विशिष्ट दर्शन
मूल लेखक: श्री लक्ष्मीकान्त त्रिवेदी (अनुवाद: प्रवीण नारायण चौधरी)
श्रीकृष्णक नित्य प्रातःक्रिया
दध्यौ प्रसन्नकरणं आत्मानं तमसः परम्॥
एकं स्वयंज्योतिरनन्यमव्ययं
स्वसंस्थया नित्यनिरस्तकल्मषम्।
ब्रह्माख्यमस्योद्भवनाशहेतुभिः
स्वशक्तिभिर्लक्षितभावनिर्वृतिम्॥
अथाप्लुतोऽभस्यमले यथाविधि
क्रियाकलापं परिधाय वाससी।
चकार सन्ध्योपगमादि सत्तमो
हुतानलो ब्रह्म जजाप वाग्यतः॥
उपस्थायार्कमुद्यन्तं तर्पयित्वात्मः कलाः।
देवानृषीन्पितॄन्वृद्धान्विप्रानभ्यर्च्य चात्मवान्॥
धेनूनां रुक्मश्रृङ्गीणां साध्वीनां मौक्तिकस्रजाम्।
पयस्विनीनां गृष्टीनां सवत्सानां सुवाससाम्॥
ददौ रूप्यखुराग्राणां क्षौमाजिनतिलैः सह।
अलङ्कृतेभ्यो विप्रेभ्यो बद्वं बद्वं दिने दिने॥
गोविप्रदेवतावृद्धगुरून्भूतानि सर्वशः।
नमस्कृत्यात्मसम्भूतीर्मङ्गलानि समस्पृशत्॥श्रीमद्भा. १०/७०/४-१०॥
भगवान् श्रीकृष्णजी ब्राह्ममुहूर्तमे उठिकय हाथ-पैर धो कय जलसँ आचमन कय सब इन्द्रिय केँ प्रसन्न कय मनकेँ प्रकृति सँ परे आत्मामे लगा देलनि अर्थात् आत्मध्यान करय लगला। ओ केवल, स्वप्रकाश-उपाधिशून्य, अविनाशी, अखण्ड, अज्ञानरहित और जगत् केर उत्पत्ति तथा नाशक कारण जे अपन शक्ति सब छन्हि, ताहि केर द्वारा टा जिनक सत्ता बुझबा मे अबैत अछि, एहेन श्रीकृष्ण ब्रह्म नामक अपनहि सच्चिदानन्दमय स्वरूपकेर ध्यान मे मग्न भऽ गेला। तदनन्तर सत्पुरुष मे श्रेष्ठ श्रीकृष्णजी शुद्ध जल मे स्नान कय पवित्र वस्त्र पहिरि और विधिपूर्वक सन्ध्योपासनादि नित्य-क्रिया और अग्नि मे हवन कय ओ मौन होइत गायत्री मन्त्रक जप करय लगला। फेर सूर्य उदय भेलापर श्रीहरि ठाढ भऽ कय सूर्यक उपस्थान केलनि, पश्चात् अपनहि अंशरूप देवता, ऋषि और पितर केर तर्पण करैत ओहि आत्मवान् स्वरूपस्थित परमात्मा श्रीकृष्ण बड़-बुजुर्ग और ब्राह्मणक पूजा केलनि। तेकर बाद अपने ब्राह्मण केँ वस्त्र, आसन और तिलसहित तेरह हजार चौरासी गाय दान देलनि। अपने प्रतिदिन एतेक गाय दान देल करैत छलाह। ओहि गायक सींग सोना सँ और खुर चाँदी सँ मँढल रहैत छल, गलामे मोतीक माला पड़ल रहैत छल, देह पर झूल ओढायल रहैत छल। एहेन दुधारू, एक बेर बियाअल (पहिलोठ), सुशीला, बच्छा सहित गाय दय श्रीकृष्ण अपन विभूति गौ, ब्राह्मण, देवता, वृद्ध, गुरु और सम्पूर्ण प्राणीकेँ प्रणाम केलनि और मांगलिक पदार्थ केर स्पर्श कयलनि। यैह श्रीकृष्णक दैनिक प्रातःकाल केर नित्यक्रिया छल, एकरा संगहि आजुक भारतीय द्विजाति केर क्रियाक मिलान करू –
तहिया —————- आब
ब्राह्ममुहूर्त मे उठनाय —– आठ बजे तक पड़ल रहनाय।
आत्माक ध्यान केनाय —– अखबार पढैते संसारक प्रपंच केर स्मरण केनाय।
शुद्ध जल मे स्नान केनाय —– चर्बीमिश्रित साबुन और प्रायः मद्ययुक्त सुगन्ध-द्रव्य लगबैत नलक अपवित्र जलमे नहेनाय।
सन्ध्योपासना केनाय —– पर-चर्चा केनाय।
हवन केनाय —– धूम्रपान केनाय।
गायत्री जप केनाय —– जप करनिहारक खिल्ली उड़ेनाय।
देवता, ऋषि, पितृ-तर्पण केनाय —– अपन व्यक्तिगत स्वार्थक चिन्ता मे परिवारक लोक प्रति खराब सोचनाय।
बड़-बुजुर्ग और ब्राह्मण केँ पूजनाय —– बड़-बुजुर्ग केँ मूर्ख बतबैत और ब्राह्मण-निन्दा केनाय।
ब्राह्मण केँ गौ-दान देनाय —— ब्राह्मण-अतिथिय केँ घरसँ निकालि देनाय।
विचार करू और अपन कर्तव्य निश्चित करू। जय हो!
प्रभुजीक दिनचर्यापर चर्चा
अचिन्त्यगति भगवान् श्रीकृष्णक महिमा वेद, पुराण, उपनिषद् एवं अन्यान्य शास्त्र मे बहुते प्रकार सँ गायल गेल अछि। अनेक ऋषिगण, मुनि, संत, भक्त एवं विद्वान् हुनकर महिमाक गान कय अपन वाणी केँ सफल कयलनि अछि। अनेको संत-महात्मा भगवान् श्रीकृष्णक नाम-गुण आदिक गान तथा चरणक सेवा करैत अपन जीवन केँ धन्य मानलनि और परमगति प्राप्त कयलनि। श्रीकृष्णद्वैपायन मुनि स्वयं भगवान् श्रीकृष्णक कलावतार छथि। ओ महाभारत नामक इतिहास तथा श्रीमद्भागवत आदि पुराण मे भगवान् केर जाहि रहस्यमयी मधुर मनोहर लीला सबहक विशद वर्णन कयलनि अछि, ओ बुद्धिवादी लोककेर सूक्ष्म चिन्तनक गतिसँ परे अछि, परंतु श्रद्धालु भक्तक लेल ओ परमानन्दप्रदायिनी अछि। भगवान् केर लीलाक गान भगवती शारदादेवी वीणा बजाकय कल्पभरि करैत रहथि, भगवान् गणेशजी अपन लेखनी सँ कल्पो धरि लिखैत रहथि और भगवान् शेषनाग अपन सहस्र मुख सँ कल्पो तक गान करैत रहता तैयो पार नहि पाबि सकैत छथि। फेर अस्मदादि तुच्छबुद्धि मनुष्य भले, हुनकर लीलाक कि गान कय सकैत अछि। अपन एहि देश भारतवर्ष धर्मप्राण (धर्मप्रधान) देश कहल जाएत अछि। एतुका बड़-बड़ लोक, राजा एवं सम्राट सेहो भोगादि केँ लात मारिकय भगवान् श्रीकृष्णक चरणक सेवा केलनि, अरण्यक आश्रम लेलनि और विशुद्ध धर्मक आचरण करैत लोक केँ शिक्षा देलनि अछि।
भगवान् श्रीकृष्णहि द्वारा चातुर्वर्ण्यक सृष्टि भेल, वैह चारू आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास) केर स्थापना कयलनि और वैह ओहि मे प्रविष्ट भऽ तदनुकुल आचरण करैत लोक केँ समय-समयपर शिक्षा देलनि। भगवान् विश्वासी अनेको संत अपन आचरण द्वारा आदर्श उपस्थित केलनि। भगवान् श्री कृष्ण धर्मकेर परम आदर्श स्वरूप छथि, यैह हुनक विभिन्न लीला सबसँ स्पष्ट सिद्ध होइत अछि। भगवान् केर तँ यैह कहब अछि जे – ‘जखन-जखन धर्मक हानि और अधर्मक अभ्युत्थान होइत अछि, तखन-तखन हम अजन्मा, अविनाशी तथा लोक-महेश्वर रहितो साधु समाजकेर परित्राण, दुष्कृतकेर विनाश और धर्मकेर संस्थापनाक लेल युग-युगमे अपन लीलासँ प्रकट होइत छी।’
भगवान् श्रीकृष्ण पुष्पमाला, ताम्बूल, चन्दन, अंगराग आदि अनेक वस्तु पहिले ब्राह्मण, स्वजन-सम्बन्धी, मन्त्री और रानी लोकनिकेँ बाँटिकय बचल रहल वस्तु स्वयं केर कार्य मे लैत छलाह। जाबत धरि भगवान् ई सब करैत रहथि, ताबत धरि हुनकर सारथि दारुक सुग्रीव आदि घोड़ाकेँ रथमे जोतिकय लऽ आनथि और भगवान् केँ प्रणाम कय हुनकर सोझाँ ठाढ भऽ जाइथ। एकर बाद भगवान् श्रीकृष्ण अपन सखा उद्धव और सात्यकि केर संग अपन सारथि दारुक केर हाथ अपन हाथ सँ पकड़िकय रथपर सवार होइथ और सुधर्मा सभा मे जाइथ। यदुवंशी सब सँ भरल ओहि सुधर्मा सभाक एहेन प्रभाव छल जे ओहि ठाम जे लोक प्रवेश करय, हुनका लोकनिक शरीर केँ छः प्रकारक ऊर्मी – भूख, प्यास, शोक, मोह, जरा और मृत्यु नहि सतबैत छल। एहि तरहें भगवान् श्रीकृष्ण अपन सोलह हजार एक सौ आठ रानीक महल सँ अलग-अलग निकलिकय एक्कहि रूप मे सुधर्मा सभा मे प्रवेश करथि और श्रेष्ठ सिंहासनपर विराजमान् होइथ। ओहि सभा मे नट, मागध, सूत, बन्दीजन भगवान् केर विभिन्न लीला सबहक बखान करैत नाचैत, गाबैत और हुनका प्रसन्न करैत छल। मृदंग, वीणा, पखावज, बाँसुरी, झाँझ और शंख आदि बाजय लगैत छल। कियो-कियो व्याख्याकुशल ब्राह्मण ओतय बैसिकय वेदमन्त्र केर व्याख्या करथि और कियो श्रेष्ठ ब्राह्मण शास्त्र-पुराणक कथा सब कहथि, कियो श्रेष्ठ ब्राह्मण पूर्वकालीन पवित्रकीर्ति नरपति सबहक चरित्रक बखान करैत छलाह। एहि तरहें भगवान् श्रीकृष्ण यदुवंशी सबहक बीच मे अपन ब्रह्मरूप केँ नुकौने श्रेष्ठ मनुष्यक धर्म केर आचरण करथि। ओ अपन आचरण सँ लोक केँ सदैव सद्धर्म एवं शुभ आचरण केर शिक्षा देल करैथ।
हस्तिनापुर पहुँचल भगवान् श्रीकृष्ण केर प्रातःकालीन चर्याक बात महाभारत मे अबैत अछि। ओतय कहल गेल अछि – ‘आधा पहर रात्रि शेष रहि गेल, तखन श्रीकृष्ण जागिकय उठि बैसथि। तदनन्तर ओ माधव ध्यान मे स्थित भऽ सम्पूर्ण ज्ञानकेँ प्रत्यक्ष करैत अपन सनातन ब्रह्मस्वरूप केर चिन्तन करथि। फेर अपन धर्ममर्यादा तथा महिमा सँ कथमपि च्युत नहि होमयवाला भगवान् श्रीकृष्ण शय्यासँ उठिकय स्नान करथि, पश्चात् गूढ गायत्रीमन्त्रक जप करैत हाथ जोड़ैत अग्निक समीप जाय बैसथि। ओतय अग्निहोत्र कयलाक अनन्तर भगवान् माधव चारू वेदकेर विद्वान् एक हजार ब्राह्मण केँ बजबैत प्रत्येक केँ एक-एक हजार गाय दान करथि और हुनका सब सँ वेदमन्त्रक पाठ एवं स्वस्तिवाचन करबाबथि। तेकरा बाद मांगलिक वस्तु आदिक स्पर्श करैत भगवान् स्वच्छ दर्पणमे अपन स्वरूपक दर्शन करथि। (महाभारत, शान्तिपर्व अध्याय ५३)
भगवान् श्रीकृष्णकेर दिव्य जन्म, दिव्य कर्म, हुनक मुनिमनमोहिनी लीला और महिमाक कियो पार नहि पाबि सकैछ। वैह धर्म केर मूल छथि, वैह धर्म छथि, वैह धर्मरक्षक छथि, वैह धर्माचरण करनिहार छथि। ओ अकारण-करुणामय भगवान् श्रीकृष्ण कलिकाल सँ ग्रस्त हम मूढ मनुष्य केर उद्धार करथि तथा विश्व मे बढैत जा रहल अधर्मक प्रवाह केँ सुखाकय धर्मक सुधाधारा बहा दैथि, यैह प्रार्थना अछि।
हरिः ॐ! हरिः हरः!!