सन्दर्भ: शखड़ेश्वरी भगवती शक्तिपीठ दर्शन (पोथी)
लेखक: श्याम सुन्दर यादव, सप्तरी (मिथिला), नेपाल
राजविराज सँ करीब १५ किमी दक्षिण नेपाल-भारत सीमा पर अवस्थित अत्यन्त रमणीय स्थल जतय साक्षात् ‘सखड़ेश्वरी भगवती’ विराजमान छथि, जतय नेपाल आ भारत केर विभिन्न ठाम सँ नित्य सैकड़ों-हजारों पर्यटक देवीक विशेष दर्शन लेल अबैत अछि आ मान्यता अनुसार सब कियो मनोकामना माँगि भगवती सँ आशीर्वादित होइत पुन: अपन घर प्रस्थान करैत अछि। ई नेपालक मिथिलाक जानकी मन्दिरक बाद एकटा सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थल आ दर्शनीय स्थल, आस्थाक केन्द्र केर रूप मे स्थापित अछि।
मिथिला मे घरे-घर कुलदेवीक पूजा होइत अछि। मिथिलाकेँ शक्तिपीठ – तंत्रपीठ मानल जाइत अछि। ताहि पर सँ कोनो मन्दिरक विशेषता ओतय स्थापित मूर्ति आ निर्मित मन्दिरक संग-संग निहित आस्था सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय मानल जाइत अछि। सखड़ेश्वरी भगवतीस्थान केँ शक्तिपीठ केर रूप मे अपन पोथी मे वर्णन कएने श्याम सुन्दर यादव लिखैत छथि:
“विश्वक सर्वोच्च शिखर सगरमाथा (माउन्ट एवरेस्ट) अञ्चलक मुख्यालय राजविराज थिक। संगहि सप्तरी जिलाक मुख्यालय सेहो राजविराज मे पड़ैत छैक। राजविराजसँ ११ किलोमीटर दक्षिण मे अवस्थित छिन्नमस्ता गा.वि.स. मे पड़ैत अछि, शखड़ेश्वरी छिन्नमस्ता भगवती शक्तिपीठ। आदिशक्ति स्वरूपा देवी शखड़ेश्वरी भगवती सप्तरी जिलेटा नहि पूर्वाञ्चलकेँ चिन्हबइवला महत्वपूर्ण धार्मिक-स्थल थिक।”
एहि मन्दिर मे भगवतीक पूजा-पाठ धूप-आरती तांत्रिक विधान सँ नित्य एहिठामक पूजा-पाठ केर अधिकारी परिवार द्वारा कैल जाइत अछि। एहि ठामक भगवती वन्दना जे अत्यन्त लोकप्रियता हासिल कएने अछि, पोथी मे जिक्र कैल अनुरूप निम्न अछि, एकर रचयिता श्रीमती मीना ठाकुर छथि।
जय जगदम्बे शखड़ेश्वरी मैया
द्वार अहाँ के अएलहुँ हे!
धूप दीप नैबेद्य थार धए
अड़हुल फूल चढेलहुँ हे!!
त्रिशूलधारिणी सिंहवाहिनी
खड्ग खपड लए दुष्ट संहारिणी।
मूण्डमाल धारण कय मैया
छिन्नमस्ता नाम धरेलहुँ हे॥
शुम्भ निशुम्भ असुर संहारिणी
रूप अलौकिक दूरितिहारिणी।
महिषासुर मर्दन कय मैया
शक्तिरूप देखेलहुँ हे॥
मन दु:खहारिणी दुर्गतिनाशिनी
भक्तक रक्षक त्रिभुवनधारिणी।
दु:खहारिणी जगतारिणी मैया
महिमा सुनि हम अएलहुँ हे॥
जय जगदम्बे….
मन्दिर मे स्थापित भगवतीक मूर्ति मे माथ नहि होएबाक कारण भगवतीक नाम छिन्नमस्तिका देवीक रूप मे सेहो प्रचलित अछि, मुदा एहि ठामक पुरान-प्रचलित नाम शखड़ेश्वरी भगवती आइयो ओतबे लोकप्रिय अछि। मन्दिर केर स्थापना कहिया भेल, ताहि विषय मे कोनो ठोस जानकारी उपलब्ध नहि अछि। इतिहासविद् हरिकान्तलाल दास केर अनुसार मन्दिरक स्थापना कर्णाटवंशी राजा शक्र सिंह केर समय मे भेल मानल जाइत अछि। राजा शक्र सिंह जिनक राजधानी सिम्रौनगढ मे छल, जेकर अवशेष आइयो धरि जीर्ण अवस्था मे बारा जिला मे उपलब्ध अछि, हुनकर दोसर नाम शिव सिंह सेहो छल। मान्यता अनुरूप जखन राजा शिव सिंह अपन पुत्र हरिसिंह देव केँ राज्य सौंपि वानप्रस्थ आश्रम मे रहबाक लेल सप्तरी (कोसी नदीक कछेर पर अवस्थित) मे आबि रहय लागल छलाह तऽ हुनकहि स्वप्न मे भगवती त्रिशूल गाड़ल स्थान आ ताहि ठाम मूर्ति होयबाक दर्शन करौने छली, आ ताहि अनुसारे राजा शिव सिंह केँ ओहि स्थल केर अन्वेषण करबा मे सहयोग सेहो भेटलनि। मन्दिर सँ ५ किलोमीटर उत्तर सकरपुरा गाम अवस्थित अछि, ओतहु राजा शक्र सिंह सँ सम्बन्धित पौराणिक अवशेष आइयो विद्यमान् अछि। बाद मे राजेन्द्र विक्रम शाह (राजा) सहित भारतीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र, राजा विरेन्द्र तथा अन्यान्य सामर्थवान व्यक्तित्व द्वारा भगवतीक मन्दिर केर जीर्णोद्धार तथा व्यवस्थापन आ रख-रखाव आदि लेल सहयोग कैल गेल।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते
भयभ्यस्त्राहि नो देवि दूर्गे देवि नमोस्तुते!!