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कर्तव्यक वोध सँ पूर्णरूपसँ अनभिज्ञ रहैत अधिकारक बात उचित नै

 

लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “आजुक युवा युवती के अधिकारक संग कर्तव्य बोध भेनाइ कतेक आवश्यक

करमनैवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन….. अर्थात कर्म करवाक अधिकारी हमरा लोकनि छी तें कर्म कयनाइ अत्यंत आवश्यक। कर्म कोन तरहक कऽ रहल छी से सभ सँ बेसी महत्वपूर्ण। कर्म जँ सकारात्मक होइत छैक तऽ ताहि हिसाबे ओकर फल भगवान दैत छथिन्ह आ एकर विपरीत कर्म के विपरीत फल भेटैत छैक। मनुख जखन जन्म लैत अछि तखन ओ कर्म सँ स्वतंत्र रहैत अछि आ जेना – जेना ओकर अवस्था बढैत छैक ओ अगल बगल के वातावरण के देखैत कर्म सँ प्रभावित होइत अछि। प्राथमिक शिक्षा के रूप में सेहो ओ पहिले क पढैत अछि आ तखन ख अर्थात पहिले कर्म आ तखन खाना अर्थात भोजन। मुदा वर्तमान परिस्थिति मे लोक क अथवा ख सँ पहिले अ पर जा कऽ अटकि जाइत अछि। अ अर्थात अधिकार। हमरा लोकनि बिसरि जाइत छी जे अधिकार प्राप्त करवाक लेल कर्म करय पड़ैत छैक। तें श्रीमद्भागवत गीता में करमनैवाधिकारस्ते कहल गेलैक अछि। आइ काल्हि के धिया पूता के हम अमुक बाबू के धिया पूता छी आ हमरा अपन पिता के सम्पत्ति पर पूरा अधिकार अछि। बेटा बेटी के अपन पैतृक सम्पत्तिमे पूरा अधिकार होइत छैक एहि में कोनो संदेह नहि मुदा बेटा बेटी के सभ सँ आवश्यक छैक अपन माय बापक प्रति कर्तव्य। हमर माय बाप कोना प्रसन्न रहताह? हुनका कोनो प्रकारक शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट नहिं होइन्ह। ओ कखनहुं अपना के असगर होयवाक अनुभव नहिं करैथि।जीवनक कोनो निर्णय में हुनक सहभागिता पूर्ण रूप सँ होयवाक चाही कारण कोनो माता-पिता अपन संतान के प्रति कखनहु खराब नहिं सोचि सकैत अछि तेँ कहल गेल छैक जे “कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति” अर्थात पूत कपूत भऽ सकैत अछि मुदा माता कुमाता नहिं भऽ सकैत छैथि। माय बाप सँ जँ हुनक संतान मात्र हुनक बिचार पूछैत छथिन्ह तऽ ओहि माता पिता के कतेक प्रसन्नता होइत छैन्ह ओ एकटा माता पिता मात्र कहि सकैत छैथि। नव पीढी उच्च शिक्षा लेल बहुत जल्दी अपन माय बाप सँ दूर भऽ जाइत छैथि परिणामस्वरूप ओ माय बापक स्नेह सँ पूर्णरूपेण अवगत नहिं भऽ पबैत छैथि तें कर्तव्यक वोध सँ पूर्णरूपसँ अनभिज्ञ रहैत छैथि। श्रवण कुमार के खिस्सा हुनका नीक नहिं लगैत छैन्ह जे वर्तमान समाज के लेल एकटा नीक संकेत नहिं अछि।

 

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