मिथिला देश से मिथिला राज्य आ आब मिथिला राज्य सऽ बनि गेल मिथिला अँचल!!
(मिथिलाँचलपर विशेष)
भारतवर्ष समस्त संसारके द्योतक थिकैक, कारण भारतवर्षमें विदेश केकरो नहि कहल गेलैक अछि। वसुधैव कुटुम्बकम् समान अति उच्च संस्कार के ग्रहण करैत मानव-कल्याण संग हर जीवपर दयाक बात कैल गेल छैक। करुणा सँ पैघ प्रेमक दोसर कोनो रूप नहि! ताहि भारतीय संस्कृतिमें मिथिलाक अपन अलग संस्कार रहलैक अछि। आइ जे भारतदेशक सीमा छैक ताहिमें कतहु कोनो विद्वान सँ एहि बात के मर्म जानल-बुझल जा सकैत छैक जे आखिर मिथिलाक अपन वैशिष्ट्य व्यवहार अलौकिक होयबाक रहस्य कि! एक पाँतिमें जबाब एतबी सऽ भेटि जाइत छैक जे स्वयं जगज्जननी सिया एहि मिथिलाक माटिसँ अवतरित भेलीह। एहि ठाम ईश्वर आराधना लेल विशेषाधिकार छैक जे बस एक केराक पातो पर चौदहो भुवनके देवताके आवाहन केलापर देवतागण प्रसन्नतासँ अपन हव्य ग्रहण करबाक लेल अबैत छथि।
कुमुदजी एक न्युजक्लीप शेयर कयलाह छथि “वैदिक रीति से होता सत्कार” – अतिथिक सत्कार के परंपरा एहिठाम वैदिक रहल अछि ताहि बातक आलेख आ कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालयक वेद विभागाध्यक्छक उक्ति सहित एहि समाचार-आलेखमें अतिथि-सत्कारक महत्त्व आ मिथिलाक विधानपर विशेष चर्चा केकरहु नीक लगतैक। मैथिलकेँ खास कऽ के बेसी नीक लगतैक कारण ई हुनक संस्कार के दुनियाँक सोझाँ विदित कय रहल छैक। स्मृतिमें आनय चाहब एक विशिष्ट विद्वान् केर ओहि उक्तिकेँ जाहिमें कहल गेल छलैक कि संसार सँ वेद विलुप्त होयबाक समय मिथिलामें लौकिक व्यवहार देखि पुन: वेदक स्मृति होयब संभव छैक। अवश्य!
लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति आजुक भारतमें मिथिला प्रति विद्वेष-भावना चरम पर अछि। काल्हिक लेखमें अपने लोकनि पढलहुँ जे कोना-कोना मिथिलाक हक केँ राजनतीसँ लूटैत आइ मैथिलकेँ दर-दर भटकैत अपन रोजी लेल बेहालीक हाल में धकेलल गेल आ क्रमश: ईहो स्पष्ट होयत जे बिहार राज्य सेहो दिन ब दिन मिथिलाक अस्मिता संग केवल खेलवाड करैत अछि आ जहिना पूर्वहि सऽ जाति-पाँतिमें तोडैत मिथिला लेल एक-स्वरबद्धताक भंग करैत घोर षड्यन्त्र करैत अछि। आइ देशमें तीन राजनीतिक धार मूलत: चलि रहल छैक, लेकिन एकरा समयक खेल कहि सकैत छी जे तिनू धार (संप्रग सत्ताधारी, राजग मुख्य विपक्छी आ तेसर मोर्चा विपक्छी) मिथिलाक समुचित माँग – एक अलग राज्य लेल चुप अछि कारण भारतीय प्रजातंत्रमें वोट पेबाक लेल मूल्य, इतिहास, संस्कृति, भाषा, साहित्य, आदिक संरक्छणक जिम्मेवारी कम आ जातियता-भावना भडकाबैत बस वोट-बैंकके राजनीति ज्यादा छैक। नहि जानि गाँधी, पटेल, मालवीय, शास्त्री, भावे, आ कतेको महान् राष्ट्रसपुत सभ रहैत नेहरुजी अपन जिद्द सँ मिथिलाके ध्वस्त केला, स्वतंत्र भारतमें गलत राजनीतिके नींव रखलाह आ आब देश बस वोटबैंक पोलिटिक्समें लूटो और राज करो के सिद्धान्त पर अग्रसर अछि। आर तऽ आर, आपसी विद्वेष-भाव एहेन प्रतिद्वंद्वी छैक जे आपसी सहकार्यके जगह एक-दोसरके अस्मिताहरण लेल भाषा राजनीति सँ सेहो मैथिलीपर आक्रमण पडोसी अन्य संस्कृत (जेना भोजपुरी, अवधी, बंगाली, आसामी, नेपाली, संथाली, ओडिशी, आदि) द्वारा होयब स्वाभाविके छैक।
मिथिलाक कर्णधार चिन्तक आब विदेह नहि, नागपुरी नारंगी पैटर्नपर उधारी सिद्धान्त सऽ मिथिला निर्माण करय लेल चाहैत छैक। घरे बैसल तरे-तरे सभटा हेतैक से बुझैत छैक। वनभोज पर चर्चा आ चिन्तन होइत छैक लेकिन आम जनमानसकेँ सभ बात बुझाबय लेल आइ धरि कतहु कोनो आमसभा पर्यन्त नहि कैल गेलैक अछि। खुइल के कियो नहि बाजय चाहैत छैक जे हमरा सभ संग कैल गेल दुर्व्यवहार सऽ हम समस्त मिथिलावासी दु:खी छी। अपनहिमें ढुइसबाजी रहतैक तऽ भले साधारण आ पिछडल जाति-जनजातिक-बौद्धिक जनमानस कि बुझि सकतैक जे मिथिला देश सऽ मिथिला राज्य आ आब मिथिला राज्य सऽ मिथिलाँचल में परिणति सीधा-सीधा सूचक थिकैक जे कनेक वर्षक बाद कहीं लोक हैँसिके मजाक में नहि कहैक कि ‘एक मिथिला था…..’!
हरि: हर:!