ओहि मलाई पर मिथिलावासी थुकि देबौ रे!

फोटो सौजन्य: जन आनन्द मिश्र

गजल

– सुनील कुमार मल्लिक

फोटो सौजन्य: जन आनन्द मिश्र
फोटो सौजन्य: जन आनन्द मिश्र

बत्तीस दाँतक जीहतर सँ घीच लेबौ रे ।
हम जनता छी चुट्टी जकाँ पीच देबौ रे ।

रजनेतीके गुणा भागके खेल खेलै छें?
सभ धुरफन्दी धोबियापाट सँ खीच लेबौ रे ।

पुस्तऔं पुस्तसँ दमनक ढेरो कथा बनेलें ।
ओहि भाइरसके नस्लके आब थकुचि देबौ रे ।

लेमनचुसक लोभ देखा मलाइ पबै छें ।
ओहि मलाइ पर मिथिलावासी थुकि देबौ रे ।

घरके अभिभावक बनवाक जे ढोंग करैछें ।
तोहर निर्णय कौडी भावमे बेचि देबौ रे ।

जँ ऋषिमनसँ संविधानके बनेलें दर्पण
सभक्यो मुँह निहारि निहारि विहुँसि जेबौ रे ।