होली शुभकामना प्रति कृतज्ञताक सन्देश
आदरणीय सहयात्री – श्रेष्ठ एवं अनुज सहित सम्बन्ध विशेषक स्वजन-परिजन लोकनि!
‘फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल’ – मोन पड़ैछ ई लाइन । भरि साल विशेष इन्तजार उपरान्त अबैत छल/अछि होली, आ फेर देखिते-देखिते ई बीति जाइत छल/अछि । त मैथिल कवि बड नीक गीत लिखलनि जेकरा कतेको लोकगायक सब अपन-अपन सुन्दर आवाज दय आगू बढौलनि – से गीत केर बोल पर नजरि दियौक कने –
फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल
फगुआ खेलाय ल’ मोन लगिले रहि गेल
हे यौ होली खेलाय ल’ मोन लगिले रहि गेल
कतेक जतन स हम चिठियो लिखलियइ
दुइये दिनक खातिर हम त आब’ ल’ कहलियइ
ओकरे पर मन हमर टंगले रहि गेल
फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल….
ढोल बाजल डम्फा बाजल होइ छलय गर्द
एम्हर हमरा होइत छल मीठ मीठ दर्द
सख सेहन्ता सबटा जरले रहि गेल
फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल….
जरल छल कपार त हम कोना क हंसितौं
ननैद आ दियर संग खेलबे कियै करितौं
रंग अबीर हमर पड़ले रहि गेल
फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल…..
मोन मारि रहि गेलहुँ पिटैत कपार
पड़ले रहलहुँ भरि दिन बन्दे क’ केबार
तइ ल’ बुढ़िया अर्र-दर्र भरि दिन बजिते रहि गेल
फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल….
केहन होइ छय फगुआ से हम नै बुझलियै
भीज गेल गेरुआ हम ततेक कनलियै
ननैद निरासी तइ ल’ खौंझबिते रहि गेल
फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल….
आब यदि एतय मनसा बजबो नै करबै
कतेक मनेतय त एकटा बात पुछबै
एहेन निसोख आब अहाँ कियै बनि गेल
फगुआ आयल, फगुआ गेल, फगुआ चलियो गेल…
अपन मिथिला मे रोजी-रोटी लेल परदेश जायब बेसी लोकक जीवन मे मजबूरी बनि गेल छल । तेहेन समय मे नायिकाक नायक परदेश सँ नहि आबि सकलथि, नायिका बस हुनकर बाटे जोहैत रहि गेलिह, तखन ई बोल सहितक गीत रचित भेल ।
आब, अपने सब जे वर्तमान मिथिलाक लोक छी से परदेशहु मे अपन आशियाना ठाढ़ कय ओतय ‘मिथिला टोल’ निर्माण कय ‘होली’ जेहेन पाबनि मे नायक-नायिका व परिजन समेत रहि रहल छी । लेकिन ई महापर्व कोन बाटे अबैत अछि, कोन बाटे चलि जाइत अछि, बुझू जे लिल्लोह नायिका जेकाँ हम-अहाँ बाट निहारिते रहि जाइत छी ।
बसन्त ऋतुक चरमोत्कर्षरूपी ई महापर्व मे जहिना पतझड़ उपरान्त नव-नव पल्लव पुष्पित हेबाक वरदान (शक्ति) गाछ-वृक्ष केँ भेटैत छैक, किछु तहिना हम मानव लेल सेहो ई ऋतुक वरदान नया शक्ति प्राप्तिक होइछ । बसन्त पंचमी सँ एक मास धरिक विशेष मौसम मे कतेको रास मौसमी आनन्द (फगुआ गीत, जोगीरा, हंसी-चउल, आदि) संग रंग-अबीर लगाकय, पुआ-खीर खा कय ‘होली’ मनबैत छी । मौसमक झमार बहुतो तरहक भेल करैछ, कविक मोन मे बड बात छन्हि ओ लाजे लिखि नहि पबैत छथि… पाठक सब केँ एतबे कहैत छथि जे सब अपन-अपन मोन केँ टटोलू – गुप्त बात सब गुप्तहि बुझू । ई मौसमक खुमारी केँ भांगक भेराइटी आरो बुझू धधका देल करैत अछि ! खैर, आब त भाँगक बदला कयटा देशी-विदेशी सभक बाढ़ि आबि गेल अछि, विराटनगर मे काल्हि देखल जे सबटा पार्टी पैलेस आ रिसौर्ट सब भरल छल । होलीक खुमार मनुख पर तेना सबार छल जे पुछू नहि । लेकिन बहुते लोक घर धएने बुझेलाह । बाहर कम लोक देखायल । अपने सब दिश केहेन छल ?
एम्हर डिजिटल युग मे डिजिट के गेम (व्हाट्सअप, फेसबुक मार्फत) सेहो होली मनबैत रहल । मानव समाज अपन संवेदना कतहु प्रकट कय सकैत छथि, से खुब भेल । हम ३ दिन सँ डिजिटली डिसकनेक्टेड रही । आइ फुर्सत मे अपने सब लेल किछु चिन्तन कय केँ ई कृतज्ञताक सन्देश पठा रहल छी ।
* होलीक मौलिक स्वरूप छहोंछित भ’ रहल अछि । एहि पर ध्यान दय जेबय ।
* पुआ-पकवान संग माउस त बुझू कम्पलसरी भ’ गेल अछि, भगवती (कुलदेवता) केँ पातरि आ ईश-यजन (प्रार्थना) सभक घोर कमी देखि रहल छी । कहीं हिरण्यकशिपु वला बाट त नहि धय रहल छी हम सब ?
* होलिका दहन केर विध सेहो कम देखलहुँ, धरि होलिका वला गुणधर्म स्वयं अपनबैत आसपासक लोकक बरक्कति सँ स्वयं केँ जरबैत रहबाक आ निर्दोष प्रह्लादरूपी सामाजिक सौहार्द्र तक केँ जराकय खाख बना देबाक दुष्प्रवृत्ति सेहो वीभत्स रूप पकड़ने जा रहल अछि, चिन्तन करब ।
* हिरण्यकशिपु पुत्र प्रह्लाद केँ दण्ड देबाक लेल आखिरी मे स्वयं उद्दत् भेल । ओकरा मानू अपना लेल प्राप्त वरदान सँ वरदान देनिहार ईश्वरे प्रति घृणाक बढ़ोत्तरी एतबा भ’ गेल छलैक जे ओ चरम नास्तिकता मे बेटा सँ ईश्वरक सत्ता-सामर्थ्य बारे अट्टहास करैत सबाल पुछैछ । बेटा कहैत छन्हि – “हँ हौ बाउ, ईश्वर तोरा मे, हमरा मे, सब मे, एतय, ओतय, सब तैर…”, मुदा अहंकारी बाप तैयो नहि सम्हरैछ… सत्ताभोगक अजीब मद मे डूबल आखिर मे ओकर अहंकार केँ तोड़य लेल ‘प्रगट भए फाड़ के खम्भा’ भगवान् नृसिंह रूप मे आबिकय वरदानक सारा शर्त केँ अक्षरशः पूर्ति करैत न’ह सँ ओकर शरीर विदीर्ण करैत दण्ड दय भक्त प्रह्लादक रक्षा करैत छथि । आइ हमरा सब कोन हिरण्यकशिपु (निज अहंकार, दम्भ, दर्प, क्रोध, आसक्ति, आदि) केँ कतेक विदीर्ण कय केँ होली खेलाइत छी – ई मनन योग्य विषय अछि ।
खैर! ‘हैप्पी होली’ वला डिजिटल फुचकारी सँ फेंकल ‘आर्टिफिशल इन्टेलिजेन्स – एआई’ वला रंग-बिरंगी होलीक शुभकामना प्राप्त भेल । हम शब्दरूपी मिठास सहितक सन्देश दैत अपनेक शुभकामना प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कय रहल छी । देरी लेल क्षमायाचना सहित,
अपनेक स्नेही,
प्रवीण
हरिः हरः!!