लेख विचार
प्रेषित: दीपा शेखर झा दिवा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- विषय – स्त्रीक स्वतंत्रता ( स्वैच्छिक)
- स्त्रीक स्वतंत्रता एक एहन गुढ़ विषय और विवाद से भरल विषय अछि जाहि सम्बन्ध में एक पक्ष/विपक्ष के सुनि के अपन निर्णय पर पहुंचनाए असम्भव अछि। अपन सभक समाज मे पूर्ण स्वतंत्रता या पूर्ण परतंत्रता के कल्पना केनाइ अतिस्योक्ति स कम नहि हैत। ई त मिथ्यात्मक अछि।
यदि रुपया – पैसा के या अर्थ के केन्द्रविन्दु से राखि क विचार कयल जाए त स्त्री सब दिन परतंत्र रहल छथि। लेकिन मात्र एकरा मानक मानी क अपन विचार के मूर्त रूप देबय कें कोशिश या प्रयास सही नहि होयत। एकर अनेको कारण अछि जाहि मे सबसे प्रमुख कारण प्रकृति के वरदान अछि – जननी बननाय।
जैं जननी छथि तैं हुनका अन्दर ममता सेहो भरल छैन्ह । जखने ममता छैन्ह तखने ओ अपना छाती मे बच्चा के चिपका के नहि रखती त हुनका मोने नहि मानतैन्ह। ओहि समय मे रुपया – पैसा हुनका लेल अर्थहीन बुझाइत छैन्ह।
बचपन मे ओ माय – बाप, भाई – बहिनक परतंत्रता मे रहैत छथि। भाई बहिनिक कपड़ा धोनाय, बर्तन – बासन केनाय , मायक काज मे हाथ बटेनाय, सहयोग केनाय इ सब काज हुनका सामान्य बुझाइत छन्हि। कियाक त ओ ममता से ओत प्रोत छथि ओ परिवार के सब सदस्य के अपन बुझि दिल से प्रेम करैत छथि आ भरपूर प्रयत्न मे लागल रहैत छथि जे कना हुनका सभ के खुश राखी।
बचपने स कर्त्तव्यबोध स लाईद देल जाइत छैन्ह। यदि कर्तव्य स विमुख भ जाइथ तऽ अहि परतंत्रता से हुनका आजादी या स्वतंत्रता भेटि जेतैन्ह परंच ओ इ क नहि पबैत छथि।
विवाह भेला के बाद सासूर मे साउस – ससूर, घरवाला, धीया – पूता आ घरक एक एक सदस्य के आवश्यकता के पूर्ति केनाई ओ अपन कर्तव्य बूझी पूर्ण करैत छथि। कर्तव्य के पूर्ण करय मे लागल रहैत छथि तैं हुनका अपना लेल समय नहि भेट पबैत छन्हि। तैं स्त्री कना कहियो स्वतंत्र भ सकैत छथि।
ई स्वतंत्रता के वाद विवाद मे एकटा विचार अबैत अछि कि पुरुष स्वतंत्र छथि । लेकिन हमर सोच अहि विचार स भिन्न अछि। पुरुषक आमदनी सेहो त घर के आमदनी भ जाइत अछि। अपना क्षमता अनुसार हरेक पुरुष अपन घरक भौतिक सुख सुविधा के व्यवस्था करैत छथि या करअ पड़ैत छैन्ह। ताहि कारण स्वतंत्रता, परतंत्रता आ कर्त्तव्यपरायणता बहुत संवेदनशील विषय अछि। अनेको बेर एकरा बीच मे विभेद करयवला रेखा धूमिल भ जाइत अछि।
हमर सबहक एहन समाजिक ताना – बाना बनल अछि जाहि मे पुरुष आ स्त्री दूनू गोटे के एक दोसरा के समझय के कोशिश करय परतैन्ह, संगही आपस मे प्रेम राखय परतैन्ह, एक दोसरा के बात व्यवहार के बुझै के कोशिश करय परतैन्ह, दूनू गोटे मे विचारक ताल – मेल बैसतैन्ह त अपने आप सब स्त्री के स्वतंत्रता बुझैतैन्ह।
स्त्री स्त्रीये के हुनर के दबाबै के कोशिश करैत छथिन्ह इ उचित नहि। हरेक पुरुष आ स्त्री के यैह कहबैन्ह जे ओ स्त्रीक मनोबल के नै तोरैथ, हुनका हरदम आगु बढै के लेल प्रोत्साहित करथिन्ह आ हुनकर ज्ञान आ हुनर के नहि दबाइल जाइत तऽ अपने आप के ओ स्वतंत्र बुझय लगतीह ।
अहि समाज मे एखनहु बहुतो जगह स्त्री के अनेकानेक रुपे बहुतो प्रताड़ित कयल जाइत अछि। एक स्त्री के मानसिक रुप से स्वतंत्रता भेटनाई स्त्री के लेल बहुत जरुरी अछि तखने ओ आगु बढ़ती आ अपन नाम संग अप्पन कुलक नाम सेहो रौशन करतीह आ संगहि अप्पन मिथिला मैथिली लेल सदति ठाड़ रहतीह ।