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विद्यापति अविस्मरणीय गीत केर रचनाकार भेलाह।

लेख विचार
प्रेषित: अर्चना मिश्रा अर्शी
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “ साहित्य एवं संगीतक क्षेत्रमे मिथिलाक विभूति बाबा विद्यापतिकेँ योगदान ।

मैथिली साहित्यक नाम लितहि जे स्तम्भ ठाढ़ होइछ ओ निस्संदेह बाबा विद्यापति थिकाह।हिनक सीर पटवृक्ष सन सभसं बेसी गहीर तक गेल अछि।कवि कोकिल विद्यापतिक पूरा नाम ” विद्यापति ठाकुर छलनि।हिनक जन्म तिथिक पूर्वा नुमान कयल जाएत अछि १३५०ई. सँ १३६०ई. लगभग मानल जाइत छैक। १४४८ सँ १४६१ ई. धरि दिवंगत काल मानल जाइत अछि।ई दीर्घजीवी भेला ताहिमे कोनो संदेह नहि।
बाबा विद्यापति अपन जीवने कालमे प्रसिद्धि हासिल कयलनि।हिनका अनेक पदवी तथा उपनाम भेटल छलनि। कविकोकिल तें हिनक नाम संग प्रचलनमे अछि।एहिसँ बाबा विद्यापति काव्यात्मक विशेषताक तथा लोकप्रियता ज्ञात होइत अछि। संस्कृत, अवहट्ट तथा –मैथिली एहि तीन भाषामे रचना कयलनि।ई सभसं अधिक लिखलनि संस्कृतिमे जाहिमे लगभग एक दर्जन ग्रंथ अछि, अवहट्ट मे दू गोट मैथिली मे हिनक लिखल पदसभ जे विद्यापति पदावलीक नामसँ प्रसिद्ध अछि।
विद्यापति काव्य साहित्यक मुख्य विशेषता थिक गायन ,ई जन साहित्यक निर्माण कयलनि।हिनक सम्पूर्ण पदावली चारि भाग मे बांटल गेल अछि अध्यनक सुविधा के ध्यान मे रखैत।
शृंगार गीत, भक्ति गीत, व्यवहार गीत,कूटगीत।बाबा विद्यापति जाहिराजाक दरवार मे रहला सभ राजा लेल गीत लिखलनि।हिनक समवयस्क शिवसिंह छलथिन हुनका लेल सभसं बेसी गीत लिखलनि।
हिनक शृंगारिक पदावलीकेँ दू भागमे बाँटल जा सकैत ।पहिल — राधाक संग श्रीकृष्णक प्रणयलीलाक वर्णन अछि। द्वितीयत: जाहिमे नरनारीक सहज प्रेम विलासक विविध भाव आ अवस्थाक सवभाविक चित्रण अछि।
हिनक भक्ति गीतकेँ मे शिव विषयक नचारी आ महेशवानी, शक्ति गंगा विष्णु स्तुति आदि। भक्ति पदमे हिनक गोसाउनिक गीत मिथिलाक कोनो उत्सवमे स्वतः बोल सफुटित भ’ जाइत अछि।
देखल जाए किछु पाँति —
जय -जय भैरवि असुरभयाउन पसुपति – भाविनि माया।
सहज सुमति वर दिअ हे गोसाउनि अनुगत गति तुअ पाया।
वासर – रइनि सवासने सोभित, चरन चन्द – मनि चूड़ा।
कतओक दैत मारि मुहे मेरल,कतन उगिलि करु कुड़ा।

ई सभ समयक गीत लिखलनि फागु,चैत, बारहमासा, चौमासा पावन प्रसंग आदि।अवसर उपयुक्त यथा – योग,उचिती,कोबर, कुमार आदि।

प्रसिद्ध अछि हिनक गाम बिसपी ( मधुबनी जिला)क निवासी छलाह।ई गाम हिनका पुरस्कार स्वरुप प्राप्त भेल छलनि महराज शिवसिंहक दिससँ । स्वयं महादेव उगना नाम सँ आबि चाकर बनि सेवा कयलनि आ गंगा अपन कोरामे लेबाक हेतु धार छोड़ि हिनका लग आयल छलीह।जा तक ई मिथिला आ सभ्यता रहत ता धरि कवि कोकिल विद्यापति रहता,जाधरि सुरुज चान रहत ताधरि बाबा विद्यापतिक नाम रहत।

 

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