर साक्षात्कार होयत, बस हुनका लेल गुरुवचन अन्तिम सत्य छल। अपन गुरुक नित्य दर्शन करैत दूर कातमे पड़ल शबरी पूर्ण समर्पण भाव आ बिना कोनो तरहक केकरो लेल, एतय तक जे साधूसमूह झारि-फटकारि गुरुसेवा सँ वञ्चित करैत आश्रम सऽ बाहर निकाइल देने छलन्हि… तेकरोप्रति कोनो दुर्भावना केँ अपनामे जगह नहि दैत बस केवल गुरुवचनकेँ सत्य मानैत नित्य रामजीक इन्तजार करैत रहलीह। नित्य फल तोड़ि लाबैथ। प्रेम कतेक अबोध आ बालबुद्धि सन छलन्हि जेकर परावार नहि। भगवान् केँ भोग लगेती, लेकिन मीठ फर… आ मीठ फर पहिले अपने जीभ पर स्वाद लेती… अर्थात् जे मीठ वैर छैक प्रभुजी लेल वैह टा डालीमे संग्रह करती। हाय रे निश्छल प्रेम! आँखिमे नोर भरैछ जखन-जखन हुनक ई प्रसंग केँ ध्यान करैत छी। यैह भावकेँ राम स्थान दैत छथि। बहुत चाव सऽ ओ शबरीक आँइठ वैरक भोग लगबैत छथि नहि कि आश्रमक अनमोल कंद-मूल-फल!
‘दूसरी रति मम कथा प्रसंगा’
साधू हुनका एहि लेल नीक लगैत छलन्हि जे ओहिठाम अन्य कोनो अर्र-दर्र बाते नहि बल्कि जेम्हर-तेम्हर रामहि-राम!
‘गुरु पद सेवा तीसरी भक्ति अमान’
पहिले कहि चुकल छी, गुरुप्रेम शबरीक निश्छल, निष्कपट आ पूर्ण समर्पण संग छलन्हि। रामजीक कृपा सँ, गुरुओ हुनका लेल ओतबे सोचैथ। अंततोगत्वा गुरु हुनका लेल सभ साधूसमाज तक सऽ मोहभंग करैत अपन सर्वस्व हुनकहि संरक्षणमे छोड़ि समाधिस्थ भऽ गेलाह। गुरु-शिष्याक पवित्र सम्बन्धकेँ अमरत्त्व सेहो प्रदान कय गेलाह। शिष्या सेहो शिक्षा लेनिहैर नहि, बस सेवा-सुश्रुषा देनिहैर। एकमात्र दासत्वकेँ स्वीकार केनिहैर शबरी, अपन जीवनक एकहि टा उद्देश्य जे आन काज हम किऐक करी, हुनकर सेवा करी जे रामजीक सेवामे निरंतर अपन जीवन लगौने छथि। वाह! वाह! मुँह सँ हृदयक आवाज आइ युगो उपरान्त ई लेखनी करैत निकैल रहल अछि जे हम बड़भागी बनैत छी यदि शबरीकेँ सुमिरैत छी। शबरीक सुमिरन सऽ रामजीक सुमिरन पर्यन्त भऽ रहल अछि। आगू देखी, रामजी स्वयं कहि रहल छथि।
‘चौथी भक्ति मम गुणगान, करै कपट तजि गान’
संगत साधू-संतक रहलापर एहि बातक गारंटी छैक, गान केकर करत लोक सिवाये भगवान् केर? अवश्य एक अवलंब छथि दीनबंधु! तखन भटकब किऐक? शबरी तऽ गार्हस्थ जीवनमे प्रवेश कदापि नहि करब आ ता-उम्र ईशक सेवा कयनिहारक सेवा करब सोचि आयल छलीह। दोसर काजे कि? बस प्रभुके गुण गाउ, रुख-सुख खाउ! कपट काजक नहि! सावधान!
‘मंत्र जाप मम दृढ विश्वासा, पंचम भजन जो वेद प्रकाशा’
वेदक प्रकाश यैह छैक जे मंत्र जपू, नाम सुमिरू, लेकिन ई सभ करू तखन जखन दृढ विश्वास हो जे आब अन्य किछु उपाय हमरा लेल अछिये नहि। निःसन्देह, शबरी बाल्यावस्थामे अपन बड़-बुजुर्गसँ ई सुनलीह जे जीवन बस मृत्यु लेल भेटैत छैक आ जीवनकालमे यदि माधवसेवा हो तऽ पार लगैत छैक, बस फेर कि छलैक, ओ नित्य देव-सुमिरन मे देवपुरुष केर सत्संग सँ आनन्दपूर्वक जीवन-निर्वहन करय लगलीह! ओ ताहि समाज लेल अछूत छलीह, लेकिन मन गंगा सँ पखारल छलन्हि। ओ निर्मल छलीह जे एतेक अटूट विश्वास केर संग पूर्ण निर्णय आ दृढताक संग यैह कार्य लेल अपन जीवन समर्पित कय देलीह। कहू! ई अनुकरणीय नहि तऽ आर कि? भटकैत रहबाक विचार हो तऽ स्वतंत्र छी प्रवीण!
‘छठा दास शील बिरति बहु कर्मा, निरत निरंतर सज्जन धर्मा’
कहि चुकल छी, शबरी लेल अन्य कोनो काज नहि! बस सेवा आ सेवा! सेवा बड़ पैघ कर्म छैक। आजुक प्रोफेशनल युगमे सेवा मूल्य लेल कैल जैछ, मूल्य केहेन तऽ भौतिक सुख! परञ्च जे सेवा निष्काम आ केवल ईशक हेतु बुझि कैल जाय तऽ ओकरा असल प्रभु-दासतामे समर्पित मानी। सज्जनकेर सेवा धर्म थीक। आब सज्जन के से विचारयमे बहुत समय लगा देबैक तऽ देरी नहि भऽ जाय! सावधान प्रवीण!
‘सप्तम सम मोहि जग देखा, मो ते संत अधिक कर लेखा’
बस हंसी लगैछ! देखैत छी कि आ देखा रहल अछि कि! जी! शबरी सभ संसारमे केवल हुनकहि देखलैथ। संतक सेवामे मेवा देखलैथ। कारण पहिले गुरु, तखनहि गोविन्द-ब्रह्म!
‘आठवाँ यथा लाभ संतोषा, सपनेउ नहि देखै परदोषा’
सुखक मूल जे जतेक भेटल तहीमे प्रसन्न छी। शबरीकेँ आर कि चाही? प्रवीण बौआइत छथि। भूखल डिरियैत छथि। लेकिन शबरी तऽ पहिले सभकेँ प्रसन्न करैत छथि, तखन जे भेटल तहीमे हैप्पी! तहुँ सीख ले प्रवीण!
‘नवमाँ सरल सब सन छलहीना, मम भरोस हिय हरष न दीना’
एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास
एक राम घनश्याम हित जातक तुलसीदास!
संसारमे जे छैक बस वैह छथि, एहि विश्वास केर संग सरल आ सभ संग छलविहीन व्यवहारक संग प्रभुजीक भरोसा रखैत बिना सुखी-दुःखी भेने जीवन शबरी जिलैथ।
हे मानव समुदाय अहुँ लेल मैथिली जिन्दाबाद पर पवित्र चौमासकेर सुअवसर पर हम यैह शुभकामना बेर-बेर देब जे नवधा भक्ति प्राप्त करू।
हरिः हरः!!