लेख विचार
प्रेषित: परमा दत्त झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “मातापिता केॅ सन्तानक प्रति कर्तव्य
मौलिक
माता पिता केॅ सन्तानक प्रति कर्तव्य अत्यधिक गंभीर विषय अछि। समाज आ परिवार लेल अत्यंत दुखद परिणाम देमयवाला विषय वस्तु अछि।
आजुक युग अर्थक अछि जाहिमे दूनूगोटे नौकरी करैत छथि । दूनू पढल लिखल आ ज्ञानी छथि। नतीजा धियापुता लेल समयक नितांत अभाव।
पाई छन्हि ते नीक से नीक विद्यालय में नाम लिखौने छथि । पर आया छन्हि सबकिछु । मुदा बच्चा केर माय बापक प्रेम आ अनुशासन नहि छैक। विपत्ति काल मे नेना असहाय बुझैत अछि अपना कऽ।ओकर मायबाप केर लग समय नहि छैक। परिणाम सामने अछि।आई धियापुता उदंड भ अमर्यादित अछि। नशापान करैत अछि । लव मैरिज सब सन कुचक्र यैह परिणाम अछि।
पहिने संयुक्त परिवार छल ।दादा-दादी, पित्ती सहित सब रहैत छलैक। नतीजा ज कोनो घटना भेबो कैल त सब मिलिकय सम्हारैत छलैक।
मुदा अखनि दादा दादी गाम मे आ नौकरी मे बाझल माय बाप । हांस्टल मे नेना या आया के कोरा मे अबोध नेना। की हेतैक एहन समाजक ?
परिणाम सामने अछि ।मायबाप के अपमान,केकरो मोजर नहि देनाई नीक गप नहि ।सबटा उल्टे भ रहल अछि।
ते आबो ध्यान दियौ। बच्चा के समय दियौक आ ओकर समस्या ओकर नेह के बुझु। पाई केकरा लेल जोगैब?
आई कनैत दलान आ गाम मे कुहरैत माय बाप के रूप मे कतेको बुजुर्ग अछि।
ते स्वयं के सुधारूं। अपन मौलिक कर्तव्य के बुझू। संतान अहींक छी। कोना चारपर फडल सजमनि नहि।
तेँ संतानक प्रति अपन मौलिक कर्तव्य कें पालन करू ।तखने अधिकार वा सम्मान भेटत ।अधिकार आ कर्तव्य सहोदर भाई से मोन राखी। आ अपन कर्तव्य अवश्य करी।