अन्तर्वार्ता
पटना विश्वविद्यालय सँ मैथिली केर जेआरएफ रश्मि रमण वर्तमान मे बीएचयू मे मैथिली प्रोजेक्ट पर कार्यरत, एक विलक्षण कवियित्री आ संगहि एक अभियानी सेहो, हिनका संग भेल एक संछिप्त वार्ता मे दिल्ली मे होमय जा रहल आयोजन ‘मिथिलाक नारी नहि छथि बेचारी’ लेल भरपूर शुभकामना दैत ओ मैथिली-मिथिला मे एतेक सक्षम-समर्थ युवा अभियानीक काज करबाक जोश देखि मंत्रमुग्ध हेबाक बात कहली। संगहि दिल्लीक कार्यक्रम समूचा देश मे पसरल मिथिलाक नारी केँ एकटा सकारात्मक संदेश देतनि, बस जरुरत छैक जे मिडिया आ आपसी भेंटघाँट सँ सब भागक मैथिल जनमानस केँ जोड़बाक कार्य निरंतर चलैत रहबाक चाही।
साहित्य सरोकार सहरसाक आयोजन ‘स्व. राजकमल चौधरी स्मृति उत्सव’ केँ सुमिरैत संयोजक कन्हैयाजी, आशीषजी सहित परिकल्पक किसलय जी आ विशिष्ट अतिथि प्रदीप बिहार, मेनका मल्लिक, करुणा झा केँ याद करैत ओहि कार्यक्रमक कवि गोष्ठी मे वाचन कैल कविता जाहि मे ओ विराटनगर मे बजायल गेल अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल कवि-विद्वान्-अभियानीक कुम्भ आ ओत्तहि भेटल जानकारी जे कोना कानपुर, दिल्ली, टाटा, राँची, गुआहाटी सबठाम मैथिल जाग्रत रहैत अपन भाषा, साहित्य, संस्कृति आ समग्र पक्षक वास्ते चिन्तनशील आ सक्रिय संरक्षण मे लागल छथि – ई सब समेटने छली।
देशक राजधानी दिल्ली केँ विशेष रूप सँ एहि दिशा मे सक्रिय रहबाक आवश्यकता अछि। मात्र फेसबुक पर हो-हंगामा आ देखाबटी सँ बहुत बेसी जरुरत गंभीर विषय पर केन्द्रीय सरकार केँ झकझोरैत रहय। निश्चित रूप सँ फेसबुक पर लाखों मैथिल सक्रिय देखि बड़का-बड़का लोक केर दिमाग हिलल छैक, मैथिली अपन चरमशक्ति केँ मानू सामाजिक संजाल द्वारा लोकमानस मे एना देखा रहल छथि जेना साक्षात् नाम अनुरूप ‘सीता’ अपनहि सतीत्व, त्याग आ समर्पण सँ ‘सर्वश्रेष्ठ दैविक अवतार’ बनबाक प्रयोजन सिद्ध केली। तथापि, एहि कलियुग मे बिन मंगने अधिकारसंपन्नता कतहु सँ नहि भेटत।
रश्मि रमण एहि सन्दर्भ मे मैथिलीक ठमकल विकास केर उदाहरण दैत कहैत छथि जे आखिर सृजनशीलताक मूल आधार पर विकसित मैथिली आइ विद्यार्थीवर्ग मे अपरिचितिक कारण हेरा रहल बुझाइत छैक, एहि दिशा मे राज्य द्वारा पहल करबाक जरुरत छलैक। अष्टम् अनुसूची मे गेलाक बादो मैथिली भाषा मे सरकारी विज्ञापन तक कतहु नहि देखाइत छैक, लोक सब सेहो अपन सम्मानित भाषा मैथिली केँ छोड़ि प्राइवेट विज्ञापनक बोर्ड सब मजबूरन हिन्दी मे लिखि रहल अछि, आर-त-आर, विवाह, उत्सव व अन्य आमंत्रण पर्यन्त लेल लोक कार्ड हिन्दी मे छपबैत अछि। मिथिलाक्षर पर देवनागरी (मूल संस्कृतक लिपि) हावी भेला सँ जतेक फर्क नहि पड़ल, ताहि सँ बहुत बेसी फर्क पड़ि गेल अछि ई अपरिचिति सँ।
समाजक बुद्धिजीवी वर्ग केँ सेहो रश्मि लपेटैत छथि – ई कतहु सँ समाज मे बुझबाक अवसरे नहि भेटैत छैक आम जनमानस केँ जे अपन मातृभाषाक अध्ययन सँ कि सब लाभ छैक। एहि तरहक सभा, विचार-गोष्ठी आ समारोह गाम-गाम हेतैक तखनहि शायद विशाल जनमानस केँ मैथिलीक मिठास आ एहि विषय केर पढाई करबा सँ वृहत् संभावनाक बारे पता लगतैक। वास्तव मे एखन ई मात्र अति विकसित समाज केर भाषा बनिकय रहि गेलैक जेकरा भूलवश लोक ‘ब्राह्मण-कायस्थक भाषा मैथिली’ सेहो कहैत छैक। जरुरत छैक सब वर्ग केँ ई बुझेबाक जे मैथिलीक पढाई केला सँ अहाँक धिया-पुता केहेन कैरियर निर्माण कय सकैत अछि।
दु:खक बात तऽ ई लगैत अछि जे राजनीति मे अपना केँ बड़का नेता माननिहार सेहो एहि सत्यतथ्य सँ अपरिचित छैक। बेसीकाल सुनय लेल भेट जाइत अछि जे नेता सब अपन वोट-बैंक निर्माण लेल मैथिली भाषा – निज मातृभाषा सँ शत्रुता करैत छथि। एकर दूरगामी प्रभाव बहुत प्रतिकूल हेतैक मिथिला समाज पर। भाषा सँ आत्मसम्मानक प्राप्ति कोना होइत छैक ई बात प्रवास पर गेल करोड़ों मैथिल सँ पूछल जा सकैत छैक।
अन्त मे रश्मि सँ ई प्रश्न पूछला पर जे मैथिली पठन-पाठन प्रति युवा लेल कि सब आकर्षण छैक – ओ कहैत छथि, “आकर्षणे-आकर्षण अछि।नेट केनिहार लेल अवसरे-अवसर छै। स्वरोजगार सँ ल’ क’ सरकारी नौकरी धरि। जे आर एफ केर लेल त’ सोना पर सुहागा अछि। शोधक नाम पर एतेक पाय भेटैत अछि जे किछुए वर्ष मे खाकपति से लाखपति। जँ पाइके सम्हारे आबैत अछि त’ जीवन सुधरि सकैत अछि। जे आर एफ भेलाक बाद पढौनि संग शोध करू। साहित्यक डॉक्टर बनू। साहित्यक आ साहित्यकारक इलाज कारु जाहि सँ समाज स्वस्थ-स्वस्थ रहत। मैथिली पठन-पाठनक प्रति युवा लेल सेहो आकर्षण अछि। मैथिलि सँ प्रतिष्ठा के बी पी एस सी व यू पी एस सी कमपीट क सकैत अछि। सरकारी अधिकारी बनि इज्जत पैसा कमाव आ समाजक विकास करू। जँ किछु नहि भऽ सकल त’ कथा, कविता आ उपन्यास लिखू। पुरस्कार व सम्मान पाबि अपन आ मैथिलीक नाम ऊँचा करू। आब मैथिली सँ नेट आ पीएचडी केर टेक्निकल जौब सेहो पाबि सकैत छी, सेहो उच्च संस्थान जेना बीएचयू मे।”
निश्चिते! जेना भारत मे संस्कृत केर अवहेलना भेलाक बादो विश्व केर विकसित देश मे एकरा लेल विशेष सुरक्षाक इन्तजाम करैत आइ लगभग प्रत्येक वैज्ञानिक शोधक एकमात्र आधार वेद केर सर्वोपरि स्थान बनल अछि, ओ चाहे जर्मन हो, जापान हो, नासा हो, अमेरिका, बेलायत, फ्रांस, डेनमार्क – हर जगह संस्कृत संस्थान केर विकास कैल गेल अछि जाहि सँ ओहि देशक सामरिक विकास मे उल्लेखनीय योगदान सेहो भेटि रहल अछि। तहिना मिथिला मे मैथिली उपेक्षित भेलो पर आइ प्रवासी मैथिल हर क्षेत्र मे मैथिलीक संरक्षण लेल करमचंद बनिकय कार्य कय रहला अछि। बयानचंद-हुकुमचंद सब ओतहि आलोचना-प्रतिआलोचना मे समय खपबैत छथि, मुदा विकास लेल भाषा ओ साहित्य संरक्षण करब अत्यन्त आवश्यक अछि। धन्यवाद रश्मिजी!!