लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “विद्यापति केर गीतक महत्व ”
आजु नाथ एक ब्रत महासुख लागत हे आहे तोंहे शिव धरू नटवेष की डमरू बजावह हे….” मैथिली भाषाक सर्वाधिक प्रतिष्ठित कवि विद्यापति केर पूरा नाम विद्यापति ठाकुर रहैन। हुनका लोक महाकवि कोकिल के नाम सँ सेहो जनैत छलैन्ह । हिनकर जन्म बिहार के मधुबनी जिलाक बिस्फी गाम में भेल छलैन्ह। मुदा जन्मकाल के सम्बन्ध में विद्वान सभक मत भिन्न अछि। एहन मान्यता अछि जे हुनकर जन्म १३५० ई. सँ ल क १३७४ ई. के बीच में भेल छलैन्ह। हिनक पिता केर नाम श्री गणपति ठाकुर आ माता के नाम हांसिनी देबी छलैन्ह ।विद्यापति अत्यन्त बुद्धिमान एवं तर्कशील व्यक्ति छलाह। विद्यापति संस्कृत भाषा के महान साहित्यकार छलाह। एकर अतिरिक्त भूगोल, इतिहास, दर्शन, ज्योतिष, न्याय आदि विषय केर महान जानकार रहैथि। ओ मिथिला नरेश राजा शिवसिंहक प्रिय मित्रक संग – संग राजकवि आ सलाहकार सेहो रहैथि। विद्यापति अपन सभ रचना में संस्कृत, अवहट्ट आओर मैथिली भाषा के उपयोग कयने छैथि। हिनक लिखल कविता में मध्यकालीन मैथिल केर दर्शन होइत अछि। विद्यापति के संधि कवि के रूप में सेहो जानल जाइत छैन्ह। हुनक रचना “पदावली” एकर प्रत्यक्ष प्रमाण अछि। विद्यापति मूलतया भक्ति रस आ श्रृंगार रस केर कवि छलाह। हिनक मूल रचना में कीर्तिलता, मणिमंजरा नाटिका, पदावली, भूपरिक्रमा आदि रचना अत्यंत लोकप्रिय अछि। विद्यापति के मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप प्रतिष्ठित कयल गेल अछि। हिनका महाकवि केर उपाधि सँ सम्मानित कएल गेल अछि। मिथिला क्षेत्र के जनजीवन में एकटा आम मैथिल के चरित्र केर वर्णन करवा में हिनका महारथ प्राप्त छलैन्ह। मिथिला क्षेत्रक जनजीवन में विद्यापति केर रचना आइयो विभिन्न महत्वपूर्ण एवं धार्मिक अनुष्ठान में गाओल जाइत अछि। विद्यापति मिथिला वासी के लोकभाषा के जीवित रखवाक लेल प्रेरित कयलनि जकरा मिथिलाक जनमानस कहियो नहि बिसरि सकैत अछि। सन १४४० सँ १४४८ के बीच हिनक मृत्यु भेलन्हि। हिनक रचना में श्रृंगार रस के रूप में विरहिन के मोनक व्यथा आओर दुःख के प्रकट कयल गेल अछि। नायिका अपन प्रियतम सँ विछोह के कारण अत्यंत कष्ट में छैथि। हुनक आंखि सँ नोर बहि रहल छैन्ह। नायक गोकुल छोड़ि कऽ मथुरा में बसि गेल छैथि आ ओ आब कातिक मास मे वापस अओताह तावत धरि नायिका एहि विरह के बर्दाश्त नहिं क पावि रहल छैथि “के पतिआ लए जाएत रे मोरा प्रियतम पास! हिय नहिं सहए असह दुख रे भेल साओन मास।। एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहे रहलो न जाए। सुनि अनकर दुख दारुण रे जग के पतिआए।। मोर मन हरि हर लए गेल रे अपनो मन गेल। गोकुल तेजि मधुपुर बस रे कोन अपजस लेल।। विद्यापति कवि गाओल रे धरि धरु मन आस। आओत तोर मन भावन रे एहि कातिक मास।। ” अतिरिक्त” सखी की पूछसि अनुभव मोए। सएह पिरिति अनुराग बखानिअ तिल – तिल नूतन होए।। ” आ अन्त में कुसुमित कानन हेरि कमलमुखी, मूदि दू नयान।कोकिल- कलरव, मधुकर – धुनि सुनि, कर देइ झांपइ कान।।………. तोहर विरह दिन छन-छन तनु छिन – चौदसि – चांद – समान। भनहि विद्यापति शिवसिंह नर-पति लखिमादेइ-रमान।। भक्ति रस केर रचना के सम्बन्ध में चर्चा कएनाइ सूर्य भगवान के दीप देखेबाक बात भ जाएत तेँ एहि रस के चर्चा कएनाइ हम अनिवार्य नहिं बुझैत छी। मिथिलावासी के रग – रग मेमहाकवि विद्यापतिक रचना रचल आ बसल छैन्ह।