ई बात एना बुझियौक
प्रतिस्पर्धा स्वस्थ आ सार्थक होयब परम जरूरी होइत छैक । याद करू त ! बच्चा उम्र सँ विद्यालय-महाविद्यालय धरिक पढ़ाइ व खेल मे कि सिखायल गेल अहाँ केँ ? ध्यान देबय त देखबय जे मात्र प्रतिस्पर्धा करब सिखायल जाइछ हमरा – अहाँ केँ । जी, प्रतिस्पर्धाक अर्थ भेल जे केकर माथ-मन-बुद्धि-ज्ञान-कर्म-प्राण कतेक विकसित भ’ सकल तेकर तुलना करब । यदि बचपन सँ प्रतिस्पर्धाक सार्थक स्वरूप नहि देखायल जाइत त एखन धरि प्रतिस्पर्धा घोर दुश्मनी आ पूर्ण नकारात्मक रूप मे हमरा-अहाँ मे घर कय जइतय । नकारात्मकताक तात्पर्य अछि जे जँ हम अहाँ सँ कमजोर सिद्ध भेलहुँ त अहाँ सँ शत्रुता करय लागब ।
आब, एहि घोर कलिकाल मे भौतिक सम्पदा संग्रह करबाक प्रतिस्पर्धा मे सेहो हम-अहाँ लागि गेल छी । शिक्षा आ संस्कार सेहो भौतिक उपलब्धि मात्र सँ ताल्लुक राखि रहल अछि । त्यागक भावना, वैराग्यता आ आध्यात्मिक उन्नति विरले केकरो-केकरो लक्ष्य रहि जाइत अछि । जखन कि डेग-डेग पर ठोकर (बम्प्स) ओहिना लगैछ जेना हाईवे (उच्चपथ) पर स्पीड ब्रेकर सँ उद्दण्डताक नियंत्रण कयल जाइछ, तथापि हम-अहाँ जीवनक मार्ग मे बेतहाशा भागि रहल छी वा भगबाक कामना अवश्य पोसने रहैत छी । एतय सावधानी बरतबाक जरूरत छैक । कृपया नियंत्रण व सन्तुलन केर दुइ गोट टूल्स सदैव उपयोग करू । एकटा साइकिलो चलबय मे जँ ब्रेक सही नहि रहत त अनियंत्रित भ’ कय खसैत अछि चालक व सवारी, बेतरतीब चोट लागि गेल करैत छैक ।
जीवन एक अवसर थिक । याद राखब जे जीवनक चक्र एहि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अनेकों लोक केर यात्रा धरि बरकरार रहैछ । एखन पृथ्वी पर छी, फेर कोनो अन्य पृथ्वी पर होयब, या पुनर्जन्मक सिद्धान्त पर पुनः एहि पृथ्वीलोक मे अवतरित होयबाक संयोग बनि सकैत अछि । ई सबटा प्रकृति व प्रकृति नियंत्रक ‘ईश्वर’ केर हाथ मे अछि । वर्तमान अवसर केँ सुन्दर ढंग सँ उपयोग करू । प्रतिस्पर्धा मे दोसरक पैर पर अपन पैर राखि अथवा दोसरक औंठा थकूचि अपना केँ ओकरा सँ ऊंच देखेबाक कुचेष्टा बिल्कुल नहि करू । अन्यथा दण्डक भागी बनबे टा करब ।
हरिः हरः!!