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होली पर्व आ शुभकामनाक मर्म

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

होली पर्व आ शुभकामनाक मर्म

प्रत्येक वर्ष बसन्त ऋतुक चरम यौवनमे मनायल जायवला पर्व (पाबनि) थिक होली । फागुन पूर्णिमाक राति होलिका दहन आ तेकर भोरे रंग-अबीरक खेल खेलाइत, एक-दोसरकेँ रंग-अबीर लगबैत पूर्ण उत्साह सँ होली पर्व मनायल जाइछ । हम सब अपन परिवारक संगहि टोल-पड़ोस, समाज आ मित्रमंडली संग आजुक दिन विशेष ढंगसँ आनन्दित भ’ होली मनबैत छी ।

वास्तवमे ई पाबनि हमरा सब केँ नव ऊर्जा आ संकल्पशक्ति प्रदान करैछ, तेकर प्रत्यक्ष अनुभूति होइत अछि ।

असत्य उपर सत्यक जीतकेँ स्वीकार करैत एक-दोसरकेँ सत्यक पथमे आगू बढ़बाक आ विजेता बनबाक सन्देश-शुभकामना दयवला पाबनि थिक होली । असल अध्यात्म एतेक सुन्दर आ अनुकरणीय होइतो क्रमिकरूपसँ एकर विपरीत दिशामे बढ़ैत जेबाक दोषभाव सेहो मोनमे कतहु-न-कतहु सवाल उठा रहल भेटैत अछि हमरा ।

एहि पाबनिसँ भेटयवला आध्यात्मिक उन्नति जेहेन उच्च मूल्यवान् सन्देश विकृत होइत जा रहल अछि आर आब भौतिकतावादी भोग व सांसारिक सुखक लेल मात्र एकर प्रासंगिकता शेष रहि गेल अनुभूति होइत अछि ।

विगत किछु वर्षमे होलीक पाबनि मनेबाक विशेष दिन सँ बहुत पहिनहिं सँ ‘होलीक शुभकामना आदान‍‍-प्रदान’ अथवा ‘होली मिलन समारोह’ जेहेन कार्यक्रमसब आयोजन कय आरो-आरो दिन होली मनेबाक परम्परा हावी होइत जा रहल देखैत छी ।

विभिन्न संघ-संस्थाद्वारा बसन्त पंचमी (सरस्वती पूजा) बाद आ गोटेकद्वारा होली समाप्त भेलाक बादो ‘शुभकामना आदान-प्रदान’ करैत अबीरक टीका लगबैत (कतहु-कतहु त होलिये जेकाँ रंग-अबीरो खेलाइत) होली मनायल करैछ देखाइछ । एकरा सकारात्मके लैत छी, मुदा मूल पर्व आ दिन-विशेषक आध्यात्मिक महत्व कम होइत जा रहल अछि, आर बहुते किसिमक विकृतिसब पसरैत जा रहल देखि चिन्ता सेहो बढ़ि रहल पबैत छी ।

हमरा लोकनिक मिथिला परम्परामे फागुन पूर्णिमाक दिन कुलदेवताकेँ पुआ-खीर-पुरी जेहेन पकवान बनाकय प्रसादरूपमे अर्पण कयल जाइछ । कुलदेवता समक्ष रंग-अबीर सेहो चढ़ायल जाइछ आ अबेर राति होलिका दहन कयकेँ, कतेको घर मे विशेष पूजा-अर्चना (यथा सत्यनारायण भगवानक पूजा आदिक आयोजन) आ प्रात दिन (ऐगला दिन) रंग-अबीर लगेनाय, प्रसाद बँटनाय तथा खुशियाली मनेनाय विशेष विधान अछि ।

दुपहर १२-१ बजे धरि रंगक खेल समाप्त कय सबकियो नहा-सोनाकय नव परिधान मे सजि-धजि अपन आ आन परिचित परिजनसभक घरमे रहल श्रेष्ठ उमेरक आदरणीय व्यक्तित्वसबकेँ पैरपर अबीर चढ़बैत आशीर्वाद लेबाक चलन अछि ।

मुदा, आब विकृतिक कारण ई सबटा पूजापाठ आ ईश्वरप्रति समर्पित रहि अपना सँ श्रेष्ठ सँ आशीर्वाद लेबाक बदला भाँग, गाँजा, दारू, मासु, माछा आर भोगक अन्य विभिन्न परिकारसबमे मात्र लिप्तता बढ़ि गेल अछि कहब त अतिश्योक्ति नहि होयत ।

हम विस्मयमे छी – होलीक मूलभाव देखू जे कतेक पवित्र आ व्यवहारमे ठीक विपरीत – आखिर ई हम मानव समाजकेँ कोन ठाम ल जा रहल अछि – कतय लय जायत – हमर मनमे ई चिन्तन आइ कतेको वर्ष सँ चलि रहल पबैत छी । फेर अपनों त समाजभितरहिक लोक छी, तेँ हम सेहो भोगवादी लोके जेकाँ होली मनबैत छी, तैयो मन-मस्तिष्कमे उठि रहल विषयपर ई लेख लिखैत भगवान् संग प्रार्थना कय रहल छी, हमरा सब गोटेकेँ सही बाटपर बढ़बाक शक्ति देथि । जय होली !!

हरिः हरः!!

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