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बुजुर्गक अनुभव, संस्कार, प्रेम आ मार्गदर्शन परिवार केँ मजबूती प्रदान करैत अछि

 

लेख विचार
प्रेषित: अशोक कुमार सहनी
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “परिवार मे बुजुर्ग केँ महत्व ”

वर्तमान समय में समाज में आधुनिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर पारंपरिक पारिवारिक संरचना धीरे-धीरे कमजोर भ’ रहल अछि। विशेष रूप स संयुक्त परिवारक प्रथा खत्म भ’ रहल अछि आ लोक अपन व्यक्तिगत जीवन में अधिक व्यस्त भ’ गेल अछि। एकर कारण स बहुतो घर में बुजुर्ग सब क’ उचित सम्मान और देखभाल नहि भेटैत अछि। बहुत रास लोक आब बूढ़-बुजुर्ग क’ अपन संग राखब एकटा बोझ मानैत छथि, जइ कारण सँ वृद्धाश्रमक संख्या बढ़ैत जा रहल अछि। मुदा अगर परिवार में बुजुर्ग सब रहैत छथि, त’ एकर बहुत फायदा होइत छै, खास क’ बाल-बच्चा आ नव पीढ़ीक मानसिक, नैतिक आ सामाजिक विकास में। आइ हम एहि लेख में बुजुर्गक महत्व आ हुनकर उपस्थिति सँ होइत विभिन्न लाभ पर चर्चा करब।

बुजुर्गक उपस्थिति सँ होइत लाभ

१. नैतिक शिक्षा आ संस्कारक विकास

बच्चा जब घर में बुजुर्गक संग रहैत छैथ, त’ हुनका स्वतः नैतिक शिक्षा आ पारंपरिक मूल्य भेटैत अछि। दादी-नानी, बाबा-दादा अपन जीवनक अनुभवक माध्यम स बच्चा केँ नीति, सदाचार आ सभ्यताक पाठ पढ़बैत छथि। एहि सँ बच्चा में धैर्य, सम्मान, सहानुभूति आ कर्तव्यपरायणताक भावना विकसित होइत अछि।

२. अनुभवक खजाना

बुजुर्ग लोकनि अपन जीवन में बहुत तरहक अनुभव बटोरने रहैत छथि। हुनकर ज्ञान आ अनुभव परिवारक प्रत्येक सदस्य केँ मार्गदर्शन द’ सकैत अछि। यदि कोनो समस्या अथवा कठिनाइयां आबि जाइ छै, त’ बुजुर्गक सुझाब आ सलाह बहुत उपयोगी साबित होइत अछि।

३. पारिवारिक एकता आ अपनत्वक भावना

बुजुर्ग अपन संतान आ पोता-पोती केँ जोड़ि क’ राखैत छथि। ओ परिवार में स्नेह आ अपनत्वक भावना विकसित करैत छथि। जेठ पीढ़ी अपन अनुभव आ धैर्य स नव पीढ़ी क’ परिवारिक एकता आ सद्भावना स जीबाक सिख दैत अछि।

४. कार्य संतुलन आ सुरक्षा

आजुक भागदौड़ भ’ रहल जीवन में माता-पिता दुनू काज करैत छथि, जइ कारण बच्चा सब अक्सर अकेलापन अनुभव करैत छथि। यदि घर में दादा-दादी अथवा नाना-नानी रहैत छथि, त’ ओ बच्चा क’ देखभाल करैत छथि, हुनकर पढ़ाई-लिखाई में सहायता करैत छथि, आ जरूरत पड़ला पर हुनका सुरक्षा प्रदान करैत छथि। एहि सँ माता-पिता अपन पेशागत जीवन में ध्यान द’ सकैत छथि।

५. धार्मिक आ सांस्कृतिक परंपराक संरक्षण

बुजुर्ग अपन संतान आ नाती-पोती क’ पारंपरिक आ धार्मिक संस्कार स परिचित करबैत छथि। तीज-त्योहार, रीति-रिवाज, कथा-कहानी आदिक माध्यम स ओ अपन संस्कृतिक महत्व बतबैत छथि। एहि कारण स पारिवारिक सदस्य अपन जड़ि स जुड़ल रहैत छथि आ समाज में सकारात्मक योगदान दैत छथि।

६. मानसिक आ भावनात्मक समर्थन

परिवार में बुजुर्ग रहला सँ परिवारक प्रत्येक सदस्य क’ मानसिक आ भावनात्मक मजबूती भेटैत अछि। जीवनक संघर्ष आ कठिन परिस्थितिमे ओ अपन अनुभवक आधार पर सबकेँ ढाढ़स बँधबैत छथि आ उचित मार्गदर्शन दैत छथि। खास क’ बच्चा सब अपना जीवन में आत्मविश्वासक संग आगाँ बढ़ैत छथि।

७. पारिवारिक समस्यासभ में संतुलनकारी भूमिका

परिवार में कई बेर छोट-छोट बात पर विवाद भ’ जाइत अछि। एहन स्थिति में बुजुर्ग लोकनि अपन धैर्य आ अनुभव स समाधान निकालैत छथि। ओ परिवारक सदस्य सब केँ एक-दोसरक प्रति सम्मान, प्रेम आ सहिष्णुता बनबबाक सिख दैत छथि।

बुजुर्गक उपेक्षा – समाज पर प्रभाव

अगर हम बुजुर्ग लोकनि केँ अपन जीवन स दूर राखि दैत छी, त’ एकर समाज पर बहुत नकारात्मक असर पड़ैत अछि। वृद्धाश्रम में अपन जिनगी बिताबय लेल विवश भ’ रहल बुजुर्ग सब मानसिक रूप स कमजोर भ’ जाइत छथि, जेकर प्रभाव हुनकर स्वास्थ्य पर सेहो पड़ैत अछि। दोसर ओर बच्चा आ नव पीढ़ी बिनु बुजुर्गक मार्गदर्शन स नैतिक पतनक दिशि बढ़ि सकैत अछि। संयुक्त परिवारक खत्म भ’ गेला स समाज में एकल जीवनशैली हावी भ’ रहल अछि, जेकर कारण लोक अधिक तनाव, अवसाद आ सामाजिक अलगावक शिकार भ’ रहल छथि।

बुजुर्गक सम्मान करबाक आ देखभाल करबाक कर्तव्य

१. संवाद बनाए राखू: बुजुर्ग सब स निरंतर बात करबाक चाही, हुनकर भावना बुझबाक प्रयास करबाक चाही।
२. सम्मान दियू: हुनकर अनुभव आ सुझाव क’ कदर करबाक चाही।
३. स्वास्थ्यक ध्यान राखू: बुजुर्ग सब क’ नियमित चिकित्सकीय देखभाल आ उचित खान-पान उपलब्ध कराउ।
४. परिवारिक माहौल बनाऊ: ओहि तरहक वातावरण तैयार करू जाहि स बुजुर्ग अपनाकेँ उपेक्षित नै अनुभव करथि।
५. संग समय बिताउ: बुजुर्ग संग समय बिताएब ओतबे जरूरी अछि जतेक धन आ अन्य संसाधन जुटाएब।

निष्कर्ष

परिवार में बुजुर्गक उपस्थिति मात्र क’एटा जिम्मेदारी नहि, बल्कि एकटा सौभाग्य छी। हुनकर अनुभव, संस्कार, प्रेम आ मार्गदर्शन परिवार क’ मजबूती प्रदान करैत अछि। यदि परिवार में बुजुर्ग सब रहैत छथि, त’ बच्चा सब बेहतर संस्कार ग्रहण करैत अछि, माता-पिता कार्य संतुलन बना सकैत छथि, आ परिवारिक सदस्य सब मानसिक रूप स मजबूत रहैत छथि।

संयुक्त परिवारक समाप्ति आ वृद्धाश्रमक बढ़ैत प्रचलन समाज लेल खतरा स कम नहि। एकटा सभ्य समाज ओहि ठाम बनैत अछि, जता बुजुर्ग केँ आदर आ स्नेह देल जाइत अछि। एहिलिए हमरा सबकेँ चाही जे हम अपन बुजुर्गक महत्व बुझी, हुनका अपन जीवनक हिस्सा बनाए राखी आ हुनकर अनुभव सँ लाभ उठाई। समाज में सकारात्मक परिवर्तन करबाक लेल हम सब के अपन जड़ि स जुड़ल रहब आवश्यक अछि।

“बुजुर्ग सिर्फ परिवार के नहीं, बल्कि समाज क धरोहर अछि एकरा सम्मान करू।

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