लेख विचार
प्रेषित: रिंकू झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- पुजा के उमंग मे बदलाव पहिने आ आब मे अंतर
भारत एक टा ऐहन देश अछि,जतय सब दिन किछु न किछु तीज -त्यौहार उत्सव के रुप मे मनाओल जाईत अछि।एक टा कहबि के अनुसार भारतीय विषेश क मिथिलावासी उत्सव मनाबय के कोनो न कोनो अवसर ताकिए लय छैथ।कहबि छय बारह मास मे तेरह पावैन मनाबै छी हम सब।समय एलय समय गेलय जीवन में बहुत किछु बदलाव भेल।समय चक्र निरंतर गति स बढि रहल अछि जाहि मे ना -ना तरहक आविष्कार आर भौतिक परिवर्तन भेल,एहि परिवर्तन मे मनुष्य आर मशीन के संग पावैन -तिहार मनावय के तौर -तरीका सब बदैल गेल।
पहिले आर आब के समय मे दुर्गा पूजा मनावय के तरीका में जमीन -आसमान के अंतर अछि। पहिले के पूजा मतलब समाज मे एकता, भाईचारा,एक दोशर स आदर आर स्नेह , ईश्वर के प्रति विषेश श्रद्धा देखय के भेटय छ,आब के पूजा मतलब बाहरी देखावा, हो-हल्ला,शान -शौकत के बर्चस्व आदि। आई के समय मे जेब मे हजारो रुपया रहत तखनो जीवन मे ओ उत्साह आर उमंग नहि भेटत। पैसा रहितो समय के अभाव आर व्यस्त भरल जिनगी मे ओ आंनद नहि छय,जे पहिले के समय मे छलय,कनिए पैसा मे पूरा मेला घुमि,रंग -बिरंगक चीज़ सब देखी,कचरी,मुरही, जलेबी,आर झिल्ली,खाई आनंदित भय जाई छलहुं।अखन जेना लोक जन्मदिन के इंतजार करैत छैथ तहिना हम सब दुर्गा पूजा के इंतजार करय छलहुं। दश दिन कोना वितय छल ओ बुझबे नहीं करय छलहुं। भैर दिन पूजा -पाठ के तैयारी,सांझ, आरती के तैयारी फेर मुर्ती आर मेला देखैत कटि जाई छल । सब गाम मे नहि होई छलय पूजा दूर -दूर जा दोसर गाम सब मे घुमय छलहुं। घरे -घर पाहुन -परख सब आबैत रहय छलैथ।परदेशी सब छुट्टी लय गाम आबय छलैथ।अलगे आंनद रहय छलय।धैर आब पूजा गामे -गामे होबय लागल।एक स एक भव्य समारोह आर पंडाल सब बनैत अछि।एक स एक कलाकार सब आबय छैथ।बाहर स कारिगर सब पंडाल आर मूर्ति बनाबय लेल मंगाओल जाईत अछि।चंदा के नाम पर पैसा बला के ठगब ,फूहर आर अश्लील गीत स भरल स्टेज, लाउडस्पीकर,दारु पी मस्त भेल लोक सब, पूजा के नाम पर एक स एक पंडित बजाओल जाईत अछि बाहर स ।
आरती तक मे नहि ठीक स शामिल हेता एतेक व्यस्त रहय छैथ लोक अखन। ओना सब एके रंग नही होई छै। एक स एक दुकान सब लागैत अछि गामो -घर मे आब लोक मुरही, कचरी नहि खेता बल्कि पिज्जा, बर्गर,मोमोज आदि खाएब पशंद करय छैथ । बेसी तर लोक आब गाम -घर जाईतो नहीं छैथ । एक दोसर के चिन्हबो नहि करय छथिन। किछ लोक शराब पिबी कय लड़ाई ठान्हि लय छैथ आपस मे।
गाम मे नहि रहय छलहुं धैर गामक वातावरण स पुर्ण रुपे परिचित छलहुं । गामक आंनदे अलग छलय। दुर्गा पूजा मोन परैत देरी दिमाग मे ओ पिछला दृश्य सब हिलोर लेबय लागैयछल । कतेक भाईचारा छलय आपस मे । भैर गामक लोक बैढ -चैढ क हिस्सा लय छलैथ पूजा -पाठ के तैयारी मे । सब मिली क शांति रुपे चंदा इकट्ठा करय छलैथ। बाँस आर रंग -बिरंगक कपड़ा स पंडाल बनय छल । महिना पहिले स सब तैयारी मे लाईग जाय छलैथ। नाटक के तैयारी,अल्हा- रुदल आर एक स एक नाटक सब गामे के नवयुवक सब खेलय छलैथ। घर के साफ -सफाई,नवका कपड़ा सिलेनाई, घरौआ पद्धति से गामे के पंडित सब पूजा करय छलैथ,आई -माई सब सांझ -पराती गायब छलैथ। गामे के दुकानदार सब रहय छलय ,बांकी उधार सब चलय छलय अंगने- अंगने कुमाईर भोजन होई छलय, भगवती शीरा पर फूल के अटार लाईग जाई छलय। भोरहरबै स फूल तोरय लाईग जाई छैथ सब । मंदिर मे जा पूजा करब, दुर्गा पाठ करब बहुत नीक लागय छलय।
आबो होई छय, बहुत बृहत रुप मे होई छय, अनगिनत पैसा खर्च होई छय, व्रत -उपास सब होई छय धैर ओ आंनद आर उत्साह नहीं छय।ओकर कारण भेल लोक अपने -आप मे सिमैट क रहि गेल अछि लोक। किनको परवाह कियो नहीं करय छैथ। एक, दोसर के निचा देखाब मे लागल रहय छैथ। यैह कतेको एहन सन केर अंतर नजरि आबैत अछि पहिने आ आब के दुर्गापूजा मे।