स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
!!श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः!!
रामरक्षा – स्तोत्रम्
विनियोगः – अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक-ऋषिः, श्रीरामचन्द्रो देवता, अनुष्टुप्छन्दः, सीताशक्तिः, श्रीमद्धनुमत्कीलकम् । श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ॥
श्रीसीताजी तथा श्रीरामचन्द्रजी केँ नमस्कार अछि । एहि श्रीरामरक्षास्तोत्र केर ‘बुधकौशिक’ ऋषि छथि । श्रीसीताजी एवं श्रीरामचन्द्रजी देवता छथि । एकर वर्णन अनुष्टुप्छन्द मे अछि । श्रीसीताजी शक्ति छथि । श्रीहनुमान्जी कीलक छथि । श्रीरामचन्द्रजीक प्रीत्यर्थ श्रीराम-रक्षा स्तोत्रक जप मे ई विनियोग अछि ।
ध्यानम्
ध्यायेदजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थम्,
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।
वामाङ्कारूढसीतामुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभम्,
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम् ॥
इति ध्यानम् ।
ठेहुन धरि बाँहिवला, धनुषबाण धारण कएने, पद्मासन लगाकय बैसल, पीयर वस्त्र पहिरने, नवीन कमल दल केँ लज्जित करयवला, नेत्र सँ युक्त प्रसन्न वदन, सीताजी केँ वाम भाग मे बैसौने, मुख-कमल सँ मिलैत नेत्रवला, घनश्याम, नाना प्रकारक अलंकार सब सँ चमकैत तथा हृदय पर्यन्त मे जटा-मण्डल धारण कएने श्रीरामचन्द्रजी केर हम ध्यान करैत छी ।
ई ध्यान थिक ।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
रघुनाथजीक चरित्र केर सौ करोड़ विस्तार अछि, हुनक एक-एक अक्षर मनुष्यक महापातक सब नाश करयवला अछि ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकी-लक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितुण-धनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
जानकी तथा लक्ष्मण सँ युक्त, जटाक मुकुट सँ मण्डित (भूषित), नीलकमल केर समान श्याम, कमलनेत्र, कटि (डाँर्ह) मे तलवार आ तरकस और हाथ मे धनुष-बाण धारण कएने, राक्षस लोकनि केँ अन्त करनिहार, अपन लीला सँ जगत् केर रक्षा करबाक लेल अवतरित, सर्वव्यापक, जन्मरहित श्रीरामचन्द्रजी केर ध्यान कय केँ प्राज्ञ (विज्ञ) लोकनि पाप सभक हनन करय लेल तथा सब कामना पुरबयवला रामरक्षा स्तोत्र केँ पढ़थि ॥२-३॥
रामरक्षां पठेत् प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥४॥
हमर शिरक रक्षा राघव आ भाल (ललाट) केर रक्षा दशरथात्मज करथि ॥४॥
कौशल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥५॥
कौशल्येय नेत्र केर, विश्वामित्रप्रिय कान केर, मखत्राता नासिका तथा सौमित्रि-वत्सल मुख केर रक्षा करथि ॥५॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥
विद्यानिधि जिह्वाक, भरतवन्दित कण्ठक, दिव्यायुध कन्धाक आ भग्नेशकार्मुक बाँहि केर रक्षा करथि ॥६॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥७॥
सीतापति हाथक, जामदग्न्यजित् हृदय केर, खरध्वंसी मध्य केर तथा जाम्बवदाश्रय नाभि केर रक्षा करथि ॥७॥
सुग्रीवेशः कटिं पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
ऊरू रघुत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥८॥
सुग्रीवेश कटि केर, हनुमत्प्रभु हड्डी केर आ राक्षसकुल-विनाशक रघूत्तम ऊरु (ठेहुनक उपरी भाग जाँघ) केर रक्षा करथि ।
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥
सेतुकृत् ठेहुन केर, दशमुखान्तक टांग केर, विभीषणश्रीद पैर केर आ सम्पूर्ण शरीर केर रक्षा श्री रामचन्द्रजी करथि ।
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सृकृतीं पठेत् ।
स चिरायुः सुखी पुत्रो विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
जे पुण्यवान् राम केर बल सँ युक्त एहि रक्षा-स्तोत्र केँ पढ़ैत अछि ओ दीर्घायु, सुखी, पुत्रवला, विजयी आ विनयी होइत अछि ।
पाताल – भूतल – व्योम – चारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥११॥
राम-नाम द्वारा रक्षित पुरुष केँ आकाश, पाताल आ भूतल पर विचरयवला कपटधारी गण देखियो तक नहि सकैत अछि, किछु कय सकब त दूरक बात भेल ।
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
राम, रामभद्र अथवा रामचन्द्र – एना स्मरण करयवला लोक पाप सँ लिप्त नहि होइछ बल्कि ओकरा भुक्ति आ मुक्ति दुनू पदार्थ भेटैत छैक ।
जगज्जैत्रेकमंत्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था सर्वसिद्धयः ॥१३॥
राम-नाम केर मंत्र सँ अभिरक्षित जगत्-विजेता यंत्र केँ जे कण्ठ मे धारण करैत अछि, ओकर हाथ मे सम्पूर्ण सिद्धि स्थित भ’ जाइत छैक ।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम् ॥१४॥
वज्र-पंजर नामक एहि राम-कवच केँ जे स्मरण करैत अछि ओकरा सर्वत्र अव्याहत आज्ञा होइत छैक आ ओ जप व मंगल केर लाभ करैत अछि ।
क्रमशः….
हरिः हरः!!