किसलय कृष्ण, समाचार संपादक, मैथिली जिन्दाबाद!
सहरसा, अगस्त १७, २०१५.
काल्हि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहरसाक यात्रा पर चुनावी सभा केँ संबोधन करय लेल आबि रहला अछि। एहेन समय मे निश्चिते ओ अपन दल तथा गठबंधन केर फायदा लेल सियासी अनेको घोषणा करता। एहि क्षेत्रक जनता केर मोन मे कतेको पीड़ा घर केने अछि। कोसीक पाइन १९५६-५९ सँ पूर्व चारूकात छितैर जाइत छलैक। मुदा हड़बड़ ताल सँ बनाओल गेल बान्ह आ तात्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा देल गेल भरोस आइ धरि पूरा नहि होयब, एहि क्षेत्रक पीड़ाक आपरूपी बयान करैत छैक। कतेको प्रकारक साहित्यिक ग्रंथ तक निर्माण भऽ गेल अछि एहि पीड़ा पर आ अनेको बेर जलप्रलयक दंश भोगि चुकल अछि एहि क्षेत्रक लोक, एहेन समय मे कोसी पेटक लोकक पीड़ा आरो दुखदायी छैक आ तेकरा अपन शब्द मे व्यक्त करब कठिनाहे नहि दुर्लभ सेहो छैक। आउ देखी जे अपन विषम परिस्थिति केँ कोन तरहें लोक मैथिली-मिश्रित विशिष्ट हिन्दी मे प्रधानमंत्री तक पहुँचाबय लेल चाहि रहल अछि। काश! आजादीक ७ दशक बितलो पर एहि पीड़ाक स्थायी निदान कियो निकालि सकैत!
“मोदी कक्का हम्मे गढ़िया रसलपुर से बोइल रहा है……………हे देखिये हो हमरो मोबाइल में जे कि ने से मोदी कक्का का फोन आ गया है । कल बोलाए हैं सहरसा । हे रे भोलबा नाह तनी सबेरे तैयार रखना । हम कने मोबाइल पर मोदी कक्का अपना आउर का परोबलेम बता देते हैं। मोदी कक्का परनाम….हमरा लोक त ओते अन्गरेजी बुझता नै है तअ तोरा जइसन लोक के कोना कहेगा….तैयो सुन लिजीए कक्का….हे हमरा आर के परोबलमे परोबलेम है ।
दादा खूबे सुनाते थे लेहरु चच्चा के बारे मे……जे कोना क लेहरु कोशी के बान्ध बनाकर कहे थे कि बान्ध के पेट के लोक को जमीन मिलेगा….लौकरी भी । मुदा आइ धरि किच्छो नै हुआ कक्का । कक्का मुरुख के बात पर गोस्साइएगा नै…..हम भी मेथुला के लोक है जतय बान्ध के बगले महिषी मे सुग्गा भी बेदे पढ़ता था….मुदा ई बान्ध त हमरा सभ को नाश कैर दिया कक्का…..हे हमहू पचमा किलास तक बड़ी तेज था पढ़ाइ मे…..बाबु कहते थे अगला बरख से धान बेचकर तोरा सिपौल विलियम इसकूल मे पढ़ाउंगा….मुदा जो गे कोशी ….सभ खेत कट गया नदी मे….न खेत रहा….न धान हुइ…..न बाबू हमरा पढ़ा पाए….
हम्मे भदोही तोरा बनारस के बगले मे जाकर चाय के दोकान पर काज करने लगा….आब तरकारी बेचता हूँ दिल्ली के शालीमार मे….से एखन बाढ़ि के मौसम मे गाम आया हूँ पलिवार के रच्छा खातिर तअ तोरा दअ सुना कि परधान मनतरी आबि रहा है ….हमरा कोनो हरख नै हुआ……ई त जखन पता चला जे तोहूँ चाय बेचता था….तअ मोन एक्के बेर नाचि उठा आ हम सलहेस का राग छेड़ दिया कि बड़ बड़ भगती हम ईश्श्वर से केलिए…..आ ते एखन तोरा फोने पर दुखनाम कहने लगा….
कोनो गरेन्टी नै है कि कल नाह समय से नदी पार करा देगा….जँ समय से पहुँचिए गए तअ सिपहिया हभ तोरा से मिले देगा से बिसबास नहिए है…..आर एखबार बला सभ……उँह कहिये धार पार नइ करता है….लभट्टे मे बैसकर समाचार लिखता है ओ सभ मुखिया डीलर से पूइछ के….कोसी के पेट मे जो तीन सय अड़सठ टा गाम है ओकर बेथा कोइ ना लिखता है ….कोशी पुल से हमरा आर के कोनो पैदा नइ हो कक्का…..फोने पर कतेक कहेगा….तोरो बिल उठेगा…..कने मेथुलाक बीच जे इ कोसी से मैर रहा है लोक तकर कने सोचना कक्का….. नै जँ तू ठीके गरीब के गार्जन है तअ एक बेर नाह टैप के कोसी पेट मे आएगा । फेर कहिये आओर दुख बताएगा”