गजल
– सुनील कुमार मल्लिक
बत्तीस दाँतक जीहतर सँ घीच लेबौ रे ।
हम जनता छी चुट्टी जकाँ पीच देबौ रे ।
रजनेतीके गुणा भागके खेल खेलै छें?
सभ धुरफन्दी धोबियापाट सँ खीच लेबौ रे ।
पुस्तऔं पुस्तसँ दमनक ढेरो कथा बनेलें ।
ओहि भाइरसके नस्लके आब थकुचि देबौ रे ।
लेमनचुसक लोभ देखा मलाइ पबै छें ।
ओहि मलाइ पर मिथिलावासी थुकि देबौ रे ।
घरके अभिभावक बनवाक जे ढोंग करैछें ।
तोहर निर्णय कौडी भावमे बेचि देबौ रे ।
जँ ऋषिमनसँ संविधानके बनेलें दर्पण
सभक्यो मुँह निहारि निहारि विहुँसि जेबौ रे ।