सन्दर्भ जितिया-खरजितियाक – निर्जला व्रत (उपवास) केर निजी संस्मरण

संस्मरण-कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

निर्जला व्रत (उपासना) केर अपन अनुभव
 
आइ विक्रम संवत साल २०८१ (ईश्वी संवत् २०२४) केर जितिया व्रतक विशिष्ट रूप ‘खरजितिया’ केर दोसर दिन थिक । एहि वर्षक व्रत अवधि लगभग ३६ घन्टाक अछि । हमर माय सहित कतेको माय हम सन्तान व परिजनक खातिर एतेक कठिन व्रत रखने छथि । ईश्वर सँ बेर-बेर प्रार्थना जे हुनका सभक व्रत सहजता-सफलता सँ पूर्णता प्राप्त करय ।
 
जितिया निर्जला व्रत होइछ । अनेकों नियम-निष्ठा पूर्ण करय पड़ैछ । व्रत मे कोनो तरहक विघ्न व नियम-विपरीत कर्म निषेधित अछि । एकर विभिन्न कथा-माहात्म्य एहि बात केँ निरूपित करैत अछि ।
 
आजुक विशेष दिवस अपन ‘निर्जला व्रत’ व व्रतक आमधारणा मे निजी अनुभव पर आधारित एक संस्मरण लिखि रहल छी ।
 
सच मे एकटा चुनौतीपूर्ण साधना होइछ एक दिनक निर्जला व्रत । मानव समाज आ हिन्दू धर्मावलम्बी लेल अनेकों व्रत प्रचलित अछि । एकादशी सेहो कठिन व्रत थिक एना अनुभव करैत छी हम । हमर मिथिला मे अधिकांश लोक अदौकाल सँ ‘एकादशी’ व्रत करैत आबि रहल छथि । एहि सन्दर्भित अपन अनुभव साझा कय रहल छी ।
 
सच ईहो छैक जे एहि कलिकाल मे आस्था आ विश्वास मे चरम् भौतिकतावादक असर बेतरतीब ढंग सँ पड़ि चुकल अछि, तथापि कियो न कियो आइयो एहि समाज मे जिबैत अछि जे सब आस्था केँ आइ धरि बरकरार रखने अछि । एहने आस्थावान रूप मे हमहुँ अपन जीवन जिबय चाहि रहल छी । तेँ दोसरक बात छोड़ूिकय आइ हम अपनहि अनुभवक बात कहय चाहब व्रत-उपासना सम्बन्ध मे ।
 
धार्मिक-आध्यात्मिक सत्संग करब हमर प्रिय विषय थिक । एहने सत्संगक असरि सँ एक बेर हमरो लिलसा जागल जे ‘एकादशी’ व्रत करबाक चाही । एहि व्रत केर माहात्म्य सब पढ़ैत-सुनैत ई लिलसा जागल छल । २००७-०९ ई. मे ओर्कुट कम्यूनिटी ‘धर्म-मार्ग’ मे एक सँ बढ़िकय एक साधक लोकनिक सत्संग सँ एतबा प्रेरणा भेटल । त, मात्र प्रयोगक तौर पर हम ‘एकादशी’ व्रत करबाक ठानि लेलहुँ ।
 
विदिते अछि कि प्रत्येक मास मे शुक्ल पक्ष आ कृष्ण पक्ष मिलाकय दुइ गोट एकादशी व्रत-तिथि अबैछ । प्रत्येक एकादशी तिथि केर अपन संज्ञा आ महत्वक कथा (माहात्म्य) शास्त्र-पुराण मे वर्णित अछि ।
 
सात्त्विकता जेहेन गुण धारण हेतु व्रत (उपवास) सँ नीक दोसर कोनो उपक्रम नहि । शारीरिक क्रिया मे उदर आ जठराग्नि केँ विश्राम देनाय विज्ञानक दृष्टि सँ सेहो स्वास्थ्यकर मानल गेल अछि । एकादशी व्रत मे हरेक १५ दिन पर १ दिन अहाँ (साधक) केँ अत्यन्त नियमपूर्वक व्रत राखय पड़ैछ । मात्र एकादशी दिनहि टा नहि, अपितु एक दिन पूर्व सँ नियम-निष्ठा आरम्भ कय दोसर दिन द्वादशी ब्राह्मण-भोजन, दान-पुण्य आदि प्रक्रिया पूर्ण कयला उत्तर मात्र पारण करबाक विधि-विधान कहल गेल अछि ।
 
आर, साल मे एक दिन अबैछ निर्जला एकादशी ! पूर्ण रूप सँ बिना जलक एक बुन्द केँ रहय पड़ैछ एहि दिन । अन्य एकादशी दिन अहाँ फलाहार-जलाहार कय सकैत छी, अपन-अपन परम्परानुसार लोक थोड़-बहुत अल्पाहार कयल करैछ । परञ्च ‘निर्जला व्रत’ मे पानिक एक बुन्दहु तक नहि लेबाक विधान कहल गेल छैक, ई सच मे अत्यन्त कठिन आ सोचितो डर लगबयवला होइत छैक ।
 
त, सत्संगक प्रभाव मे हमहुँ अपन लौल पूरा करय लगलहुँ । एकादशी व्रत करय लगलहुँ । दिन-राति बिना भोजन केँ रहय लगलहुँ । दशमी तिथि सँ स्वयं केँ एकादशी व्रत लेल तैयार करय लगलहुँ । एकादशी दिन पूर्ण निष्ठा व द्वादशाक्षर मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ सहित अन्य भजन-कीर्तन व साधना मे रमय लगलहुँ । द्वादशी केँ सिद्धान्त अनुरूप उपयुक्त अनुष्ठान् सम्पन्न कय केँ अपन व्रत समापन करैत रहलहुँ । एकादशी मे रात्रि जागरणक विधान सेहो जिबय के भरपूर कोशिश करैत रहलहुँ ।
 
निर्जला एकादशी दिन सँ पहिने बहुत कौतुकता छल मन मे – केना पार लागत ? लेकिन, सच कहि रहल छी, ई व्रत सेहो अत्यन्त सहजता सँ सफल भेल । एकहुँ बेर हमरा जलक एक बुन्द तक लेबाक प्यास नहि जागल । न कोनो छटपटी, न कोनो भय !! एक बेर अहाँ ठानि लैत छी त व्रत पार लगेनिहार परमपिता परमेश्वर स्वयं अहाँ केँ सब तरहें मदति करैत छथि । अहाँ निश्चिन्त रहू । अनावश्यक चिन्ता आ शंका-दुविधाक कोनो ठाउं नहि । विश्वास अटूट राखू ।
 
व्रत एहेन मानसिक संकल्प होइत छैक जेकरा पालन करय मे आस्थावान् केँ कनिकबो दिक्कत नहि होइत छैक । राम-खुदैया टाइप दुइधारी मानसिकताक लोक लेल व्रत करय मे समस्या आबि सकैत छैक । कारण ओ स्वयं व्रतो करैत अछि, डराइतो अछि, घबराइतो अछि । एहि तरहें बीच मे व्रत भंग हेबाक खतरा बनल रहैत छैक । तेँ, एकनिष्ठ भाव सँ प्रबल विश्वास सहित व्रत करब आवश्यक होइछ ।
 
बेस, विशेष किछु नहि । आस्था सभक अपन-अपन होइत छैक । अपन धर्म निर्वाह करब कठिन छैक संसार मे । घड़ी-घड़ी परीक्षा होइत रहैत छैक । डेग-डेग पर माया आ भौतिक लहक-चहक बाँहि पसारि ‘हेलो डार्लिंग ! हाय डार्लिंग !!’ कहैत अपना दिश खिंचैत रहैत छैक । एना मे अपनहि धर्मक रक्षा सर्वोपरि छैक । हम, एहि मामिला मे केवल स्वयं केर वृत्ति व अवधारणा मजबूत राखय चाहैत छी । अपन घरोवाली पर शासन एहि सन्दर्भ मे जरूरी नहि बुझैत छी ।
 
हमरा उपरोक्त एकादशी व्रत कोहुना-कोहुना एक साल धरि पार लागि गेल । घरक लोक, खासकय घरनी बड सहयोग कयलीह । फेर ऐगला साल हम व्रतक कठिनता सँ हारि गेलहुँ । एक बेर जे हारलहुँ से आइ कतेको वर्ष बीति गेल, हारले अवस्था मे छी । परञ्च मन मे धारण कएने छी जे फेर एक न एक दिन ई पुण्य फेरो जरूर करब । ईश्वर सँ प्रार्थना कय रहल छी । अस्तु, फेर ऐगला लेख मे !! समस्त व्रतधारीक व्रत पूर्ण होयबाक शुभकामना अछि ।
 
हरिः हरः!!