हमहुँ रोपब धान
– प्रवीण नारायण चौधरी
बाबु! तूँ खेत पर काज करैत छह,
हमहुँ तोरा संग दैत छियह!
अन्न उपजि तऽ भूख मरैत छह
दुनियाक पेट किसान भरैत छह!
बाबु! तूँ खेत पर ….
थाल पाइन मे धानक बिहैन
रोपि-रोपि जे सपना देखैत छह
बरखा पानी खाद कमौनी
बड मेहनति सँ धान बनैत छह
बाबु तूँ…..
धन्य धरा ई माटि-पानि जे
अन्न आ फल केर दान दैत छह
बना-सोनाकय खेत मे रोपय
तरह-तरह केर उपज भेटैत छह
बाबु तूँ….
रौदी-डाही आ कीड़ाक मारि सँ
लागल खेतक उपज मरैत छह
ताहि घड़ी तोरा कनैत देखिकय
हमरो बेर-बेर कोंढ फटैत छह
बाबु तूँ…..
एबरी सरकार है देने बीमा
जागि फसलके बीमा करैत छह
नव-नव विज्ञानी खेती
बिया उन्नत सेहो भेटैत छह
बाबु तूँ…..
हरि: हर:!!