जातीय अवधारणाक गलत उपयोग सँ मानव समाजक कल्याण सम्भव नहि

याद राखू जन-गण-मन
 
कटुता सँ कथमपि कल्याण नहि होइछ केकरहु, तेँ हमेशा श्रेष्ठ आचरण करनिहारक अनुकरण करबाक प्रेरणा ग्रहण करू । समाज मे ब्राह्मण प्रति जाहि तरहें कटुताक प्रसार सत्तालोभी दुर्जन सब करैत अछि, ओ किन्नहुं अनुकरण योग्य कर्म नहि थिक । एहि तरहक हरमुठाई कयला सँ सत्तालोभी किछु दिनक वास्ते अहाँक मत पाबि स्वयं केँ ‘विजेता’ कहैत सत्ताक कुर्सी पर आसीन भ’ सकैत अछि, परञ्च ओहि तरहक ‘राजा’ (शासन-संचालक) लग कोनो जादू करबाक अथवा चमत्कार करबाक शक्ति-सामर्थ्य किन्नहुं नहि जे अपनहि मतदाताक जीवनस्तर तक उठा सकत ।
 
मानव संसार मे शिक्षा आ संस्कार बहुत जरूरी छैक । ब्राह्मण प्रति कटुताक प्रसार लेल पूर्वक युग मे ब्राह्मण द्वारा एकाधिकार स्थापित करबाक, वेद-वेदान्त जेहेन ज्ञान सँ आन केँ वंचित रखबाक, अपन जातीय वर्चस्वक कारण दोसरक मानमर्दन करबाक, आदि-आदि अनेकों तरहक प्रवंचनाक शब्द सब दुष्प्रचार कयल जाइछ । यदाकदा एहि तरहक स्वभावक किछु ब्राह्मण व्यक्ति व विचार होइतो अछि, तेँ ओहि सीमित उपद्रवीक कारण ‘ब्राह्मणक संस्कार आ ज्ञान’ केँ समग्र रूप मे अपमान करबाक दुष्कार्य किन्नहुं नहि करबाक चाही ।
 
आधुनिक युग मे ब्राह्मणक परिभाषा ‘जन्मना जायते शूद्रः’ केर सूत्र सँ इतर जातीय आधारित मातृकोख सँ जन्म लेल ‘जातीय’ पहिचान पर आधारित समाज केकरा द्वारा बनल अछि ? विचार करू ! शास्त्रीय-पौराणिक सन्दर्भ ‘कर्म आधारित’ वर्ण-विन्यासक बात कएने अछि । ओहि मे जाति-उपजाति आदिक बात कतहु नहि कहल गेल अछि । ‘चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं’ केर सूत्र श्रीकृष्ण सेहो गीता मे कहलनि अछि । अर्थात् ‘चारि वर्ण केर सृष्टि’ जीवमंडलक सन्तुलित संचालन लेल कयल गेल अछि । वगैर चारि वर्णक लोक – चारि तरहक विभाजित श्रम कएने ई जीवलोकक परिकल्पना तक सम्भव नहि अछि । तेँ, एहि चारि वर्णक परिकल्पना मे आपसी कटुता नहि, आपसी समन्वय व सौहार्द्रताक अनेकों आख्यानक व्याख्यान देल गेल अछि ।
 
सत्तारोही कुतर्क मे समाज केँ फँसेनाय कोनो हाल मे अनुकरणीय मानव-व्यवहार नहि मानल जा सकैछ । आइ कर्म-आधारित ब्राह्मण शुद्र मातृकोख सँ सेहो जन्म लैत उच्चकोटिक जीवन-आचरण करैत अछि, ओहो ब्राह्मण थिक । ओकर सम्मान ओहिना करू जेना भगवान् राम ब्राह्मणक गान करैत ९ गुण सँ परिपूर्ण कहि स्वयं क्षत्रिय कुल मे जन्म लेलनि त केवल एक गुण ‘युद्धकला’ मे परिपूर्ण कहि ब्राह्मण परशुराम केँ सम्मान देलनि । प्रत्युत्तर मे ब्राह्मण परशुराम हुनकर विनम्रता सँ सर्वगुणसम्पन्न स्वयं परमपिता नारायणक प्रत्यक्षरूप श्रीराम केँ मानि मौनतापूर्वक वापस भ’ श्रीराम केँ सम्मान देलनि । एहि दृश्य सँ शिक्षा ग्रहण करू समस्त मानव लोक !!
 
हरिः हरः!!