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फगुआ माने मालपुआ आ रंग अबीर केर पावनि

लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- मिथिला मे फगुआ केर महत्व

  1. रंग अबीर के स्नेह आ सम्बन्ध के प्रतीक होली अर्थात् फगुआ जे फागुन में खेलायल जाइत अछि, एहि सम्बन्धमे कहल जाइत अछि जे “जे जीबए से खेलय फागु” अर्थात् फगुआ केर महत्व मिथिला में बहुत बेसी छैक। फगुआ के इतिहास के सम्बन्ध में कहल जाइत अछि जे प्रारम्भ में विवाहित स्त्रीगण द्वारा हुनक परिवार के खुशी आओर समृद्धि वास्ते एकटा अनुष्ठान के रूप मे कयल जाइत छल। पौराणिक कथा केर अनुसार हिरण्यकश्यप के बहिन होलिका द्वारा प्रह्लाद के आगि मे भस्म करवाक लेल आगि मे कूदि जाइत छैथि मुदा प्रह्लाद के असीम भक्ति के कारण भगवान नारायण स्वयं प्रह्लाद केर रक्षा करैत छैथि आ होलिका जिनका वरदान प्राप्त छलैन्ह जे आगि हुनका प्रभावित नहिं कऽ सकैत अछि मुदा ईश्वर केर असीम कृपा के समक्ष सभ किछु सम्भव अछि। ओहि दिन के हमरा लोकनि फगुआ के एक दिन पूर्व होलिका दहन के रूप मे मनावैत छी। हम सभ अपना ओहिठाम अत्यन्त शालीनता केर संग फगुआ के पावैन मनावैत छी। अपन श्रेष्ठ के चरण वंदना कए पैर पर अबीर खसा कऽ आशीर्वाद लैत छी। लाल रंग पुरिया के एकटा बाल्टी मे घोरि कऽ अपन संगी सभ संगे पिचकारी सँ रंग खेलएबाक आनंद एकटा अलगे होइत छैक। फगुआ दिन हमरा सभ भोरे उठि कऽ भरि बाल्टी रंग आ पिचकारी लऽ कऽ निकलि जाइत छल। गामक धिया पूता के झुंड मे आ पूरा गाम मे घुमैत छल। एहि मे धनीक गरीब केर कोनो अन्तर नहिं होइत छल। फगुआ दिन सभटा अन्तर के ई पावनि समाप्त कऽ दैत अछि। गामक प्रायः सभ आदमी आपस मे सभक प्रतीक्षा करैत छलाह आ पुनः हुनका सभ संगे रंग खेलाइत हुनका संग लैत आगू बढैत छलाह। पकवान मे मालपुआ खाइत खाइत  सभक हालत खराब भऽ जाइत छल। सभक ओहिठाम कने कने खाए पड़ैत छले।

हमरा लोकनि अत्यन्त शालीनता केर संग रंग खेलाइत छलहुँ। जिनका रंग खेलएबाक मोन नहिं होइत छलैन्ह हुनका हम सभ जबरदस्ती रंग नहिं दैत छलियन्हि। पूरा गाम मे एहि पावनि सँ एकटा अत्यन्त मजबूत सम्बन्ध स्थापित होइत छल आ आपस के दूरी समाप्त भऽ जाइत छल। पूरा शरीर रंग सँ सरावोर भऽ जाइत छल। फेर स्नान कयलाक उपरान्त गामक लोक सभक संग दरबज्जे दरबज्जे फगुआ गीत गेवाक लेल हारमोनियम ढोल झाइल बला सभ संगे जाइत छलहुँ आ बहुत नीक नीक फगुआ के गीत आ जोगीरा सरररर सभ गाओल जाइत छलैक। सभक दरबज्जापर सरबत आ पान सुपारी देल जाइत छलैक। कोनो कोनो दरबज्जापर भांग केर ब्यवस्था सेहो रहैत छलैक जकरा हम सभ बिशेष कऽ कऽ फगुआ गावय बला के पिया दैत छलियै आ तकर बाद ओकर गबै के अन्दाज आओर नीक भऽ जाइत छलैक। भरि दिनक कार्यक्रम एकदम ब्यस्त रहैत छल। के अधिकारी? के विद्यार्थी आ के महीस चरवाह? कोनो अंतर नहि। सभटा अंतर के ई रंगीन फगुआ समाप्त कऽ दैत छल। मुदा आब एहि पाबनि के दशा आ दिशा दुनू बदलि रहल छैक। लोक रंग खेलेनाइ देहाती होयवाक परिचायक मानैत छैथि। कियो जँ गलती सँ रंग लगा देलकैन तऽ ओकरा सँ झगड़ा करवाक लेल तैयार भऽ जाइत छैथि ।फगुआ के रंग आस्ते आस्ते मिथिला फीका भेल जा रहल अछि। सम्बन्ध केर मजबूती ढील भेल जा रहल अछि। गाम में एखनो धरि ई पावनि किछु बचल अछि मुदा शहर मे एहि पावनि के उद्येश्य के बिपरीत प्रभाव पङैत छैक। मिथिलाक इन्द्रधनुषी पावनिक एहि परम्परा आ उद्येश्य के धीरे धीरे हमरा लोकनि बिसरल जा रहल छी आ आवश्यकता छैक एकर पुनरुत्थान के। फगुआ अवितहि अतीत में घुमय लगैत छी आ मोन होइत अछि पुनः धमगिज्जर करवाक लेल मुदा आब अपना के नियंत्रित करैत छी जे कियो आदमी एकरा खराब नहिं मानैथि। सभक मुँह सँ निकलैत छलैक बुरा नै मानु होरी मे… जय मिथिला आ जय मिथिलाक पारम्परिक पावनि तिहार ।

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