लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- पितर पक्ष मे तर्पण केर महत्व
सृष्टि के रचैता ब्रम्हा जी वर्ष भरिक समय के अनेको भाग मे बाँटि देलखिन्ह जाहि मे सुर, असुर आ पितर के लेल अलग अलग कालखंड निर्धारित कयल गेल। जखन सूर्य भगवान उत्तरायण होइत छैथि तखन ओ देवताक लेल आओर जखन ओ दक्षिणायन होइत छैथि तखन ओहि समय के असुर, दैत्य, पितृ आ ऋषि मुनि के लेल बाँटल गेल अछि। पितर के लेल देल गेल समय जकरा महालय कहल जाइत छैक आ इ आश्विन कृष्ण प्रतिपदा सँ अमावस्या धरि पंद्रह दिन के लेल होइत छैक। एहि अवधि मे पितर दिव्य लोक सँ पृथ्वी पर अबैत छथि अपन वंशज के हाल समाचार लेवाक लेल आ एहि अवधिमे लोक अपन अपन पितर के प्रसन्न रखवाक लेल प्रयास करैत छैथि जाहि सँ पितर प्रसन्न रहैथि आ परमात्मा केर आशीर्वाद प्राप्त होअय। सनातन धर्म में माता पिता के सेवा सभ सँ पैघ पूजा मानल जाइत छैक तेँ हिन्दू धर्म में पितर के उद्धार के लेल पुत्र अथवा संतान के अनिवार्यता मानल गेलैक अछि। सनातन धर्म मे तीन प्रकार के ऋण होइत छैक – पितृ ऋण, देव ऋण आ ऋषिऋण जाहि मे पितृ ऋण सर्वोपरि होइत छैक। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा सँ अमावस्या धरि ब्रम्हांड केर उर्जा के संग पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहैत अछि। एहि पक्ष मे सभ दिन तर्पण कयल जाइत अछि जाहि सँ पितृ प्राण स्वयं आप्यापित होइत छैक। पुत्र परिवार अथवा सम्बन्धी लोकनि जे चाउर आ जौ के मिला कऽ पिण्ड दान करैत छैथि ओहि सँ पितृ के ऋण चुकि जाइत छैक। एहि अवधि मे नित्य ब्रम्ह मुहुर्त में उठि अपन पूर्वज के विधि विधान पूर्वक जल सँ तर्पण करवाक चाही। कोनो गरीब ब्राह्मण के दान देवाक चाही। जे व्यक्ति पितृपक्ष में अपन पितर के चाउर आ जौ के मिला कऽ सभ दिन तीन आंजुर पानि पितर के अर्पित करैत छैथि, हुनका सभ पाप सं मुक्ति भेटि जाइत छैन्ह। एहि प्रकारे पितृपक्ष में तर्पण आ दान दक्षिणा के बहुत बेसी महत्व होइत छैक। पितर प्रसन्न तऽ लोकक जिनगी अत्यंत सुखदायी होइत छैक ।