जगज्जननी सीता प्रति भक्ति-भाव
सीताक जीवन-चरित्र मानव समुदायकेँ जीवनमे समस्त सद्गुण संग त्याग आ विपत्तिक घडी सेहो धैर्यवान बनैत पूर्णतया अहिंसात्मक भावना एवं सहिष्णुताक व्यवहार करैत सर्वश्रेष्ठ मानव-आचरण केर अनुसरण करब अछि।
जे सीता देवी बाललीला करैत खेल-खेलमे शिव-धनुष उठा लेने छलीह, जे शिव-धनुष कदापि श्रीराम (साक्षात्) नारायण छोडि दोसर कियो हिला तक नहि सकलाह…. ततेक शक्तिशाली देवी रहितो स्वयं सीता कहियो कोनो भी चरित्र लीलामे हिंसात्मक नहि बनलीह अछि आ यैह बात लेल विद्वान् आ शास्त्रमत-पारंगत हिनकर चरित्रगान करैत दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, सती, सावित्री, अनसूया, मन्दोदरी आदि अनेको विलक्षण गुण सम्पन्न देवीरूप मे सीताकेँ सर्वश्रेष्ठ घोषणा करैत छथि।
सीताक बाललीला गान करैत जगत्गुरु रामभद्राचार्यजी महाराज हालहि अपन सुन्दर काव्य “श्रीसीतारामकेलिकौमुदी” प्रकाशित कयलनि अछि जे अत्यन्त पठनीय आ रस-रमणीय अछि।
भक्तजनलेल दू अति महत्त्वपूर्ण फलादेशक चर्चा करब:
१. जेना सीताक उपनाम ‘मैथिली’ छन्हि, से हिनक चरित्रगान करनिहार व मानव जीवनमे मैथिली-मिथिलाक अस्मिता-प्रति कर्तब्यनिष्ठ, सजग, सक्रिय सहयोगी बननिहार साक्षात् जनकनन्दिनी सीताजीकेँ प्रसन्न करैत छथि आ परमसुख केर आनन्द प्राप्त करैत छथि।
२. जीवनक अनमोल प्राप्ति थिकैक माता-पिता-गुरुक चरण-सेवक बनब। सीता-चरित्रमे सेवा व समर्पणक अनुपम आ अत्यन्त सशक्त प्रस्तुति कैल गेल छैक। अनुगामी भक्त जीवन-भवसागर सहजता सँ पार करैत छथि।
एक रोचक प्रसंग:
२५ नवम्बर, २००७ केँ जगत्गुरु रामभद्राचार्यजी चित्रकूट सँ मध्यप्रदेश केर यात्रा पर छलाह। संगमे शिष्य सभसँ रसखान रचित कृष्णक बाल-चरित्र गान सुनि रहल छलाह आ रसमे भाव-विभोर छलाह, हुनका लेल किनको गान सीताराम-चरित्र समान होइत अछि आ ताहि क्रममे हुनकर दु-दु गो शिष्य कहलखिन जे कि श्रीसीतारामजी केर बाल-चरित्र किछु एहने रसगर भावसँ रचना संभव छैक… तऽ रामभद्राचार्यजी एहि भावनाकेँ स्वागत करैत बस एक महीना बादे मुंबई केर अपन कोनो सभाक दौरान २३ दिसम्बर, २००७ केँ मंगलाचरणकेर रचना पूरा कयलाह… व्यस्तताक चलते अप्रील २००८ तक मात्र प्रथम भागक ६७ गो पद पूरा कय सकलाह… जखन कि सुन्दर संयोगवश सीताजीक अवतरण-भूमि मिथिलामे हुनकर १८ दिवसीय कार्यक्रम छलन्हि जे कमला नदीक तटपर छल ततय अबैत देरी केवल एहि छोट अवधि मे शेष २६० पदक रचना करैत अपन लक्ष्य पूर्ण कय लेलाह। प्रेमसहित कहियौ जगजननी सियाजीकी जय! ई मात्र सीताक असीम आशीर्वाद आ मिथिलाक पुण्य भूमिक प्रताप सँ संभव भेल।
समस्त मैथिल संकल्प लैथ जे मिथिलाक अस्मिता जोगेबाक लेल मिथिला राज्यक माँग भारत आ नेपाल सरकार पूरा करैथ, जे कियो एहि क्षेत्र सँ चुनाव लडय लेल अबैथ पहिले अपन चुनावी घोषणापत्र मे मिथिला राज्यक माँग प्रति समर्थन या विरोध प्रकट करैथ तेकर बादे चुनाव मे वोट मंगबाक लेल अबैथ।
अनुसूया: प्रातस्मरणीय नाम
मिथिलादेशक ई अत्यन्त प्राचीन विधा रहल अछि जे नर ओ नारी सदैव ईश्वर भक्ति मे लीन रहैत अछि। भोरे-सुति-उठि प्राती गबैत ब्रह्म-मुहुर्त सँ भक्ति साधना शुरु होइत जेना-जेना दिन चढैत गेल तेना-तेना विभिन्न साधना योग मे स्त्री-पुरुष आ बाल-बालिका सब कियो रत होइत अछि।
नित्य भोरे उठिते सती, सावित्री, सीता, अनुसूया, अरुन्धती, मन्दोदरी, तारा समस्त प्रात-स्मरणीय सती नारीक नाम सुमिरल जाइछ। एहि समस्त आदर्शवान् नारीक चरित्र पर अध्ययन करैत आशीर्वादित होयबाक लेल ‘आदर्श आ पतिव्रता नारी’ केर नाम-सुमिरन संग महत्त्वपूर्ण जीवन चरित सेहो अभ्यास करब जरुरी अछि। जानकी केर बाद अनुसूया केर चर्चा अपने लोकनि संग करब।
अत्रि ऋषिक धर्मपत्नी अनुसूया केर पातिव्रत्य प्रसिद्ध छल। नारद ऋषि ई बात एक दिन त्रिदेवी (लक्ष्मी, सरस्वती ओ पार्वती) सँ अपन विशेष प्रस्तुति करबाक कला सँ कय देलखिन। तिनू देवी विहुँसैत सोचली जे किऐक न हिनकर परीक्षा लेल जाय। बस तिनू देवीअपन पुरुषकेँ हिनका लग पठा देलखिन। अत्रि ऋषि तपस्यारत छलाह। ताहि समय तिनू गोटे यति केर रूप मे आबि ‘भवतु भिक्षाणि देहि’ कहि अनुसूया द्वारा ससम्मान भोजन-पाइन आगू देखि कहलखिन जे हम सब भोजन तखनहि ग्रहण करब जखन अहाँ नग्न भऽ के भोजन परोसब। अनुसूया चतुर आ समर्पित पतिव्रता स्त्री धर्मक जाचनाकेँ तुरन्त भाँपि कहलखिन जे से बात छैक… तिनू पर कनेक जल छीटि हुनका सबकेँ शिशु रूपमे परिवर्तित करैत स्वयंकेँ माता रूपमे देखैत वात्सल्य भाव सँ हुनका सबकेँ ‘दूध-भात’ पान करौलनि। त्रिमूर्ति भैर पेट भोजन केलाक बाद अनुसूयाकेँ माय समान दुलार करैत देखि प्रेमसँ हुनकहि कोरामे शिशु समान सुति रहलाह। बाद मे अनुसूया हुनका सबकेँ लोरी गाबि झूला मे सुता देलखिन। ओहि घडी हुनकर लोरीक बोल रहलैन – तिनू लोक पर शासन केनिहार त्रिमूर्ति हमर बच्चा बनि गेल छथि, हमर भाग्य केँ कि कहल जाय। ब्रह्माण्ड हिनक झूला छन्हि, चारू वेद एकर चारि टा जंजीररूपी पाया छैक, ॐकार प्रणवनाद लोरीक बोल छैक।
भगवान् त्रिदेवक कोनो खबडि नहि पाबि हुनक वाहन, नारद आ तिनू देवी जिज्ञासावश ओहि आश्रम पर पहुँचि गेलीह। नारदजी कहलखिन जे ओ तिनू गोटा हिनकहि पति छथिन तिनका वापस कय दियौन हे अनुसूया माता…. अनुसूया कहलखिन जे जँ यैह तिनू शिशु अहाँ सबहक पति छथि तऽ चिन्हू आ उठा लेल जाउ। आब तिनू देवी विस्मित छलीह, सब शिशु एक्कहि रंग देखय मे लागि रहल छलन्हि… नारद कहलखिन जे देरी नहि करू, जल्दी सँ अपन पतिकेँ चिन्हू आ झूलामे सँ उठा लेल जाउ। झटपट तिनू गोटे एक-एक टा बच्चाकेँ कोरामे उठेलीह… आ कि तिनू अपन असली रूपमे आबि गेलाह… सरस्वती लग शिव, लक्ष्मी लग ब्रह्मा आ पार्वती लग विष्णु…. तिनू देवी लजाइत तुरन्ते अपन-अपन पुरुष लग पहुँचि गेलीह। ताबत अत्रि ऋषि सेहो आबि गेलाह आ त्रिदेव हुनका सबसँ प्रसन्न होइत वर देलाह जे हम सब त्रिदेव अहाँक पुत्र बनि अवतार लेब। सोम (ब्रह्मा), दत्तात्रेय (विष्णु) आ दुर्वासा (महेश) केर रूपमे हिनकहि पुत्र बनि पृथ्वीलोक मे अयलाह।