लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “पितर निमित्त ब्राह्मण भोजनक महत्व
- “ब्राह्मण भोजन निमंत्रितान हि पितर उपतिष्ठन्ति तान द्विजान। वायुवच्चानुगच्छन्ति तथासिनानुपासते” अर्थात मनुस्मृति केर अनुसार श्राद्ध में निमंत्रित ब्राम्हण मे पितर गुप्त रूप सँ प्राण वायु जकाँ हुनका संग भोजन करैत छैथि कारण मृत्युक पश्चात् पितर शुक्ष्म शरीर धारी होइत छैथि आ जिनका हमरा लोकनि देखि नहिं सकैत छी। ओना पद्मपुराण केर अनुसार धनाभाव अथवा समयाभाव में श्राद्ध के तिथि पर अपन पितर के स्मरण कऽ कऽ गाय के घास खुआओला सँ ब्राह्मण भोजनक फल भेटैत छैक, एतबे नहिं जँ इहो संभव नहि भऽ सकय तऽ विष्णु पुराण केर अनुसार श्राद्ध करय बला लोक एकांत में जा कऽ अपन दुनू हाथ जोड़ि अपन पितर सँ कहैथि जे “न मेस्ति वित्तं न धनम च नान्यच्छश्राद्धोपयोग्यम स्वपित्रन्नतोस्मि। तृप्यंन्तु भक्त्या पितरो मयोतौ कृतौ भुजौ वर्तमनि मारुतस्य” अर्थात हे पितृगण। हमरा लग श्राद्ध के लेल पाई कौड़ी नहिं अछि, हमरा हृदय में अहाँक लेल श्रद्धा भक्ति अछि आ हम एही द्वारा अहाँ के तृप्ति करय चाहैत छी। कृपया तृप्त होउ। एहि प्रकार सँ पितर के तीन प्रकार सँ श्राद्ध कयल जा सकैत अछि। मुदा प्रत्यक्ष रूप सँ ब्राह्मण भोजन सभ सँ नीक श्राद्ध मानल जाइत छैक। ब्राम्हण भोजन में ब्राम्हण के चुनाव करवाक काल कनेक साकांच रहवाक आवश्यकता होइत छैक जेना ब्राम्हण के कोनो अंग भंग नहिं भेल होइन्ह, सात्विक विचार आ वेद उपनिषद के विषय में जानकारी अथवा रूचि होइन्ह। मिथ्या वादन नहिं करैत होइथ इत्यादि। जँ एकर चुनाव असमर्थ होइ तऽ अहाँ के अनुसार जे पवित्र हृदय बला लोक होइथ हुनका ब्राह्मण भोजनक लेल निमंत्रित करवाक चाही अन्यथा गड़बड़ ब्राम्हण के संग पितर अयबा सँ भयभीत रहैत छैथि…