आत्मीय पहिचान

आब भले किशोर नहि रहलौं, जोश आइयो ऊफान पर
मातृभूमि प्रति रही समर्पित, होश आइयो तूफान पर

जन्म माने कर्म करब, नजैर सदा अनुसंधान पर
भान मात्र शरणागत सेवक, ध्यान जे भगवान्‌ पर

स्वाध्याय के मंत्र नीक छै, समता रहय संतान पर
अपन भाग के साँस जिबैते, स्नेह सदा इन्सान पर

झूठ दृष्टि न वाणीक व्योरा, शासय कथमपि जान पर
बलियो चढि जे सत्यक महिखा, धूरा नहि हो ज्ञान पर

पुरखा श्रेष्ठ न कोसब कहियो, गाबि आत्मसम्मान पर
मिथ्या के सभ यशकेँ त्यागि, चलबय स्वाभिमान पर

– प्रवीण नारायण चौधरी, जुन – २०१२.