बसिया फूल -पात सँ सजाओल डाली से नागक पूजाके विधान अछि

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लेख विचार
प्रेषित: रिंकू झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “ मधुश्रावणी केर व्रत पूजन वा पाबनिक महत्व

भारतीय ऋतु के अनुसार साल में दू टा मधुमास होईत अछि।एक टा फागुन मे दोसर साओन मे जाहि मे गाछ -वृक्ष के हरियरी संग धार -पोखैर उछलैत पाईन स भरल रहय छै।अहि समय मे हरेक दम्पति के मन एक -दोसर के सानिध्यता लेल आतुर रहैत अछि। अहि विरह के समय मे मिथिलांचल मे एक टा ऐहन पावैन मनाओल जाइत अछि, जाहि मे नव दंपति भैर पावैन संग रहय छैथ।जे समय बहुत प्रियगर रहय छैन्ह हुनका लेल ताहि हेतु एकर नाम परल मधुश्रावणी।दू शब्दक योग स बनल ई मधुश्रावणी जेना मधु यानी शहद “मिठास”आर श्रावणी यानी सावन ,एकर अर्थ भेल मिठास स भरल सावन। मधुश्रावणी साओन मासक कृष्ण पक्षक चतुर्थी तिथि स आरंभ होईत अछि आर एकर समापन शुक्ल पक्षक तृतीया क होईत अछि। पंद्रह दिन तक चलय बला ई पावैन मिथिलांचल मे विषेश रूप स मनाओल जाइत अछि। मलेमास परला पर महिना भरि चलैत अछि। मैथिल ब्राह्मण आर कायस्थ परिवार मे नव विवाहित महिला लोकनि अपन सौभाग्य आर सोहाग के लेल ई पावैन बहुत निष्ठा आर विश्वास स करय छैथ वियाहक पहिल साल मे । नैहर मे पुजल जाईत अछि ई पावैन,धैर नैहर मे रहितो भैर पावैन सासूरे के अन्न खाई छैथ पवनैतिन । पंद्रह दिन तक अनोन खाई छैथ पवनैतिन सब। पूजा स एक दिन पहिले नहा -धोई क ऽ अरबा -अरबाईन खाई के नियम छै , ओहि दिन अगिला दिनक पूजा लेल संगी -बहिनपा संग समुह बना क ऽ जाहि, जूही आर फुल लोढी क लावय छैथ । अहि समय मे हुनका लोकनि द्वारा गावल गीत स पूरा गामक बगिया, स्कूल आर मंदिर चहैक उठैत अछि। प्रथम पूजा पंचमी के दिन कोहबर के निपी -पोति ओहि पर अरिपन,पुरहर द क ऽ मैना पात पर सिंदूर,पिठार स विषहरी के चित्र बनाक, ओहि पर माटिक बनल नाग -नागिन के स्थापित केल जाईत अछि।गोसाउनिक गीत गाबि ,नव वस्त्र आर गहना पहिर ,सोलह श्रृंगार कय पवनैतिन सब पूजा पर बैसय छैथ कल जोड़ी खोईछ लय। महिला पुरोहितानी अहि मे पूजा कराबय छथिन लौकिक मंत्र आर विधी -विधान सौं । नैहर -सासूर दूनू ठाम केर बनल गौरी,बिषहरी ,साईठ,चनाई आर देवी देवता के पूजल जाईत अछि।विषहारा के महादेव – पार्वतीक  संतान मानल जाइत अछि। हुनका प्रसाद स्वरूप लाबा,दूध चढय छनि। नाना तरहक फ़ल, मिठाई के नैवेद्य चढ़ाओल जाइ छनि  । माता के तखन पवनैतिन हाथ मे लाल कपड़ा मे बान्हल धानक पोटरी जेकरा केंचुआ कहल जाईत अछि ओ लक कथा सुनय छैथ, संगे बिन्नी पाठ करय छैथ।तेरह दिन धैर नाना तरहक हास , परिहास स भरल कथा जेना नागपंचमी के कथा, सावित्री, सत्यवान के कथा, शंकर, पार्वती संग नाग -नागिन के कथा सुनय छैथ तखन अगिला दिन लोढल वासी फूल छिड़ीआओल जाईत अछि ओहि नाग -नागिन पर।फेर पांच टा अहिवाती के तेल, सिंदूर लगाक खोईंछ दक हुनका संग बैसल जाई छै जाहि मे मिठ खीर खाई के प्रावधान छै। सूर्यास्त स पहिले भोजन केल जाईत अछि।अहि तरहे रोज तेरह दिन तक फूल लोढय छैथ, पूजा करय छैथ, कथा सुनय छैथ।नित दिन सांझ,पराती आर कोहबर गीत गावल जाई छै। समापन के दिन सिंदूरदान आर घुंघट के विध सेहो होईत छै जाहि कारण बरक रहनाई अनिवार्य छै।टेमी दागल जाई छै सेहो ओहि दिन।पान पात स कनिया के आईख मुनय छथिन बर आर विधकरी टेमी दय छथिन, जाहि मे कहबि छै कि दू टा फोड़ा परल त शुभ होई छै।ओना अहि सब स एक तरहे नव दंपति के गृहस्थ जीवन में आबय बला बाधा स मुक्ति के सीख देबाक होईत छै, ताकि ओ अपन दांपत्य जीवन मे सुख-शांति स निर्वहन करैथ।अहि पावैन मे कोनो तरहक अईठ,कुईठ वा झारु छूवब मनाही छै।सासूर स भार ,दोर आबय छैन्ह बहुत रास,केरा, कटहर, आम, लीची आर मिठाई,संग कपड़ा लत्ता, गहना आदि।

आधुनिक युग में समय के अभाव मे विध -विधान मे कटौती जरुर भ रहल अछि धैर उत्साह मे कोनो कमी नहि अछि। प्रति दिन सांझू पहर जाही -जूही आ रंग – बिरंगक फूल लोढ़ीके खूब मस्ती संग गीत नाद गबैत सखी संग रंग – रभस करैत अगिला दिनक पूजा के लेल मोन सौं फूलक डाली सजबैत छथि।