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ब्राह्मण भोजन सँ पितर तृप्त भए अपन वंशज वा आत्मज के खूब आशीष दए छथि

 

लेख विचार
प्रेषित: नीलम झा निवेथा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय- पितरपक्षमे पितरक निमित्त ब्राह्मण भोजनक करेबाक महत्व।

अपन मिथिलामे भादव मासक पूर्णिमा तिथि सँ शुरू होइत अछि तर्पण। एहिमे पुर्णिमा तिथि क’ उज्जर फूल, फूलकी, खीरा, सुपारी आ द्रव्य लए सभ टुगर (जिनकर पिताके देहांत भगेल रहैत छैन) नदी, पोखैर वा गंगामे जाए अगस्त्य तर्पण करैत छथि। और परिब तिथि सँ अमावास्या तक ऋषि मुनि,अपन पितर जाहिमे पैतृक आ मातृक पक्षके आँजुरमे जल लए तील कुश सँ अर्पित करैत छथि।

एहि पंद्रह दिनक आशीन अन्हरिया के पितरपक्ष कहल जाइत अछि। एहिमे लोक अपन पितरके देहान्तक तिथि

  • अनुसार अन्हरिया आ इजोरिया दुनूपक्षक पंद्रह दिन मे करैत छथि।पिताके निमित्त पार्वण कए चाउरक पिंड बना केराक पातपर गोला बना तील कुश सँ मंत्रोच्चार कए अर्पण करैत छथि। पार्वणक उपरांत अपन पितरकें नाम पर ब्राह्मण भोजन करबैत छथि। मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण, वराह पुराणक अनुसार ओहि दिन पितर मंत्रोच्चारण सँ वशीभूत भए ओतए सुक्ष्म रूपमे आबि ओ सभ भोजन कए तृप्त भए अपन वंशज वा आत्मज के खूब आशीष दए चैल जाइत छथि। तैं पितरपक्षमे पितरक निमित्त ब्राह्मण भोजन करेबाक बड्ड महत्व थीक।मायक निमित्त कतेक ठाम स्त्री भोजन कराएल जाइत अछि मुदा हमरा ओहिठाम पिताके निमित्त एक दिन पार्वण मुदा मायक निमित्त दुदिन। एक दिन तिथि पर आ एक दिन मातृ नवमी कए।हमर पितिया ससुर पंद्रहो दिन एकटा ब्राह्मण खुअबैत छथि। हुनकर कहब छैन जे कुनू पितर ज्यों एहि पंद्रहो तिथि मे देह त्यागने होएताह त’ ओ भूखल नहि रहताह।

प्रेम,श्रद्धा सँ कैल जाइत अछि ई अपन पूर्वजक नाम पर समर्पण। अपन पूर्वजक छायाचित्र अपन मोनमे बसा क’ तील कुश सँ अपन संस्कृति आ संस्कारकें बचाकए लोक पार्वण कए ब्राह्मण भोजन कराबैत छथि। ई केला सँ लोक पितृदोष सँ सेहो बचैत अछि।

 

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