लेख
– रेखा झा, पटना
तुलसी
हमर सबहक घरक सबसँ अभिन्न अंग होइत अछि तुलसी गाछ । तुलसी गाछ पवित्र आ मुख्य औषधि दुनू रूप मे जीवन केँ आनन्द प्रदान करैत अछि । तुलसीक पात, डांट आ मंजरी तीनूक प्रयोग कैल जाइत अछि ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण सँ पहिने देखी त तुलसीक गाछ सँ प्रचूर मात्रा मे ऑक्सीजन निस्सरित होइत अछि, आ हरेक घर मे रहला सँ वातावरणक शुद्धता सहयोग करैत अछि । गाम घर मे एहि लेल मनुक्खक उल्टा साँस चलिते (मृत्यु निकट आयल बुझि) परिवारक लोक सब मरणशील लोक केँ तुलसी चौरा लग लय जाइत अछि, एकर पाछूक सोच यैह रहैत छैक जे प्राण जेबाक समय कष्ट कम होइक ।
तुलसी मे वात, पित्त, कफ – तीनू मूल शारीरिक दोष केँ नाशक गुण होइत छैक । यैह कारण सँ तुलसी पातक काढा आ रस तीन मासक बच्चा सँ बुढ लोक तक केँ औषधि रूप मे देला जाइछ । सर्दी, खोंखी, बुखार, आदि केहनो शारीरिक समस्या मे तुलसी पातक काढ़ा बहुत उपयोगी आ प्रभावकारी मानल जाइछ । आब त बहुते रास आयुर्वेदिक किंवा एलोपैथिक दबाइ निर्माता कम्पनी सब तुलसीदल केर अर्क सेहो बना रहल अछि ।
तुलसीक मंजरी (मज्जर) सुखायल केँ झारब त बहुत छोट-छोट कारी रंगक बिया नजरि पड़त, ई एक चुटकी गुड़ संग सेवन करब त पुरुषक नपुंसकता केँ दूर करय मे सहायक होइछ, आयुर्वेद ज्ञाता एकर चमत्कारिक परिणाम बतौलनि अछि ।
तुलसीदल मे एन्टी ऑक्सीडेंट गुण सेहो भेटैछ, तेँ एकर सेवन सँ वायरस सँ लड़बाक यानि शरीरक रोगनिरोधी क्षमता बढ़बाक बात सेहो चिकित्सकीय परामर्श आ घरेलू उपचार तरीका मे वर्णन कयल गेल अछि ।
तुलसीक धार्मिक महत्व
तुलसी कियै एतेक महत्वपूर्ण मानल जाइछ एहि सम्बन्ध मे बहुते रास पौराणिक कथा सभक वर्णन कयल गेल अछि ।
एकटा कथा अनुसार भगवान् नारायण केर छल आ तुलसी केर सतीत्व सँ जुड़ल बेस चर्चित अछि । स्वयं जगत केर नाथ भगवान् नारायण तुलसी केँ वरदान दैत कहने छथि जे अहाँ गाछ रूप मे सबहक घर मे विराजमान रहब, हमर सर्वाधिक प्रिय रहब, तथा अहाँक देल श्राप केँ सेहो सत्य करैत हम शालीग्राम पाथर रूप मे अहाँक संग रहब ।
एकटा किंवदन्ति कथा मे भगवान् नारायण हुनका अपन माथ पर विराजित हेबाक सर्वोपरि सम्मान सेहो देलनि अछि, यानि घरे-घर जे तुलसी गाछ होइछ से भगवान् विष्णु केर माथ पर तुलसी रोपाइत छथि । तेँ तुलसीक पूजा करय सँ भगवान् सहित तुलसी पुजाइत छथि कहल जाइछ ।
कहल ईहो जाएत अछि जे तुलसीक लकड़ी मृत शरीर (लहास) पर राखिकय दाह क्रिया कयला सँ मृतक पापमुक्त भ’ जाइत अछि । तेँ देखैत होयब जे मिथिला परम्परा मे दाह क्रिया लेल तुलसी गाछक सुखायल झाँखुर लोक ताकि-ताकिकय लय जाइत अछि कठियारी ।
तुलसी मे चूंकि भरपूर ऑक्सीजन उत्सर्जन होइछ, तेँ अछिंजल मे तुलसी दल देला सँ ओ चरणामृत बनि जाइछ । हिन्दू आस्था मे कोनो देवकर्म या पितरकर्म करब त भोगरूपी प्रसाद मे सेहो तुलसीदल देलाक बादे ओकर पवित्रता आ शुद्धता स्थापित होयब मान्यता मानल जाइछ ।
व्यवहारिक रूप सँ हम-अहाँ कतबो समय धरि पूजा मे या मन्दिर मे ठाढ़े रहब आ जखन चरणामृत लय लेब त मोन स्वतः शान्तिचित्त आ स्थिर भ’ जायत ।
तुलसी दल मे लक्ष्मीक वास कहल गेल अछि । तेँ घरक बनल आहार (निरामिष) मे पड़ला सँ कतबो लोक केँ खुआउ, भण्डार खाली नहि होयत । प्रसादरूपी भोग सभक लेल पुरि जायत ।
तुलसी गाछ घरक वास्तुदोष सब केँ सेहो दूर करैत अछि । वास्तु अनुरूप हरेक घर-आंगन मे तुलसी लेल विशेष स्थान देनाय अनिवार्य कहल जाइत अछि । एहि सँ नकारात्मक ऊर्जा सब स्वतः दूर रहि मनुष्यक निवासस्थान सुखदायक भेल करैछ ।
हम-अहाँ स्वयं जँ तुलसी गाछ लग कनिकाल बैसब तँ मोन मे सकारात्मक उर्जा जागि जायत । मोन मे पवित्रताक नव तरंग उत्पन्न होबय लागत ।
तुलसी दल भगवान् नारायण केँ बहुते प्रिय होइत छन्हि । ताहि लेल सेहो तुलसीदल भोगक प्रसाद मे देनाय अनिवार्य होइछ, तखनहि नारायण केँ स्वीकार सेहो होइत छन्हि ।
तुलसीक दर्शन मात्रहु सँ कोनो तरहक चरित्रदोष समाप्त भ’ जेबाक वृत्तान्त सेहो कहल जाइ य । कतहु कोनो आन्तरिक चिन्ता भेल, अथवा दुःस्वप्न आयल तँ चुपचाप तुलसीगाछ लग बाजि दी । तुलसी गाछ मे असल मे ततेक पॉजिटिव एनर्जी पायल गेल अछि जे सब दोष-चिन्ता-दुःख-दारिद्र्य अवशोषित करैत अहाँ मे पुनः सकारात्मक ऊर्जा भरि दैत अछि ।
अन्त मे, मिथिला सहित आनो-आनो ठाम लोकक जीवनक अन्तिम समय मे तुलसी आ गंगाजल मुख मे देबाक विधान सब केँ पते अछि । तुलसीदल मुंह मे देल जाइत छैक, जेकर सुगन्ध सँ शरीर आ शरीरी क्रियाशील भ’ भगवन्नामक सुमिरन करैत अन्तिम महायात्रा पर ओ जाय ।
तुलसीक महिमा अनन्त छन्हि, संछेप मे एतेक लिखल जाहि सँ लोक आस्थाक वैज्ञानिकता बारे किछु सचेतनाक जागृति आबय । अस्तु!