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रोजगार पाबैक केर खींचतान मे विवाह चुनौतीपूर्ण अछि

लेख विचार
प्रेषित: अर्चना मिश्र अर्शी
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार गतिविधि

विषय :- “माता-पिता लेल बेटा-बेटी केँ विवाह पहिने सँ बेसी चुनौतीपूर्ण भ’ गेल अछि से किएक ” –

आइ काल्हि माता-पिता लेल बेटा-बेटीक विवाह एक बड पैघ चुनौती भ’ गेल अछि।पहिने लोक परंपरागत रूप सँ चलैत आबिरहल रिति ‘क अनुसार स्थिर करैत छलाह ओ विवाह बेटा-बेटीक मान्य होइत छलनि ओ ओहि मे कोनो मिनमेख नै निकालैत छलाह। मुदा! आब विवाह अपन स्टेट्स सँ बढ़ि होइत छैक जाहिमे माता-पिता पिसल जाइत छथि।

सोचमे परिर्वतन!आजुक युवा अपन जिनगीक निर्णय अपन हिसाब सँ‌ लैत छथि।ओ परिवारिक विचारक कोनो महत्व नहि दैत छथि अपन निर्णयक आगा। एहि कारण बेटा-बेटीक विवाह मे माता-पिताक लेल चिन्ताक कारण बनैत अछि।

आजुक युवा अपन जिनगीमे कैरियरक महत्वक बेसी प्रथमिकता छनि! बहुतों ठाम देखल जाइत छैक बाल बच्चा अपन विवाह सँ बेसी कैरियरकेँ दैत छथि।पहिने अपन भविष्य सुरक्षित करैत छथि तखन ओ विवाह सन पवित्र बंधन मे बंधे छथि।दुनूक सोच बेटा हो आ बेटी ओ पहिने पढ़ाई लिखाईक प्राथमिकता दैत छथि,तखन किछु।

परम्परामे बदलाव!समाज आ घर परिवार अपन बच्चाक अनुसार अपन रिति रिवाज मे बदलाव कर’परैत छनि इच्छा नहियो रहैत अपन सोच आ संस्कार बदलि लैत छथि संतानक खुशीक लेल हुनकर खुशीमे अपन खुशी ताइक लैत छथि।आ सहमति नहियो रहैत ओ स्वीकार क’ लैत छथि।

मध्य वर्गीय परिवार लेल विवाहक खर्च वहन करब एक चुनौतीपूर्ण समस्या भ’ गेल अछि! माता-पिता लेल विवाहक खर्च पूरा करब एकटा सबसँ पैघ समस्या भ’ गेल छनि। बच्चा अपन अनुसार सोच रखैत छनि माता-पिता अपन अनुसार आ दुनूक सोचमे काफी अन्तर! ई नहि जे बच्चा सिर्फ और सिर्फ अपन अभिभावक पर निर्भर रहैत छथि ओहो सहयोग करै चाहैत छथिन आ करातौ छथिन मुदा! ई अभिभावक केँ मंजूर नहि होइत छथि अगर किनको करै परैत छनि तँ जिनगी भरि मनमे मलाल रहि जाइत छनि ।

आब बच्चा अपन परम्परा आ संस्कारक महत्व नहि दैत छथि! हँ ओहो ठीक छैक लेकिन अपन विचारक पहिल प्राथमिकता दैत छथि। स्टेट्स केँ उपड़ रखै लेल बहुत किछु दाव पर लगब’ पड़ैत छनि।संग आर्थिक आ मानसिक दुनू आहत होइत छनि।अपन बच्चाक सँ भविष्य मे देखभाल करब असम्भव बुझना जाइत छनि जतै रुपया- पैसाक बेसी महत्व छै ओहिठामक माता-पिता अपन बुढ़ापाक सुख सँ वंचित रहि जाइत छथि।
प्रेम विवाह आब बेसी अपन पैर पसारि रहल अछि ताहुमे अंतर्जातीय। माता-पिता पहिने अपन मोनकेँ बुझबैत छथि तखन चेहरा पर मुखौटा ओढ़ि समाज आ हित अपेक्षितक। बच्चा खुशीमे अपन खुशी तकैत मोन भ’ सब स्वीकार क’ लैत छथि।
मुदा!
ई सभक लेल नहि आबोक किछु बच्चा अपन माता-पिताक आज्ञाक पालन सिरोधार्य करैत छथि।
हुनकर मोनक मुताबिक गृहस्थ जीवनमे प्रवेश करैत छथि।

 

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