जितिया पावनि मे ओठगन केर विशेष महत्त्व अछि

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लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा 
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- जीतिया पावनिक महत्व –

अपना सभ के ओहिठाम बारहो मास छतीसो दिन कोनो ने कोनो पाबनि होइते रहैत छैक। बेसी पावनि धिया पूता के कल्याण वास्ते आ सौभाग्य प्राप्ति लेल कयल जाइत छैक। धिया पूता के कुशलता के बारे मे अपना सभक ओहिठाम कोनो घटनाक बाद जखन कियो बचि जाइत छैक तऽ गामक लोक कहैत छैक जे एकर माय खर जीतिया के पावनि कयने छलखिन्ह तें ई बचि गेला। जीतिया पावनि मिथिलांचल के एकटा अत्यन्त विशिष्ट पावनि के रूप में मनाओल जाइत अछि जाहि मे एकर उपवास आ पवित्रता बहुत कठिन होइत छैक। आरम्भ माछ, मड़ुआ आ नोनी साग सँ होइत छैक आ तकर बाद कठिन उपवास आरंभ होइत छैक ओ तऽ संयोग छैक जे इ ब्रत स्त्रीगण धरि सीमित छैक अन्यथा हमरा सभ सन पुरूष केर लेल संभव नहि छैक। अपना सभक ओहिठाम स्त्रीगण के सहनशीलता आदिकालहि सँ बेसी होइत छैन्ह जे हिनक नीक होयवाक लक्षण में लिखनिहार लोकनि लिखने छैथि मुदा दोसर दिस हुनक अधिकार के लेल स्वर नहिं उठैत छलैक आ उल्टे हुनका विरोध में बनाओल गेल छलैक जे “जीतिया पावनि बड्ड भारी। धिया पूता के ठोकि सुताओलनि आ अपने खेलन्हि भरि थारी” एकर अर्थ के स्पष्टीकरण कहियो नहिं भेल अछि कारण हमरा लोकनि एहि बात के आसानी सँ स्वीकार नहिं कऽ सकैत छी जे कोनो माय अपन बच्चा के भूखले सूता कऽ अपने भरि थारी खयतीह। हम कम सँ कम नहि देखने छी अपन माँ के। हमरा ओहिठाम जीतिया पावनि होइत रहैक आ ओठगन बहुत सुंदर होइत छलैक।जखन हम सभ छोट छोट रही त चारि पाँच बजे भोर में माय उठबैत छलीह आ डिबिया अथवा लालटेन लेसि कऽ ओकर मटिया तेल केर सुगंध केर संग वातावरण पूरा शांत रहैत छलैक। आन दिन जँ ओतेक भोर मे कियो उठवितै
तऽ किन्नहुँ नें उठवाक प्रयास करितहुँ मुदा ओठगन के नाम पर फुरफुरा कऽ उठैत छलहुँ। केरा के पात पर चूड़ा, दही, चीनी आ अम्मट एतेक स्वादिष्ट लगैत छलैक ओकर वर्णन नहिं कऽ सकैत छी। आन दिनक चूड़ा दही आ अम्मट सँ अलग स्वाद ओहि दिन रहैत छलैक। एकरा पावनिक पवित्रता बुझू अथवा मायक हाथक ममता ओठगन के समय खयवाक मजा अलगे होइत छलैक। माय हमरा सभकें खुआबैत छलीह मुदा कहियो हुनका ओहि दिन खाइत नहिं देखलियैन। ओठगन सँ एक दिन पहिने माछ घर में आवश्यक रूप सँ बनैत छल आ ओहि दिन हमरा लोकनि भरि दिन अपन पोखरि मे बंशी सँ माछ पकड़वाक असफल प्रयास करैत छलहुँ अन्त में बेरु पहर मलाह के बजा कऽ जाल फेकि कऽ माछ पकड़ल जाइत छल। जिमूतबाहन के कथा स्त्रीगण सभ सुनैत छलीह मुदा हमरा लोकनि ओहि पर विशेष ध्यान नहिं दैत छलियै हमर सभक ध्यान एकमात्र ओठगन के चूड़ा दही पर आ खा कऽ देवाल मे पीठ ओठगय पड़ैत छलैक तें प्रायः एकर नाम ओठगन पड़ल छैक।जय मिथिला आ जय मिथिलाक पावनि तिहार ।