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राष्ट्र व राष्ट्रवाद :: गोपाल मोहन मिश्र

राष्ट्र व राष्ट्रवाद :: गोपाल मोहन मिश्र
अखंड भारत केर सपना,
चाणक्य कहियो मन में सजने छलाह
चंद्रगुप्त के माध्यम सँ,
भारत भव्य विशाल, पूर्वज बनेने छलाह
शक, हूण, कुषाण के ओ सभ ,
आगू बढ़ि कs अपनेने छलाह I

फेर भेल आक्रांता मुगल आ
अंग्रेज केर आगमन
राष्ट्रवाद केर भेल समापन
छोट-छोट राज्य-रियासते के,
हम सभ मानि लेलहुँ अपन वतन
स्वतंत्र होईते भारत धूर्त शैतान सँ हारल,
अखंड भारत केर सपना के भेल विघटन I

राष्ट्रीयता पर धर्म के षड़यंत्र सँ,
कटि गेल देशक बहुत पैघ हिस्सा
कुत्सित राजनीतिक चालि में उलझि कs,
मचल भयावह मारकाट आ हिंसा
लेकिन छोड़ूं जे छिटकि गेल,
ओ भेल काल्हि केर कारी किस्सा I

भारत राष्ट्र अछि, एक भूभाग विशेष
राष्ट्रवाद, अनुराग भाव केर दैत संदेश
जननी जन्मभूमि स्वर्ग सँ बढ़ि कs अछि,
शास्त्रो में समाहित छै ई उपदेश
गर्व करू अपन भारतीयता पर,
देश में रही वा रही परदेस I

मुश्किल नहि राम राज्य भारत में,
शुद्ध सनातनी, होअय भावना
बटबाक नहि छै, कटबाक नहि,
राष्ट्र सँ बढ़ि कs कोई धर्म नहि छै,
हम अपने समझी, आनो के समझाबी
हम नहि, राष्ट्र प्रथम केर भावना,
हृदय सँ हम अमल में लाबी I

शानदार रहल अछि सनातनी संस्कृति हमर,
नबका पीढ़ी के अवश्य गर्व कराबी
राष्ट्र सुरक्षित तs हम सुरक्षित,
सुरक्षित रहै राष्ट्र केर विशाल सीमाक्षेत्र
शास्त्र आ शस्त्र दूनू के समन्वय सँ,
चाणक्य के सपना केर देश बनाबी I

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