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नागपंचमी पूजा मे पहिला सन केर आस्थाक अभाव

लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “नाग पंचमी पहिने आ आब मे अंतर ”

कोनो पाबनि तिहार अथवा समारोह जे अन्तरात्मा सँ मनाओल जाइत छैक ओकर उत्साहे अलग होइत छैक संगहि अगल बगल के लोक जिनका संग बाल्यावस्थाक संग होअय आ ओ जँ अहाँ संगे पावनि मनावथि तऽ बुझू जे सोना में सुगंध। मिथिलाक लोक प्रशासन के उपेक्षा के कारणे अपन गाम घर के छोड़ि जीविकोपार्जन के लेल भागि गेल छैथि आ बहुत गोटे किराया के घर में अपन गुजर वसर कऽ रहल छैथि आ किछु गोटे जे अपन मकान बना लेने छैथि ओ कतबो प्रयास कयलाक उपरान्तो गाम घर बला वातावरण बनेबा मे असफल होइत छैथि। इहो देखल गेलैक अछि जे संकुचित मानसिकता के कारणे परिवार केर परिभाषा आब सीमित भऽ गेलैक अछि जाहि मे अपने कनियाँ बर आ अपन धिया पूता। आब लोक के अपन भाई बहिन काका काकी सँ सम्बन्ध नाम मात्र के रहलैक अछि। आजुक परिपेक्ष में बेसी लोक औपचारिकता में बेसी विश्वास करय लगलाह अछि। शहर आ देहात में दूरी बढवाक कारणे पावनि तिहार में सेहो आब मौलिकता समाप्त भेल जा रहल छैक आ औपचारिकता अपन स्थान मजबूत कऽ लेलक अछि आ एकरा लेल किनको पर दोषारोपण उचित नहिं कारण उपार्जन के साधन जतय रहतैक लोक ओहीठाम अपन निवास रखताह। आइ नाग पंचमी छियैइ आ आजुक दिन नाग देवता के पूजा अर्चना खूब धुमधाम सँ कयल जाइत छैक जाहि सँ हुनक परिवार समाज गाम सभठाम नाग देवता के आशीर्वाद बनल रहैन। नाग पंचमी के विषय में अनेकानेक कथा प्रचलित छैक जाहि मे सभ सँ प्रमुख राजा परीक्षित पुत्र जनमेजय द्वारा संसार के समस्त नाग वंश के स्वाहा करवाक यज्ञ में ब्रम्हा जी के आदेश पर एकटा ऋषि द्वारा आजुक दिन नाग वंश के रक्षा हेतु प्रयास कयल गेल छल आ ओ ऋषि नाग वंश के बचाओने रहैथि जाहि के शुभ अवसर पर नाग देवता के पूजा अर्चना करवाक आजुक दिन विशेष आयोजन कयल जाइत छैक। आब लोक ओतेक विधिवत पूजा पाठ नहिं कऽ सकैत अछि कारण पावनि तिहार के विषय में कम जानकारी आ समय के अभाव के कारण सँ मात्र पावनिक औपचारिकता रहि गेलैक अछि। हमरा मोन अछि जे पहिले नाग नागिन के मूर्ति बनाओल जाइत छलैक आ हुनका लाबा आ दूध चढ़ाओल जाइत छलैन्ह। अत्यंत श्रद्धा के संग पावनि होइत छलैन्ह। भोरे भोर लोक नीम आ नेबो खाइत छलाह आ सांझ मे गामक पंडित जी के ओहिठाम माटि पढेबाक लेल लोक जाइत छल आ पंडित जी माटि पढि कऽ दैत छलखिन्ह आ लोक अपन अपन घर आंगन में ओ माटि छिटैत छलाह जाहि सँ नाग देवता के कृपा घर पर बनल रहैत छलैक। भोजन में स्वादिष्ट खीर आ पूड़ी बनैत छलैक से आइयो बनैत छैक, हँ पूजा पाठ में ओ आस्था आब नहिं रहैत छैक।

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