१२ नवम्बर २०२४, विराटनगर । मैथिली जिन्दाबाद !!
पंडित त्रिलोकनाथ स्मृति समारोह सँ विराटनगर आबिकय…..
अपन कौलिक मर्यादा केँ अपन कर्म, आचरण व निष्ठा सँ आगू बढ़ेनिहार व्यक्तित्व आचार्य धर्मेन्द्र नाथ मिश्र द्वारा रचित पोथी “धर्मो रक्षति रक्षितः” केर लोकार्पण ‘पंडित त्रिलोकनाथ स्मृति समारोह’ मे कयल गेल । एहि समारोहक मुख्य अतिथि झारखण्ड उच्च न्यायालय राँचीक न्यायाधीश संजय प्रसाद संग सहरसा प्रक्षेत्रक डीआईजीपी (उप-महा-निरीक्षक, पूलिस) मनोज कुमार अति-विशिष्ट अतिथि एवं कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालयक दुइ गोट पूर्व उप-कुलपति पंडित रामचन्द्र झा व पंडित शशिनाथ झा संगहि पंडित सुरेश्वर झा, पंडित सतीरमण झा, पंडित विद्याधर मिश्र, साहित्यकारद्वय रमेश रंजन झा एवं तारानन्द झा तरुण संग, पंडित तरुण झा, कवि करुणा झा, कवि दीपिका चन्द्रा, कवि विक्रमादित्य एवं अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तित्व सभक उपस्थिति अत्यन्त सराहनीय आ उच्चकोटिक छल ।
एहि अवसर पर विराटनगर, जोगबनी, मधुबनी पंचायत व कतेको स्थानक विशिष्ट व्यक्तित्व लोकनिक उपस्थिति सभाक गरिमा केँ आर बढ़ा रहल छल । सीतानन्द झा सुनील, वरुण मिश्र, माला मिश्र, सुजीत चौधरी, मृत्युञ्जय मिश्र, सरोज झा, विमलजी मिश्र सहित कतेक आरो जानल-मानल चेहरा सभाक सुन्दरता बढ़ा रहल छल । ग्रामीण एवं स्थानीय समाज, ताहि मे सेहो कतेको रास विशिष्ट विद्याधर लोकनिक परिचय पाबि प्रमुख अतिथि लोकनि सेहो काफी प्रसन्नचित्त देखाइत रहथि, हुनका सभक सम्बोधन मे पर्यन्त एहि बातक जिकिर आयल जे अपने लोकनिक संस्कार आ सौन्दर्य सभक लेल अनुकरणीय अछि ।
पंडित त्रिलोकनाथ मिश्र धर्मशास्त्रक महान विद्वान भेलाह । ओ दरभंगा महाराजक राजपंडित सेहो रहथि । लोहना स्थित संस्कृत महाविद्यालयक प्राचार्य संग-संग धर्म-निर्णय केर अनेकों सिन्धु (समुद्र) सँ संकलित तत्त्व आधारित ‘पितृकर्म निर्णय’ केर रचना, संगहि ‘जिमूतवाहन चरित’ नाटक संग साहित्य, संगीत आ हास्य-प्रहसन विधा मे अनेकों कृति समर्पित कयलनि ।
कोसी (मिथिला) क्षेत्र मे एकटा लोक-कहिनी बड प्रसिद्ध अछि – तिलयुगा पूरब तीन टा ‘नाथ’ – त्रिलोकनाथ जटानाथ आ महेन्द्रनाथ । एहि कहिनीक पाछू हिनका सभक अद्भुत विद्यावान् होयब छल । त्रिलोकनाथ धर्मशास्त्रक विद्वान, गोसपुर (सुपौल) सँ भेलथि । जटानाथ ज्योतिषशास्त्रक विद्वान, बेला रामनगर (मधेपुरा) सँ भेलथि । आर महेन्द्रनाथ सामवेद केर विद्वान, जदिया (सुपौल) सँ भेलथि ।
विदित हो जे आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र व हुनक अग्रज भ्राता पंडित अमरनाथ मिश्र उर्फ महराजजी नेपाल-भारत धरि अपन कृति – अपन विद्या-वैभव केँ ओहिना प्रसार कय रहल छथि जेना हुनका लोकनिक पिता-पितामह-प्रपितामह लोकनि । एकरे कहल जाइछ ‘कौलिक मर्यादा’ केँ आगू बढ़ेनाय ।
पंडित सुरेश्वर झा, पंडित सतीरमण झा, पंडित शशिनाथ झा एवं समस्त विद्वान लोकनि आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र केर रचित पोथी “धर्मो रक्षति रक्षितः” पर अत्यन्त विलक्षण रूप सँ वर्णन कयलनि । आचार्य केँ विद्यापति समान क्रान्तिकारी बनि संस्कृत भाषाक शास्त्रीय तत्त्व-सूत्रादिक संगहि मैथिली मे विवेचना केँ महत्वपूर्ण मानलनि । विद्यापति सेहो १४म् सदी मे यैह सामान्यजन हेतु बोधगम्य साहित्यक रचना करैत ‘देसिल वयना सभ जन मिठ्ठा’ केर क्रान्तिकारी नारा बुलन्द कएने रहथि ।
आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र रचित ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ पुस्तक मे ब्रह्माण्डीय नक्षत्रक संख्या अनुसार कुल २७ गोट प्रभाग आ प्रत्येक नक्षत्रक ४-४ गोट चन्द्रमा होयबाक अलौकिकता केँ सद्यः अपन पुस्तक मे १०८ केर संख्या मे सूत्र-प्रतिपादन कयलनि अछि । परिभाषा संग व्याख्या एतेक सहज अछि जे अक्षरबोध भेल कियो लोक सहजहि बुझि सकैत छथि । निश्चय ई पोथी दूरगामी आ नव पीढ़ी लेल विशेष उपयोगी होयत ।
काल्हिक समारोह बहुउपयोगी छल, परञ्च लोकाचारक औपचारिकता आ लोकलुभावन बात-व्यवहारक बाध्यता मे महत्वपूर्ण चर्चा पहिने नहि हेबाक कारण बहुत लोक लिल्लोह भ’ घर घुरि गेल हेताह से हम अनुमान लगा रहल छी, कारण हम प्यासले वापस होबय लेल बाध्य भेलहुँ करीब ४ बजे, जखन समारोह बुझू जे चरमोत्कर्ष पर छल । ताहि समय लोकक उपस्थिति सेहो प्रभावित देखल, कारण भोजभात सेहो समानान्तर रूप सँ चालू भ’ गेल छलैक ।
मुदा, प्रवीण मन कहि रहल अछि जे धर्मेन्द्रनाथ व अग्रज अमरनाथ संग अभिभावक लोकनिक योगदान मे फेर वैह आतिथ्यताक भरमार देखि सब कियो गदगद रहथि । बेस समारोह आ सहभोज संग सत्संगक श्रेष्ठ प्रदर्शन भेल, आब कि चाही ! नारा देने रहथि “अतिथि देवो भव” – से स्वाभाविके सत्यापित भेल । प्रणाम गोसपुर !! प्रणाम समस्त सज्जनवृन्द !!
सभक प्रस्तुति बेजोड़ लागल – डीआईजी साहेब आ प्रमुख अतिथि माननीय न्यायमूर्ति संजय प्रसाद जीक सम्बोधन सेहो उत्कृष्ट आ अत्यन्त प्रेरणास्पद छल । हर तरहें प्रवीण प्रसन्न भेल । बम बम महादेव !!
हरिः हरः!!