लेख विचार
प्रेषित: ममता झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “नाग पंचमी पूजा पहिले आ आब मे अंतर
“नाग पंचमी पाबैन परंपरा सं मनवैत आबि रहल छी।ई पाबैन सर्प पूजा के लेल प्रसिद्ध अई।पहिने मिथिलांचल मे नागपंचमी के दिन पारंपरिक पूजा पद्धत के अनुसार होइत छल।आब पूजा विधि मे आधुनिकिकरण आबि गेल अई।
नाग पंचमी के दिन भगवान शंकर के अभिषेक कर सं अनंत फल के प्राप्ति होइत अछि। घर मे सुख समृद्धि आबैत अछि आ जे व्यक्ति पर कालसर्प दोष होइत अछि भगवान शंकर के अभिषेक करि के ,नाग नागिन चांदी के जोड़ा बनवा कऽ भगवान शंकर के समर्पित कर सं कालसर्प दोष के शान्ति होइत अछि !
हिन्दू धर्म में मान्यता अछि कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता के विधि विधान सं पूजा करै सं व्यक्ति सब कष्ट सं मुक्ति पाबैत अछि ।मान्यता अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग छैथ।
शिव जी व माता पार्वती के प्रतिमा पर श्रृंगार के सामग्री राइख क पूजा करी कऽ बेलपत्र, धतूरा, भांग व बेलपत्र दूभि फूल चढ़ा कऽ पूजा करी।
गाय के कच्चा दूध सं अभिषेक करि,तदुपरांत पंच फल व पंचमेवा फल अर्पित कऽ अई मंत्र के जाप करी –
‘ऊं भुजंगेशाय विद्महे,
सर्पराजाय धीमहि,
तन्नो नाग: प्रचोदयात्।
शास्त्र के अनुसार नाग के दूध पियाब आ लावा चढेबा के चाहि।
नागपंचमी के दिन अनेकों गांव व कस्बा मे कुश्ती के आयोजन होइत अछि। आसपास के पहलवान भाग लइत छैथ। गाय, बैल आदि पशु के नदी, तालाब मे नहा कऽ अष्टनाग के पूजा कैल जाइत अछि ।
वासुकिः तक्षकश्चैव
कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः
कार्कोटकधनंजयौ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति
प्राणिनां प्राणजीविनाम्॥
(अर्थ: वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक आ धनंजय – सब प्राणी के अभय प्रदान करैत छैथ ।)
आई के पावन पर्व पर वाराणसी (काशी) मे नाग कुआँ नामक स्थान पर बहुत पैघ मेला लागैत अछि । किंवदन्ति अछि कि अई स्थान पर तक्षक गरूड़ जी के भय सं बालक रूप मे काशी संस्कृत के शिक्षा लेल आयल छला, परन्तु गरूड़ जी के जानकारी भ गेलइन तखने तक्षक पर हमला करि देलैन। अपन गुरू जी के प्रभाव सं गरूड़ जी तक्षक नाग के अभय दान देलखिन। तखने सं एत नाग पंचमी के दिन नाग पूजा होबय लागल।
ई मान्यता अछि कि नाग पंचमी के दिन पूजा अर्चना करि नाग इनार के दर्शन कर सं जन्मकुन्डली के सर्प दोष के निवारण भ जाइत अछि।