लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “चौठीचान केर महत्त्व
मिथिला में कहल जाइत छैक जे राखी के आठे कृष्णाष्टमी , कृष्णाष्टमी के बारहवे चौरचन , चौरचन के बारहवे अनन्त चतुर्दशी , अनन्त चतुर्दशी के आठे जितिया , जितिया आठे कलशस्थापन , कलस्थापन दसे जतरा, जतरा के पाँचे कोजगरा , कोजगरा पंद्रहे दीपावली , दीपावली छठे छैठ ….. मिथिलाक सभ पाबनि अत्यन्त विशिष्ट मुदा जहाँ धरि पेट भरवाक बात छैक तऽ एहि मे चौरचन पावनि सभ सँ अधिक विशिष्ट कारण “हे पेट हे पेट भरबऽ कहिया? भादव मास, चौरचन्ना जहिया। एहि पावनि मे लोक अपने तऽ भोजन के लेल तैयार रहबे करैत छैथि संगहि भगवान के सेहो भोजन हेतु आह्वान करैत छैथि जे” उगहु चान कि लपकब पुआ “” चांद यऔ उगु सभहक घर सँ, सभहक घर सँ हाथ उठाओत, खीर पुरूकिया सभ खुआओत… जल्दी सँ उगि जाउ नभ सँ…… “भादव मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी अर्थात चौठ तिथि में साँझ पङला पर चौठ चन्द्र केर पूजा होइत छैन्ह। स्कंद पुराण केर अनुसार एक बेर भगवान कृष्ण के मिथ्या कलंक लागल छलनि ओ एहि वाक्य सँ मुक्त भेलाह “सिंहः प्रसेन मवधीत, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक! मा रोदीः, तव एष स्यमन्तकः।स्कंद पुराण मे वर्णित तथ्य केर अनुसार एक दिन नारद जी पृथ्वी लोक के भ्रमण करैत जगतपति श्री कृष्ण सँ भेंट भ गेलैन्ह। चिन्ता मग्न भगवान श्रीकृष्ण के देखि नारद जी चिंताक कारण पूछलथिन्ह त कृष्ण उत्तर देलखिन्ह जे हम बेर बेर मिथ्या अपवाद सँ पीड़ित भऽ रहल छी ताहि पर नारद जी कहलथिन्ह जे प्रभु अपने निश्चित रूप स भादव मास के शुक्ल चतुर्थी दिन चन्द्रमा के देखने हेवैन्ह तेँ ई बेर बेर मिथ्या कलंक लागि रहल अछि। भगवान कृष्ण नारद सँ पूछलथिन्ह जे चन्द्र दर्शन सँ कियए दोष लगैत छैक? तखन नारद जी स्पष्ट कयलनि जे चन्द्रमा प्राचीन काल में भगवान गणेश जी द्वारा अभिशप्त भेलाह। कृष्ण पूछलथिन्ह जे गणेश जी किऐक श्राप देलखिन्ह तँ नारद जी कहलथिन्ह जे एक बेर त्रिदेव ब्रम्हा विष्णु महेश पत्नीक रुप मे अष्ट सिद्धि आओर नवनिधि के स्वामी श्री गणेश कें पुष्प अर्पण कऽ प्रार्थना कयलनि। गणेश प्रसन्न भऽ तीनू के सृजन, पालन आओर संहार कार्य के लेल आशीर्वाद देलथिन्ह। ओही समय मे चन्द्रमा अपन सुन्दरता के मद सँ चूर भऽ भगवान गणेश जी महाराज केर उपहास केलखिन। गणेश जी क्रोधित भय श्राप देलखिन्ह जे अहां जाहि सुन्दरता पर एतेक इतरा रहल छी। आई सँ जे कियो अहाँ के देखत ओ कलंकित भ जाएत। चन्द्रमा एहि कठोर श्राप सँ मलीन भऽ गेलाह। देवता लोकनि मे हाहाकार मचि गेल। सभ ब्रम्हा लग गेलाह। निर्णय भेल जे सभ मिलि गजानन केर पूजा करू। वेएह कोनो रास्ता देखताह। चन्द्रमा गणेश चतुर्थी दिन मंगलमूर्ति भगवान गणेश जी केर पूजा केलाह। गणेश बाल रूप दर्शन देलथिन्ह आ चन्द्रमा के कहलखिन्ह जे अहाँ बरदान माँगू आ चन्द्रमा शापमुक्त होयबाक बरदान मंगलखिन आ गणेश जी एवमस्तु कहि स्पष्ट केलखिन जे हमर श्राप व्यर्थ नहि जायत किन्तु शुक्ल पक्ष मे पहिल उदितकाल मे अहांक दर्शन शुभकारी होयत आ भादो शुक्ल पक्ष मे अहांक दर्शन जे करताह हुनका लान्छना लगतैन्ह परन्तु जँ ओ सिंह प्रसेन वला मन्त्र पढि कए जे दर्शन करताह आ ओहि दिन हमर पूजा करताह हुनका दोष नहि लगतैन्ह। श्री कृष्ण नारद के कथा सँ प्रेरित भऽ गणेश चतुर्थी व्रत के अनुष्ठान कयलाह तखन ओ कलंक मुक्त भेलाह आ ताहि दिन सँ समस्त मिथिला में चौरचन पावनि केर परम्परा आबि रहल अछि ।