पढल -गुनल वा अज्ञानी केर भेदक स्वयं परीक्षण करू

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लेख विचार
प्रेषित: परमा दत्ता झा 
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि

#विषय-स्वैछिक
#शीर्षक -पुरान लोक
#भाषा-मैथिली
#विधा-गद्य

हमरा सब अपना कें बड पैघ ज्ञानी आ महान बुझए छी,कियक त अपना के आधुनिक आ पढ़ल मानैत छी।मुदा पहिलका लोक के सोच केहन छलैक से हम कथा माध्यम से बता रहल छी ।ओकर पश्चात एहि परिवार के गुणी, विद्वान बतायब जे हमरा सब बेसी ज्ञानी छी या अनपढ़ दाई ज्ञानी छथि ।
ई कथा एक गामक कथा थिंक । ओहि दाई यानि दाईजी केर कथा जिनकर तीनू बेटा आई पी एस अधिकारी आ एकटा डी जी पी पद पर छनि। हम अपन गाम से हुनका ओहिठाम साईकिल चलाकय बेटाक पठाओल पाई आ नुआ ल के दाई लग सनेश देबए गेल रही। पंचानबे बरख के आदरणीय बूढ़ी दाई अम्मट पर लेप चढ़ा रहल छलीह आ कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ गीत गाबि रहल छलीह।हमर अवस्था सोलह साल के छल, साईकिल चलाकय झंझारपुर से हुनकर गाम गेल रही । मई केर महीना छल।रौद से झरकैत दस बजे पहुंचल रही।
अहा के छी बाऊ-लग आऊ दाई जी लग कही शोर केलनि।
दाईजी हम मनोज छी , चंडिका केर बेटा।
अरे आऊ वौवा,आंगन आबि जो,-हे हमरा सुनाई कम दैत अछि,देखाई सेहो कम दैत अछि। तें लग आबह
दाई -अहा पटना में कियाक नहि रहैत छी। हम पूछी देलियनी।
रौ बाऊ,गाम मे आराम अछि, अम्मट,अचार ,चटनी बना लैत छी।चरखा काटि जनऊं सेहो बना लैत छी। उपनयन, विवाह ,मूडन,काज सभ मे लोक हमरा से जनऊं ल जाईत अछि। आनो तरहे मदति भ जाईत छैक किछु लोक समाजक।
दाई अहा एतेक परेशानी मे कोना रहए छी —
अरे परेशानी कथी,हम आराम से गाम मे छी। टहल टिकोरा करवा लेल फुलझरिया अछि। हमरा कोनो कष्ट नहि। दोसर दिस धिया पुता आराम से अछिए,कौखन अबैत अछि या हमही चल जाईत छी।
रौ वौवा ,सब माय बाप धियापुता के पढबैत अछि ,ओकरा ओतेक पैघ बनवैत अछि जे ओम्हर तकैत पाग नींचा खसि पडय। मुदा हम साधारण गृहस्थ केर कनिया छी ,ते जाधरि सकब से काज करब। यैह पसीन अछि।
दाई केर ई गप हमरा मोन छुबि देलक।
ओहि लोक लेल प्रेरित करय बला बात भेल जे बेटा के कमाईत देरी हाथ पर हाथ राखि बैसि जाईत छथि। अपना के सक्षम रहितो दोसरा पर आश्रित भ जाइ छथि। ते प्रश्न ई जे पढल गुनल के भेल? आ अज्ञानी के?