कविजी वाहवाह
(आलोचना – प्रवीण नारायण चौधरी)
पूरा पंडाल लोक सँ भरल छल । तखनहि मंच पर घोषणा भेल जे गीतनादक बाद ‘कवि-गोष्ठी’क सत्र चलत । मैथिली भाषा मे कवि सभक दशा एहने छन्हि जे आधा पंडाल ‘कवि-गोष्ठी’क नाम सुनिते चलि देलक । मैदानक बाहर कियो झाल-मुरही खा कय समय बिता रहल छल, कियो चाह पिबिकय । ओम्हर कवि लोकनिक नाम बजाहट होइत रहल, मंच संचालन करनिहार अपना भरि प्रयास करैत रहलथि जे कोहुना पब्लिक केँ पंडाल मे रोकिकय राखल जाय । ओ आवाज दैत कहलखिन जे, “एना हताश नहि होइ जाउ, कविराज सब एक सँ एक छथि । बहुत दूर-दूर सँ आयल छथि ।” मुदा गोटेक-आधेक साहित्यप्रेमी आ आयोजक मंडलीक कर्त्ता-धर्त्ता सब छोड़ि पंडाल पूरे खाली भ’ गेल ।
कविता पाठ लेल कवि सभक नाम बजाओल गेलनि । वरिष्ठ कवि केँ अध्यक्षता सौंपल गेलनि । कनिष्ठ कवि सब केँ पंडाले मे छोड़ि अन्य वरिष्ठ सब केँ मंचहि पर बजाओल गेलनि । कविता पाठ लेल कनिष्ठ सँ आरम्भ कयल गेल । कविता वाचन भ’ रहल अछि, मंचस्थ वरिष्ठजन कोहुना कवि सम्मेलनक प्रतिष्ठा बचेबाक लेल अनेरउ ‘वाह-वाह’ कय केँ कवि केँ प्रोत्साहन कय रहल छलथि । मुदा मंचहु पर बेसी लोकक चेहरा अत्यन्त उदास, मानू घर मे कोनो मरनी-हरनी भ’ गेल होइन्ह । बीच-बीच मे किछु कवि हास्य-प्रहसनक किछु पंक्ति बाजि कोहुना हँसेबाक काज धरि कय रहल छलथि । ताहि सँ थोड़-बहुत जान बचल बुझाइत छल ।
एकटा अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य आर भ’ रहल छल । जखन कविजी कविता वाचन कय रहल छलथि तखन हुनकर घरवाली/घरवला सोझाँ सँ फोटो-वीडियो सब लय रहल छलथि । भले कवि सम्मेलन मे सुननिहार माछी होंकैत कोहुना समय काटि लेलनि, मुदा फेसबुक पर हुनकर कविता वाचनक फोटो, कविता वाचनक वीडियो आ कविता शब्दरूप मे निश्चय ‘वाहवाही’ लूटत से आत्मविश्वास बनल छन्हि ।
मैथिली दर्शक-श्रोता सब लाजे पाछाँ कवि लोकनिक सम्मान करबाक लेल ‘वाहवाही’ करिते टा छथि, भले काव्यक अर्थ लगलनि, बुझलनि वा नहि बुझलनि, काव्य जगत मे प्रसिद्धि प्राप्त अनेकों नाम केर कवि लोकनिक कविता मे घृणा, ईर्ष्या आ पूर्वाग्रहक कतिपय भावहु केर शब्द-भाव सहितक रचना मे एहिना ‘वाह-वाह’ सँ कविजीक उत्साहवर्धन होइत रहैछ ।
मैथिली भाषाक अत्यल्प कवि प्रासंगिक छथि । जयप्रकाश जनकक स्थान बहुत उपर छन्हि, हास्यरसक अद्भुत प्रयोग करैत छथि । उपरोक्त कवि सम्मेलन मे जहाँ हुनकर नाम लेल जाइछ, आ कि चारूकात सँ लोक सब दौड़ि-दौड़िकय पहुँचि जाइत छथि पंडाल मे । लयवद्ध प्रस्तुति लेल अशोक मेहता केँ सुनय लेल पुनः पंडाल मे लोक आबि गेल करैछ । कमल मोहन चुन्नूक गजलक रहस्योद्घाटन करय वास्ते कतेको रसिक एक-एक शब्द पर ध्यान दियय लगैत अछि । रमेश रंजन झा जखन दाँत कीचि-कीचिकय अपन रचना राखय लगैत छथि त बड़का-बड़का बुधिगर-पनिगर हिलि जाइत अछि । किसलय कृष्णक रचना मे बोर्डर पर ठाढ़ सीमारक्षा करयवला सिपाहीक विम्ब राखि मैथिली-मिथिलाक समर्पित स्रष्टा सभक दुःखक गाथा वर्णन करब हो आ कि मिथिलाक वास्तविक वृहत् स्वरूप पर आधारित माहात्म्यक प्रस्तुति हो – दर्शक दीर्घा केँ स्वतः अपन शब्दक संजाल मे लपेटि लेल करैछ । नामक कमी नहि अछि मैथिली जगत मे – मुदा कतेको लोक गुमाने एतबा फाटय लगैत छथि जे नीक रचनाकार रहितो हुनकर गुमान आ अहंकारे लोक केँ देखाय लगैत छैक – ओ अपन किरदानी सँ अप्रासंगिक भ’ जाइत छथि ।
मैथिली आम लोक लेल पठनीय होइ ताहि लेल प्रासंगिक रचना व रचनाकारक खोजी आ प्रचार-प्रसार जरूरी छैक । कवि सम्मेलन कामचलाऊ मात्र नहि हो – एकर प्रभाव आम लोक धरि जाइक । ओ ‘आकाश तर बैसकी’ वला कवि-सम्मेलन जरूर हो, मुदा काव्य प्रस्तुति लेल श्रोता मात्र कविते वाचन कयनिहार कवि लोकनि एक-दोसरक रचना पर झूठक वाहवाही आ समय बिताबयवला नहि हो ।
हरिः हरः!!